पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३१

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जंगगि १६७४ जघन्यता यत्र या सिद्धि प्रादि का साधन करना । जैसे,—मत्र जगाना। जग्गासमा पुं० [सं० जगत् ] ससार । भूत प्रेत जगाना। जग्ध समापुं० [सं०1१ भोजन । पाहार । खाना। २. यह संयो०क्रि०--डालना-देना । -रखता 1-लेना। स्थान बही भोजन किया गया हो [को०] । जगामग-वि० [अनु॰] दे० 'जगमग'। १०-चमकत मूर जहर र अग्ध-वि० खाया हुमा । मुक्त । मक्षित [को०] 1 जगामग ढाके सकल सरीर। -भीखा०रा०पू०२४।। जग्धि-सा नी० [सं०1१ खाने की क्रिया भोजन । २ कई जगार-मुन श्री० [हिं० जग+पार (प्रत्य॰)] जागरण । जागृति । मादमियों का साथ मिलकर साना । सहभोजन । उ.--नैना मोछे चोर सखी री। पाम रूप निषि नेसे पाई देखन गए भरी री। कहा लेहि, कह तजे, विवश भय तैसी जाग्म'- सका पु. [ सं०] वायु । हया। फरनि करी री। भोर भए मोरे सो है गयो घरे जगार परी जन्मि' -वि. जो पलता हो। जो गति में हो। री।-सूर (शब्द०)। जग्य'. -सका पुं० [सं० यज्ञ ] दे० 'यश' । २०-पिता जग्य जगी-सा सी० [ देश० ] मोर की जाति का एक पक्षी । जवाहिर सु नि पछु हरपानी । --मानस, १२६१। नाम का पक्षी। यो०-जग्यतपयीत = यज्ञोपवीत । विशेष—यह शिमले के प्रामपास के पहाहो मे मिलता है और जायोपवीत -मुंबा [म० यज्ञोपवीत दे० यज्ञोपवीत । प्राय दो हाथ लबा होता है। नर के सिर पर लाल फलगी कमलासन मासनह महि जग्योपवीत जुरि ।-पृ० रा., होती है और मादा के सिर पर गुलाबी रंग की गाँठे होती १।२५५ । हैं। नर का सिर काला, गला लाल और पीठ गुलाबी रंग . पा" जघन--सपा पुं० [सं०] १. कटि के नीचे भागेका भाग। पेट । २. की होती है और उसके पखों पर गुलाबी धारियां होती हैं। नितव । पूव । 30-सरस विपुल मम अपनन पर कल उसकी दुम लबी भौर काली होती है और छाती तथा पेट किकिनि कलश सजायो।हरिश्चद्र (गन्द०)। ३. सेना का के नीचे के पर भी काले होते हैं जिनपर ललाई की झलक पिछला भाग । उपयोगार्थ मुरक्षित सैन्यदल (फो०)। होती है और एक छोटी सफेद बिदी भी होती है। मादा का रग कुछ मैला और पीलापन लिए होता है। यह पक्षी दस दस यो०-जपनप = दे० 'जघनकूपक' । जघनगौरय । जयनचपला। बारह बारह के झट मे रहता है। जाट के दिनों में यह जघनकृपक-सहा पुं० [म.] चूतर पर का गरमा। गरम देशों में प्राफर रहता है। इसकी बोली बकरी के जघनगौरव-समा० [सं०] नितय की गुरुता । नितरभार [को०)। बच्चे की तरह होती है मौर यह उड़ते समय चात्कार करता है। इसका पीत्कार बहुत दूर तक सुनाई पड़ता है। अंगरेज जघनचपला-सथानी. [सं०] १ कामुकी स्त्री। २ कुलटा । ३.मा छद के सोलह भेदों में से एक । वह मात्रावृत्त लोग इसका शिकार करते हैं । इमे जवाहिर मी कहते हैं। जिसका प्रयमा पार्या के प्रपमा वा सा और जगीर--सक्षा स्त्री॰ [फा० जागीर ] दे० 'जागीर'। 30-फाफा द्वितीया चपसा छद के द्वितीया फासा हो। जिकर किनात ये तीनों बात जगीर। -पलटू, भा०१, जघनी-वि० सं० जवनिन् ] वढे नितची से युक्त [को०)। जगीस--सज्ञा पुं० [हिं० जग+ ईस 1 दे० 'जगदीश, 3...- जघनेला-मा सी० [सं०] कठूमर । मिले सब पित्र सु दीन घसीस । भए सुम निरभय पित्र जगीस। जघन्य'-वि० [सं०] १ प्रतिम । चरम । २ गहित । एणज्य । रासो, पृ० । प्रत्यंत बुरा । ३ क्षुद। नीच । निकृष्ट ४ निम्न कुतोरपन्न । जगीला-वि० [हिं० जागना ] जागने के कारण अलसाया हुमा । नीच पुल फा (को०)। उनीदा। उ०-दुरति दुराए तेन रति, बलि कुंकुम उर जघन्य --सा पुं०१. शूद्र । २ नीच जाति । हीन वणं । ३ पीठ मैन । प्रगट कहै पठि रतजगे जगी जगीले नैन ।-शृ. फा वह भाग जो पुढे के पास होता है।४ राजामों के पांच सत० (शब्द०)। प्रकार के समीणं मनुचरों में से एक। जगुरि--सच्चा पुं० [सं०] जंगम । विशेप-वृहत्साहिता के अनुसार ऐसा भादमी पनी, मोटी बुद्धि जगैया-वि० [हिं० जागना] १. जगानेवाला । प्रवुद्ध करनेवाला। का, हंसोर और फर होता है और उसमें कुछ पवित्व शक्ति २. जागनेवाला। भी होती है। ऐसे मनुष्य के कान प्रषचदाकार, शरीर के जगोटा-सचा पु० [हिं० भोग+माट ] योग का मार्ग। जोगियो जोड अधिक दृढ़ भोर उँगलियाँ मोटी होती हैं। इसकी छाती, का पय । उ-फवन जगोटा कवन अपारी ।-प्राएल, हायो पौर पैरों में तलवार और सोहे मादि के से चिह्न पृ० ७६. होते हैं। जगौहाँल-वि० [हिं० जागना ] दे० 'जगीसा'। ५ ३० जघन्यम । ६ लिंग ! शिमन (को०)। जग्ग -सझा पुं० [सं० यज्ञ, प्रा. जग ] दे० 'यज्ञ'। 3.- जघन्यज-सना पुं० [सं०] १ शूद्र । २ भत्यज। ३ छोटा भाई (को०)। मायो सू गग तट काज जग्ग-पृ. रा०, १५७५। जघन्यता-सधा नी• [ सं० जघन्य+ता (प्रत्य॰)] क्रूरता ।