पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जघन्यम १५७५ जब्बा मुदता । नीचता। उ.-अपने कुरूप मदबुद्धि चालक के श्रुति प्राचार । मागध नट विट दान दें तथा न द्विज करे स्मान पौर स्वत्व को दूसरे के बालक को दे देना कैसी कुछ प्यार ।-दीन ग्रा, पृ० ७६ ।। विचित्र मूर्खता पौर जघन्यता है !-प्रेमघन०, मा० २, जजबात-सक्षा पुं० [अ० जपवह का सहव० जवात ] भावनाएँ। पु० २६६। विचार । उ०---लेकिन जब आप लोग मपने हकों के सामने जघन्यभ-सबा पुं० [सं०] मार्दा, प्रश्लेपा, स्वाति, ज्येष्ठा, भरणी हमारे जजबात की परवाह नहीं करते तो."-काया, पौर शतभिषा ये छह नक्षत्र । पृ० ४२३ जनि-सचा पुं० [सं०] १. वह जो वध करता हो। २ वह मस्य जजमनिका-सया त्री० [हिं• जजमान] पुरोहिती। उपरोहितो। जिससे वध किया जाय। यजमानी। जनु-वि० [सं०] निहसा । प्रहारक । वषकारी [को०) । जजमान-सहा पुं० [सं० यजमान ] दे० 'यजमान' । जधि-वि० [सं०] १ संघनेवासा । २ अनुमानयुक्त [को०] । जजमानी-सधा श्री० [हिं० जजमान+ई (प्रत्य॰)] दे० 'यजमानी'। जघगी-सहा सी० [फा० जचगी ] प्रसव की अवस्था । प्रसूतावस्था जजमेंट-सज्ञा पुं० [40] फेसखा । निर्णय । जैसे,—मामले की [को०)। सुनवाई हो चुकी, अभी जजमेंट नहीं सुनाया गया। जपना-कि. प० [हिं० दे० 'जंचना'। जजा-सचा सौ. [म.] प्रतिकार। बदला। प्रतिफल । परिणाम १०.-फिते दिन गुजर गए बले इस बजा । न पाया बुता ते जचा--संज्ञा स्त्री॰ [फा० उच्चह ] दे० 'बच्चा'। उने कुच जजा ।-दक्खिनी०, पु० २६५। , मच्चा-सझा श्री० [फा० उच्चह, ] प्रसूता स्त्री। वह स्त्री जिसे जजात -सचा पुं० [सं० ययाति दे० 'ययाति'। उ.-पलि वैगु तुरंत संतान हुई हो। मवरीप मानधाता प्रहलाद कहिये यहाँ लो कथा रावण विशेप-प्रसव के बाद चालीस दिनों तक लिया जच्चा जजात की।-राम. धर्म० पू०६४ । कहलाती है। अजाल -सबा सी० [हिं० जजाल] एक प्रकार की बफ । दे० यो०-क्षप्वाखाना - सुतिकागृह । सौरी । जच्चा बच्चा- 'जजाल'-४। उ०-फितेफ खवग्रीव दिले जाल दग्गई। प्रसूता पौर प्रसूत सतति । जच्चागरी, जन्वागीरी धात्री -सुजान, पृ. ३०॥ कर्म । बच्चा पैदा कराने का काम । कौमारभृत्य । जजिमान-सा पुं० [सं० यजमान] दे० 'पजमान' । मच्छ-सका . [सं० यक्ष, प्रा. जबख, अग्छ ] दे० 'यक्ष'। 30---- जजिया-सबा पुं० [म० जिज्यह] १. दह । २ एक प्रकार का कर देखि विकट मट बटि कटकाई। जच्च जीव ले गए पराई।-- जो मुसलमानो राज्यकाल में मन्य धर्मवालो पर लगता था। मानस, १११७६। जजी-सभा सी० [हिं० जज+ई (प्रत्य॰)] १. जज की कचहरी। यौ०-जच्छपति । जच्छरान । जच्छेश । जज की मदालस । २ जज का काम । जज का पद या मोहदा । जमछपति -समापुं० [सं० यक्षपति ] यक्षों के स्वामी। मूबेर: ___ जजीरा-सका पुं० [अ० जजीरह] टापू द्वीप। । १०-प्रम तह रहहि सक्र छ प्रेरे। रच्छक कोटि जन्छपति यौ०-अजीरानुमा - जमीन का वह भाग जो तीन पोर पानी मेरे ।-मानस, ११७६ से घिरा हो। जल-सहा.प. १ न्यायाधीश । विचारपति स्याय करन- जज -सपा पुं० [सं० मजुप.प्रा० अउ, जज़] २० 'यजुर्वेद । उ०- वाला । २ दीवानी और फौजदारी मुकदर्मों का फैससा चतुर वेद मति सब घोहि पाहा । रिग बजु साम पथर्वन करनेवाला बड़ा हाकिम । माह । -जायसी ग्र० (गुरु), पु० १६१ ॥ विशेष-मारतवर्ष में प्राय. एका या पधिन जिलों के लिये एक जजर@-सथा पुं० [सं० यजुष दे० 'यजुर्वेद' । उ० बजुर कहै सरगुन बज होता है, जो सिस्ट्रिक्ट जज (जिला बज ) कहलाता परमेसर, दस पौतार धराया -कपीर० ०, भा० १, है। पिये पदर मतिम पपीज जब यहाँही होती है। पु. ५४ । यौ०-ौरा पा शिस ( सेशन ) जज- यह जज को कई जिसी जना-सक्षा पुं० [अ० जज] २० 'जज'। १०--फुमि ने जो त ले में घूम धूमकर कुछ विशेष पो मुख्दमो का फैसला कुछ पयो राजा बापू भामसा पज्ज!-मारतेंदूपं०, था० २, विशिष्ट अवसरों पर करें। सवजन = दे० 'सदराला' । सिविल पु. ५५१। जज = दीवानी की छोटी प्रदालत का हाकिम । जज्ब-सहा पुं० [अ० जपय] १ पाकर्षण । खिंचाव । २ नेस्ती। जज'--सबा पुं० [सं०] योद्धा । ३. सोखना । मात्मसात् करना [को०)। जजन -सहा पुं० [स० यजन, प्रा० जजन ] यज्ञ कार्य । यज्ञ जवा-सा पुं० [म. जपवह भावना । भाव । मनोवृत्ति । उ.- करना । उ०-तीरथ प्रत मादि देवा पूजन जजन । सत नाम उ.-जोश और जज्बा का मका, मौतफान किसी ने फुके। जाने विना नर्क परन । -भीखा००, १०२२ । -बंगाल., पु०४४। जजना -फि० स० [सं० यजून ] सम्मान करना। भादर यौ०-जज्बए इश्क प्रेम का माकरण । जज्वए दिल हृदय करना । पूजा करना । उ०-कलि पूजे पाखर को जज न की भावना या माकर्षण।