पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३३६

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या १२ दोस या-मा . .ई .डाई वेरकी बाट। डाईसेर ढोड़ा-सा पुं० देच. ऊँट । (डि.)। नकारा । २. आई गुन का पहाड़ा । ३ घनश्चर डॉस--सा श्री० [सं० दुहित] दे॰ 'ढोटो'। उ०-टूच्ची को . रारस्थिर रहन का डाईवर्ष का कान । ढोलिया संदुरी पर खोसे झुलसे पाखो सो, सिसियाए म वाए।-स्पलम्, पृ. २१०. दाँत- स. म. पौना। पी जाना। (विट या ढोना-क्रि० स० [सं० बोड (= वहन करना, ले जाना), मायत पविपर्यय> डोव वोक लादकर से जाना। भार से दहा--01[देश-१. परपर पा भोर किसी कड़ी घस्तु का चलना। भारी वस्तु को कपर लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान का पनगा २ वह कामो कोह में जाट के सिरे पर पहुंचाना। समर कर पा रहता है। ३. दो डोलो पान। सयोकि०-देना! ले जाना। पारगोपान ( वमोनी)। २. उठा ले जाना । जैसे,—पोर सारा माल ढो ले गए । ग-to . 1 कोसमा । पाखंड । झूठा माउबर । ढोर-स) ० [हिं० दुरना गाय, बैल, भैस मादि पशु । चौपाया। कि..- करना।-रचना। मवेतो । 3.--जब हरि मधुवन को जु सिधारे पीरज परत गियरी . हि ग+• पूर्व धूतं विद्या । पूर्तता । न डोर !---सूर (सन्द०)। ढोरना -क्रि० स० [हिं० ठारना] १ पानी या मोर कोई दव गिवान- होंग+फा.3]. 'टोंगो'। पदार्य गिराकर पहाना । ढरकाना। दालना 3.-(क) रौते गराना in [हि दोग+ माजी ] पाखा पाडवर । भर, भरे पुनि ढोरे, चाहे फेरि भरै। कबहक तृणवू पानी मैं कहूँ चिला तर ।-सूर (शब्द०)। (स) जननी प्रति दाँगा:- बा. [होगा नाप। वौल। मान । चोगा। रिस जानि धायो चित वदन लोचन जल ढोरें।-सूर नवीमका मा काठ फो टोकनी तया चैत की डलिया (गन्द०)। (ग) वै प्रक्रूर कूर कृत जिनके रीते भरे भरे गदि धारानापोका प्रपतन उठाकर उनके स्थान पर विका ढोरे ।-सूर (शब्द॰) । २ लुढ़काना । ३ फेरना । डालना। माना (माप मेर), पापी (धार सेर) · इत्यादि को उ.--यमुनाप्रसाद ने मौखें ढीरी। कहा, 'पहलवान, मामता प्रमाणित माना माना जायगा ।-नेपास०, पृ. ३१। धमारा नहीं पोर अव विलकुल वक्त नहीं रहा।-काले ग] पायरो। उकोसलेबाजा मुठा भाडपर पु०४५। ४. डुसाना । हिलाना । उ०-(क) वर पाह ढोरत हठाढ़ी।-न ए.,५०२१३ । (ए) लेकर वाउ 51 विजन कर ढोरी।-रसरतन, प. २१५। (ग) पान समापन परन पसोटत ठारत विजन पौर ।-भारतेंदु प्र०, मा. २, - तु रूपाय, पोसे मादि होना। २. कली। १० ५६९।५ मन करना । नमाना । नीषा करना। 30- दो -aw.i• [हि.il .नामि । पुन्नी । २. कली। दोटो। सौ बचनु सुन्यो सुलिवान । सीम ढोरि गुदे कान :-- -2017] एस प्रकार की मछली जो १२ च लपी बिताई.,प.६१ होती है। रो। । ढोरा-सा पुं० [हिं०] ३० ढोर'। बोधना-- -[8. पाना बना । मन रहना । 30-- ढोरी'- समा श्री• [हि. दोरना) १ ढालने का भाव । दरकाने ही ६८ राति गुग्न परनन ढोकत ।-धज. क्रिया या भाव । १०-कनक कषस केसरि भरि ल्याई गरि वियो हरि पर ढोरी की। मति मानव भरी ग्रज युवती गावति का- पु.दि.1 1 २. पशोज । उ.--- पीत सबै होरी की।-मुर (शब्द०)। २. रट । धुन । पान। ins पम (पेनक) डोक सगाए। -प्रेमपन, लो। लगन ! उ०-सूरदास गोपी पहभागी। हरि बरसने 11- २.१० २५८। की गोरी नागो। (ख) ढोरी साई मुनन की, कहि गोरी डोटा-- ( को), हिडोटी] [स्त्री. मुस्कात । पोरी योरी समुच सौ भोरी भोरी बात !-बिहारी दा। 3.-देखत छोट घोट नृपछोटा। (स.)। -dil (Trt.)। २साचालका -फम क्रि०प्र०लगना । paliमो सेटा माईगिपन पर हिजो दोरी-वि० [हिं० ढोरना] 1 दुरी हुई। ढलो हुई। ३ हिसती ५ ।-पूर (1.10)। सुनती। मत । उ.- यनिता वारी भईहोरीमठ दी--. .. . सरदी। बुधो पारिता माज। सटोरी दोरी फिरत मित्रवत हैं ब्रजराज 1-23 टोटोना टोटामोटा। - पं०, १०३१॥ 16416मियो सोना हिमाको मोतिनी लगाई। दोल'- H०] एकप्रसार का मानिस के दानो पार चमड़ा मा होता है।