पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उदा. ढक .. देंढा-सा पुं० [सं० तुएड ] दे॰ 'ढ'ढ' । ढेरना--संज्ञा पुं॰ [देश॰ या हिं॰ ढुरना (= घुमना ) ] सूत या रस्सी --- टॅढी-संवा श्री० [हिं० ढेढा] १. कपास का-गेहा। २ पोस्ते का .. बटने की फिरकी । - - होडा। ३ कान का एक गहना । तरफो। उ०-सीस फुल ढेरा'- स [देश०] १. सुतली बटने की फिरकी जो परस्पर जड़ाय जूड़ा भंजन ज्ञान लगावन. मानसी नयुनी उडी शब्द काटती हुई दो माही लकड़ियों के बीच में एक खड़ा रंडा - . मांग भरावन ।-पलटू०, भा० ३,१०६४। जड़कर बनाई जाती है। २ मोट के मुंह पर का लकडी वा ढेप-सग्मा श्री० [देश॰] १. फल या पत्ते के छोर पर का वह भाग लोहे का घेरा जो मोट का मुंह खुला रखने लिये लगा जो टहनी से लगा रहता है। २ कुचाग्न । योड़ी। रहता है। ३. पंकोल का पैड ( वैद्यक)। ढपी-सच बी० [हिं०] ३० ठेप' ! देरा-वि० [देश॰] जिसको पाखो की पुतलियो देखने में बराबर न' टेउमा-सया पुं० [देश॰] पैसा । - रहती हो । भेगा। अंबर तक्कू। ... दे -सश / देश.] पानी की लहर । तरंय । हिलोरा।. . देराडॉक-संज्ञा स्त्री० [देश०] एक प्रकार की मछली। दे० डोक' । देकला-सा पुं० [देशी] दे० 'लॅकली' । । ढेरी-सहा स्त्री० [हिं० ढेर ] ढेर । समूह । अटाला । राशि।... - देदा-मंदा बी०सं० दृष्टि ]रष्टि। नजर। प्रख। .-रात देरु -सक्षा. हि.1 . ढेर'। उ०--कपन को ठेस जो । दिवस घनी पहरीयो । तोही मूसारी मसी गयोडेढ़।-बी० सुमेरु सो लक्षात है।-भूषण ०, पृ. ४६। रासो, पृ० २७। रेस-सक [हिला ] दे० डेला'। टेस-मक्षा श्री० [हिं०] दे० 'डॅडसी'। टेलवास-सा [हिं० ढेला+०पाश] रस्सी का एक फदा : ढेपनी-संभ बी[हि.] 2. लैंपनी' " जिससे ढेला फेंकते हैं । गोफना। ३०--इस सभ्यता लोगों . के पस्त पाल, भाले, कटार, परशु, गदा, तीर, धनुष, ढेलास पुनी-सहा स्त्री० [हिं० प १ पत्ते या फल का वह भाग को पादि।-पादि० भा०, पृ. ४८ । टहनी से, लगा रहता है । ५। २. किसी वस्तु की वाने की ढेक्षा-सा पुं० [सं० दल, हिं० डला ] १. इंट, मिट्टी, ककर, पत्थर तरह उभरी हुई नोक । ठोंठ । ३ कुषाण । पुक। पादि का टुकडा । चक्का । जैसे, ढेला फेंककर मारना। . ढेषरी' मा बी० [हिं०] दे० 'डिवरी'। यौ.---ठेला पौष । देवरी-समस्त्री० [देश॰] एक प्रकार का वृक्ष जिसे धौरी, मामरो २ टुकड़ा। बर। जैसे, नमक का ढेला। ३. एक प्रकार का मोर कही भी कहते हैं । वि० दे० 'कही। . पान । उ०-कपूर काट कबरी रतनारी। मधुकर ढेला ... देवुभा-सम पुं० [सं० ढेटवुका; या देश.] दे० 'ठेवुक जीरा सारो।जायसी (शब्द०)। देवको-समा० अधुझा या देशा०] ढेउपा । पैसा । उ---यपा देनाचौथ-संशा सी० [हिं० ढेला+चौय ] भादौ, सुदी चौथ ।। ठेवुक मुद्रा जग माहीं । है सब एक पविक सम नाहीं। भाद्र शुक्ल चतुर्थी। . - विश्राम (मेंन्द०)। विशेष-सा प्रवाद है कि इस दिन चद्रमा देखने से फलक देषवान-सभा पु० [सं० ढेलुग, देशा०] पैसा । देउमा । ताम्रमुद्रा। लगता है। यदि कोई चंद्रमा देख ले तो उसे लोगों की कुछ रेममौज-सक श्री. [ देश. ढेऊ+फा० मौज] पड़ी चार। समुत्र गालियां सुन लेनी चाहिए। पालियां सुनने की सीधी युक्ति की ऊंची लहर (लश०)। दूसरों के घरों पर ढेला फेंकना है। प्रतः लोग इस दिन देला रेर -सचा पुनहि. धरना] नीचे ऊपर रखीहत सौ यस्सों - फकते है। यह प्राय एक प्रकार का विनोद या खेलवाड सो का समूह को कुछ कपर उठा हुमा हो। राशि । भटाला। हो गया है। प्रबार । गंज । टाल । रेव्वुका-सहा श्री० [सं०] एक पैसे का सिक्का [को०] । जि.प्र.-करना । गाना। ढंकली-सका बी• [हिं० ] दे० 'ठेको । महा-ढेर करना=मारकर गिरा देना । मार डालना । उ०- ढेकुरील-सबा पं० [देश॰] एक प्रकार का मुद्धयत्र । ढलवांस । होस की वा परो। ढेर कर देगा।-फिसाना०, भा.३, गोफन । उ-बार ठकुरी जब निवान। गढ पर पखिन पृ० १३७॥ ढेर रखना= मारफर रख देना। पीताप पाचे बार-छिताई०, पृ०५५। . . मोनार रहना = (१) गिरकर मर जाना । (२) पककर चा-सका [देश॰] पर्व की तरह का एक पेड पिसकी यात्र चूर हो जाना । मस्यत शिथिल हो पाना। ढेर हो जाना से रस्सियोपनाई जाती है। हरी खाद के रूप में भी इसका , (१) गिरकर मर जाना। मर जाना । (२) ध्वस्त होना। प्रयोग होता है। बयसो। २ पापीठे पर छाजन के गिर पर जाना । जैसे, मकान का रहोना। (३) विषिष खिये सन या पटवे का रठध । हो जाना। क -समा बी० [हिं० उक ] ३० "क"। उ.-३कि पति देरी-वि० बहुत ! अधिक ! ज्यादा। . - मटामरे घने । नलकूकरी पारि पनपने ।-बिताई०, पृ०५३।" ४-४१