पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३४५

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Jate -- - .. -- Asianslatkanttrskreraturemarathamster RTER तथमुत तकदीर उ.-लिहाजा विला तममुख हँसी मोर मजाक की बातें कर पाली का साहा है और इसमें करे लगे होते हैं। इसमें चलते।-प्रेमघन॰, भाग०२, पु० ६३ । प्राय. जलेवीया (पुपा ही बनाया जाता है। २. देर । परसा । ३. सन्त्र । धर्य। सईल.---प्रत्य. [हिं०] ति। को। से। १०-कोक कहे हरि वनमुना-सहा पुं० [हिं०] दे० 'तमम्मुल'। रोति सब तई। और मिलन का सब सुख दई।-हर तअल्तुकः-समा पु०म० त मल्लुकहू.] बढ़त से मौजों की जमी- (शब्द०)। दारी। चढ़ा इलाका। सg+-मध्य० [हिं० वापि (तहि+अपि) पा तदापि यो०-तपल्लुक दार। पयवा तवपि (तद् अपि)] 1. दे० 'व' । २ दे० 'त्यों'। वमन्लुकादार-समा पुं० [म० तल्लुरुह, +फा० दार (प्रत्य॰)] उ.-मा परल नियराना जठ ही। मर सो ता कह पालट इलाकेदार । तअल्लु के का मालिक । तर हों।-जायसी (शब्द०)। तअल्लुक.दारी-सच्चा स्त्री० [म. ताल्लुकह + फा० दारी (प्रत्य॰)] तप-पग्य० [हिं० 13 ] तो भी। तिस पर भो। तव भी। तउल्लुक दार का पद । तयापि। सश्रल्लुक-सशा ०[५० तरुनुक] १. इलाका । २ सबछ । लगाव। तए-वि० [हिं० तया का बहुव० ] गरम किए हुए । गरमाए हुप। तअल्लुका-सशा पुं० [ म० ताल्लुका ] ३० 'तमल्लुकः'। तक'---प्रव्य० [सं० तावरक, ताभक्क, तक्क, तक ] एक विभक्ति को तअल्लुकादार-शा पुं० [प० अल्लुकह + फ़ा० दार (प्रत्य॰)1 दे. किसी वस्तु या व्यापार की सोमा अथवा मवधि सूचित करती 'तमल्लुक दार। है। पयंत । जैसे,... दिल्ली तक गए हैं। परसों तक ठहरो । तअल्लुकेदार-सचा पुं० [प० तअल्लुकह +फा० दार (प्रत्य॰)] दस रुपए तक देवेंगे। उ.-जो पल किया छोडिग सकेन दे० 'तमल्लुकादार'। सुव तक मार। दरस भीख उनको कहीं दीजत नहि पहचाइ। तअल्लुकेदारो-सवा स्त्री० [भ० तअल्लुकह+फा० दारी (प्रत्य॰)] -रसनिषि (शब्द०)। तमल्लुक दारी'। वकर-सवा सौ. [पं० तकडी] १ तराजू । २. तराजू का पल्ला । तअस्सब-सका पु०[. पक्षपात, विशेषत धर्म या जाति संबंधी तक'-सा स्त्री० [हिं०] दे० 'टक' । उ.-पतिल जल बरसत पक्षपात । १०–तमस्सूब मेहए हैवान दिलशादा --कवीर पोउ लोचन दिन पर बन रहत एकहि तका- प्र०, पृ० २०८। तुलसी (शब्द०)। व हु -प्रत्य० [हिं० ते भयवा सं० तस् (तसिल्), तु, तह, वर, तकड़ा-वि० [हिं०] दे० 'तगड़ा, तई 1 से। उ०-कोन्हसि कोइ निभरोसी कीन्हेसि कोइ तकड़ो-सा स्त्री [देरा] एक प्रकार की घास जो रेतीली जमीन बरियार । छारहि तई सब कीन्हेसि पुनि कीन्देसि सब छार। में पारह महीने खूब पैदा होती है । परमरा । है। —जायसी (शब्द०)। विशेष-से घोड़े बहुत चाव से खाते हैं। इसकी फसल साल में वई-प्रत्य० [प्रा. ] प्रति । को। रो। (क्व०)। जैसे,-मैने ६ या ७वार हुमा करती है। मापके तई कह रखा था। तकदीर-सपा औ•[देश॰] तराजू ( पजार)। उ0-तकडी के तल- सर्व [सं० स्वया, प्रा. तई] दे॰ 'तुम' । उ०-त प्रणदिट्ठा एक पलटे मे तो उसके सब पाप रचे मोर एक पलड़े में भग- सज्जणा, विउँ करि लगा पेम!-- ढोला०, पृ०६। वन्नाम रखा, तो पापवाला पलठा हलका हो गया।-राम. तह -सर्व० [सं० तत् ] वह । उस। 3०-१६ हुँती चन्दउ धर्म०, पृ० २६५ किया, लारनियउ माकाश।-ढोला०, दू. ४३७ । तकत -बापुं० [फा० तस्त ] दे० 'तश्त'। उ.-वाट स्तरि वइक-सपा पुं० [देश॰] धमार । (सोनारों की बोली)। तिरहुत पइट्ठ। तर पढि सुस्तान बट्ट ।-कोति०, वइनात-सा पुं० [हिं०] दे० 'तेनात'। पु० ८५ तइस -वि० [सं० तादरा, प्रप० तइस] ३० 'तैया'। तक्या -संह • [फा०तल्ठ] दे० 'तस्त'। 30-हाजीर हजूर बैठे वइसन -वि० [हि.] दे० 'तइसा' 1 3०--तनु पसेव पसाहनि तकप ताही कों पयो न जाधिये रे।-सं० दरिया, पृ०६८। भासलि, पुलग वइसन जागु-विद्यापति, पु. ३१ तकदमा-समा पुं० [प. तक़दमह, ] किसी चीज की तेयारीकावर वइसा-वि० [सं० तादश दे० 'तैसा' या 'वैसा' । उ०--पस होछा हिसाव जो पहले से तैयार किया प्राय । तखमीना। मन जेहि का सो इसन फल पाउ ।---जायसी (चन्द०)। तकदीर-साली [म. तकदीर] १ पवाजा। मिकदार । २. नई-पय [सं० तावत् ] लिये। वास्ते। भाग्य । प्रारब्ध । किस्मत । नसीर । तई २-क्रि० वि० [हिं०] वमी। तब 1 उ.-दम जरा सेंटस यो०-तकदीरवर। पर पालिस करके तई भीतर गयेन ।-मभिशप्त, पृ०५८। विशेष-'तकदौर के मुहाविरों के लिये देखो किस्मत' कई-सक्षा हि तवा पा तया का श्री.] इसका पाकार के मुहाविरे।