पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३४४

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- - - पोर जेठनिया भाव बेरम तमम्मुख तंवरमल-मश पुं० [सं० स्तम्वेरम] हापी १०-पानह दीन्ह उ.-फहै पदमाकर तिलंगी भोर भृगन को मेजर तंदूरपी समुद्र हलोरा, लहट मनुज तवेरम घोरा इंद्रा०, पृ०६६ । मयूर गुन गायो है !-पद्माकर ग्र०,५०, ३२० । तंबोल-सबा पुं० [सं० ताम्बूल] १ दे० 'तांबू पौर 'तमोल'। तवीर -सा ए० [सं० ताम्बूल] दे० 'तमोर'। उ.---ग मनरागे उ.-मपु सरूप सजि भग्गरहि ऐकु र न मरु तेल्लु ।- पागे रंग तमोर-घनानंद, पृ० ३३४ । -~-पफवरी०, पृ. ३१२ । २ एक प्र. का पेड हिंसक लॅबोल-सपुं० [हिं० दे० 'ताल'। उ०---मुख बोल रंग पत्ते लिसोहे के पत्तों से मिलते जुल होते हैं। ३ वह घारहि रासा ।-जायसी ग्र. (गुप्त), पृ० १६० । घन जो बरात के समय वर को दिया है। (पधाव) । सँवोलिना-सया स्त्री॰ [हिं• तम्बोली] दे० 'तंघोलिन' । ४ वह धन जो विवाह या वरात के तेरे साथ मार्ग- तँवोलिया-सका खी० [हि० तंदोल+इया(प्रत्य॰)] दे० 'तबोलिया। व्यय पिये भेजा जाता है।(बुर वड)। ५. वह खून जो लगाम को रगट के कारण घोड़े। पुंह से निकलता तबोली-सा पुं० [हिं० तम्बोल+ई (प्रत्य॰)] दे० 'तबोली'। है। (साईस)। तमोर -सहा पु. [हिं० दे० 'तमोर'। उ०---मगल परसाने ग कि०प्र०-पाना। रावत पधर मगल रुषि रच्यो तमोर ।-घनानद, पृ० ३२६ । तंवोलिन-सहा वी.[हिं० तम्बोली का स्त्री.]पा नेवाली सी। तँवकना-क्रि० स० [हिं०] १. ताकना' । उ० --वकि निखड बरइन । खर है गयक !-माधवानल०, पृ० २०२। । तंवोलिया-सा मी [हिं० तम्वूप+इया (प्रत्य॰) पान पामार तवचुर-संज्ञा पुं० [सं० ताम्रचूड] दे० 'ताम्रपूर'। उ०-मिए को एक प्रकार की मछली जो प्राय गंगा पौर जमुना में मजूर तेवपुर जो हारा |--जायसी (गुप्त), पृ. १६४। पाई जाती है। तपर -सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'तोमर' ५। उ०—कमध्वज करम बोली-संघा (० [हिं० तम्बोस+ई (प्रत्य॰)] जो पान बेचता गोड तंवर परिहार प्रमानो।-६० रासो०, पृ. १२२ । हो । पान वेषनेवाला । बरई। सँवाना+-क्रि० अ० [हिं० समकना] मावेश में माना। कुछ तभा -घका पुं० [सं० स्तम्म] शृगार रस १. वों में से एक। होना। 3.--सवति भौजिया मोर जेठनिया ठाढ़ी रहलि स्तभ । उ०-मोहति मुरति पासू स्वेत' ५ पुलक विचनं तंवाई।--गुलाल, पू० ५७ । - फप सुरभग मुरछि परति है।- (शब्दः । तेवार-सबा खी० [हिं० वाव ] सिर में पानेवाला चक्कर। न-सा . [सं० स्तम्भन] शृगार रसात्विक भावों , घुमटा । घुमेर । २ दरारत । ज्वाराश । में से एक । स्तभन । उ०--पारभन तमन म परिरमन क्रि० प्र०-माना ।-खाना। कषगृह सरमन मन परे है।-देव (पन्द० । तबारा-समा पुं० [वि.] दे॰ 'तवार'। . मावती-सका बी० [सं० तम्भावती या हिं•] संपूर्ण गति की एक तवारो-सहा मोहि० ] दे० 'तवार'। रागिवी जो रातसरे पहर में पाई जाती। तवाना--शि० स.[?] स्तुति करना। २.प्रतीक्षा करना। .मोल - to ताम्बूल] दे॰ 'हमोल'। ७०-(क) ० राउत राना ठाढ़ तवाही।-चित्रा०, पृ०:१७१। प्रघराम रागु तमोर जोम |--प० रासो०, पृ. ६५। (ख) तहला-कि. वि० [हिं०] दे० 'वहाँ'। उ०-ललित लस सिर ति इसन होर समोर रंग। दाडिमी बीज मान तुरग ।- पागु तर्फ, तक तह तह मुरझे।-नद० म०, १० २०७१ रसरतन., पृ०२४ । त'--सहा प० [सं०] १ नौका ! नाव । २ पुण्य । ३ घोर । ४. तई-प्रत्य० [हिं०] 'तई। झूठ । ५ पूछ । दुम । ६ गोद। ७ म्लेच्छ। ८. गर्भ 1 ६. तकारी-सझा बी० [हिं०] कारो' । पठ। १० रन । ११. वुद्ध । १२ अमृत । १३ योद्धा (को०)। तँगिया-मका बी० [हिं० सन T] दे० 'दो' । १४. रत्न (को०)। १५.१६ पिंगल (को०)। सँडलनाल-क. स. ८ तए]ोड़ना। उ०-ल्ह झोक २-क्रि० वि० सं० तद, हि. तो तो। उ.-(क) पर पायक, खेप पावल र ग्ला ।---रा० रू०, २५ पाए मानुस का पाखा । माहित पछि मठि पर पाया।- तवरा-सा पुं० [हिं०] 'सबला'। उ०-डीग र तवरा जायसी (शब्द॰) । (ख) हमहूं कलमब ठकुर मोहाती। बासा, देखो फिरंगी का -पोदार प्रमि० प्र०, १- १९ । नाहिं त मौन रहप दिन राती1- लसी (शब्द॰) (ग) करते, तेवियाना-कि .हि. या] १ तांबे के रणका ।। २. राण त तुमहिं न दोस । रामहि होत सुनत सतोसू ।-तुलसी तति के बरतन में रहने' कारण किसी पदार्थ मे. बि का (शब्द०)। . स्वाद या गंध मा वाना .. तवज्जुब-सचा पुं० [म. तपज्जुन] पाश्चर्य । विस्मय । पचभा । तबुधाल-सपा • [हिं० तबू तंबू'। क्रि० प्र०करना ।-में पाना।- होना। तबूरची-सका . फा० तबू पो (प्रत्यक्ष)] दे० 'तवूरची'। तअम्मुल~-सम्मा पं० [म. तभम्मुल ] १. सोच । फिक) विचार । मन परेरे पारमन तमन पालक मावों तवार-समालाल०, १० ५७ नाबती-