पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३४७

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सकसौर १९४३ धक्रभिद् तकसोर'-संशा खो• [५० तासीर ] १. अपराध । दोष । कसुर । करने या पाश्रय लेने का स्पान । ४ माश्रय । सहारा। २. भूल । चूक । त्रुटि । २०-सच तो यो है कि हमें इएक पासरा । भरोसा। उ०-तह तुलसी के कोल को काको सजावार नहीं । तेरी तकसीर है क्या ।-श्यामा.,पृ. १०२। तकिया रे -तुलसी (शब्द०)। ३ कर्तव्य मे कमी (को०)। ४ न्यूनता । कमी (को०)। यौ०--तकियाकलाम । तकसोर-सशासी [म.1१ प्रचुरता। मषिकता । २. वृद्धि ५ वह स्थान विशेषत शहर के बाहर पा कब्रिस्तान के पास का करना । माषिक्य करना [को०)। स्थान वहाँ कोई मुसलमान फकीर रहता हो। कविस्तान का तकाई-सका स्त्री० [हि ताकना+ई (प्रत्य॰)] ताकने की स्थान। ६. चारजाम।। (ल.)। क्रिया या भाव । २ वह धन जो ताकने के बदले में दिया तकिया कलाम-सचा पु० [फा० तकियह +म. कलाम] दे० पाय। 'सखुनदकिया। तकाजा-सा पुं० [म. तकाजा १ ऐसी चीज मांगना जिसके तक्रियागाह-सा स्त्री० [फा० तकियह+गाह] फकीर का निवास । पाने का पधिकार हो। तगादा। से,-जामो, उनसे रुपयों पोर या फकीर का स्थान को] । का तकाजा करो। २ कोई ऐसा काम करने के लिये कहना तकियादार-सक्ष पुं० [फा०] मजार पर रहनेवासा मुसलमान जिसके लिये वचन मिल चुका हो। जैसे,-बहुत दिनो से उनका फकीर । तकाजा है। चलो भाष उनके पहा हो पाए। ३ किसी तकिल-सका पु० [सं०11 धूर्त । २ पौषध । प्रकार की उत्तेजना या प्रेरणा। जैसे, उम्र या वक्त का तकिला-सखी० [सं०] १ पौषध । दवा । २ एक जड़ी (को०)। तकाजा । ४ मावश्यकता। जरूरत (को०)। ५. किसी काम के तकी-वि• [म. तकी ] संयमी । इद्रियनिग्रही। लिये किसी से बराबर कहना (को०)। तकुधा-'-सहा पुं० [सं० तकुंक ] दे० 'तकला'। यौ०-तकाजाए उम्र-(१) उम्र की मांग। (२) उम्र के तकुवा-सझा पुं० [हिं० ताकना + उमा (प्रत्य॰)] ताकनेवाला। लिहाज से कोई काम करना या न करना। तकाजाए वक्त - देखनेवाषा। समय की मांग। किसी समय क्या करना है यह मांग । तकैया-सक पु. [ हि ताकना+ऐया । प्रत्य॰)] ताकने या तकातक-क्रि० वि० [हिं० तकना ] देखते हए । देखकर निधान देखनेवाला। लेते हुए । उ-धनुष वान ले चढ़ा पारधी धनुपा के परच तकोली-सहा पुं० [देश॰] सीपम को जाति का एक प्रकार का बड़ा नहीं है रे। सरसर बान तकातक मारै मिरगा घाव नहीं वृक्ष, जिसे पस्सी भी कहते हैं । वि० दे० 'पस्सी'। है रे।-कवीर श०, भा॰ २, पृ०६९। तक्कर -संज्ञा पुं० [हिं०] दे.110 गए मुक्कि पाइल तकान-सा स्त्री० [हिं० थकान ] दे० 'कान' या 'थकावट। नगय वीर छडि तक्कर परत । दिवषयौ लग लगावली तकाना-क्रि० स० [हिं० ताकना का प्रे० रूप] १. ताकने का बियो न कोई धीरज घरत । पृ० रा०, १७।५। काम दुमरे से कराना। दूसरे को ताकने में प्रवृत्त करना। तक्कहल-पल पुं० [हिं०] वे० 'तक'। उ०—सय सुपथ पर विप्र, दिखाना । २ प्रतीक्षा करना। किसी को पाशा में रखना। वेद मत्रं अधिकारिय। उभय सहस फोषिद्द, छद कह तकाना-क्रि० स० किसी मोर को रुख करना। किसी मोर को अनुसारिय । पृ. रा०, १२ । ६३ । भागना या जाना । जैसे, रसने घने जगल का रास्ता तकाया। तक्की----सबा खी० [हिं० ताकना] ताकते रहने की क्रिया या भाव। तकावी-यका श्री. [भ० तकावी ] वह धन जो जमीदार, राणा या दे० 'टकटको'। सरकार को पोर से गरीब खेतिहरो को खेती के मौजार तस्कोल-सबा पुं० [40] एक प्रकार का पेड़। बनवाने, बीज खरीदने मा कुआँ मादि बनवाने के लिये ऋण तक्मा-संवा श्री० [सं० तक्मन् ]१ वसत नामक चर्मरोग । स्वरूप दिया जाय। २ शीतला देवी। क्रि०प्र०-बांठना ।—देना । तक्मा-सबा पुं० [हिं० तमगा दे० 'तमगा। २ इस प्रकार का ऋण देने की क्रिया। तक्मा -एक ० [हिं०] दे० 'तुकमा'। तकिव-वि० [हिं०] १. पकित । पका । २ ताकता हुमा। देखता हा 130-हिय घरकक धुधरह बदन लोइन जल। तक-सका पुं० [सं०] १. मट्ठा। छाछ । मठा । उ०-छमकत तक्र उफनि अंग पावत नहिं जानति तेहि कालहि सौ।--सूर 'निमकर । तमित चकित सभोत समग सकरिय दुषभर ।- (सन्द०) । २ शहतूत के पेड़ का एक रोग। पु० रा., ६१००। तकिया-सक्षा पुं० [फा. यह 11 कपडे का बना हमा लंबो- तक्रकूधिका-सका सी० [सं०] फटा हुमा दूष। छेना। तरा, गोल या पोकौर थैला जिसमे रूई, परमादि भरते वक्रपिंच-सहा पुं० [सं० तकपिएफटा हुमा दूष । छेना । और जिसे सोने लेटने मादि के समय सिर के नीचे रखते हैं। तक्रप्रमेह-सक पु० [सं०] पुरुषो का एक रोग जिसमें छाछ का सा मालिश । उपधान । २ पत्थर की वह पटिया मादि जो छज्जे, श्वेत मूत्र होता है, मौर मट्ठे की सी गप पाती है। रोक या सहारे के लिये लगाई जाती है। मुतकका । ३. विश्राम सक्रमिद्-मा. [सं० ] कैप । कपित्य ।