पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३५७

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२००३ तदनुरूप विशेष--यह पनार के पेट के बराबर या उससे कुछ सा होता तथागुण-या . [ ] १. मादी गुण । २. सत्य। वस्तु- है। इसकी पत्तियो नीम की पत्ती की तरह कटावदार मौर सिति कुछ समाई लिए होती है। इसमें फलियो लगती हैं जिनमें तयावा-सा श्री. [0] 'तयता मगरसे बीपपते हैं। ये वीजबाजार में मत्तारों तवानरूप- मिदनाप'30- सस से गति यहाँ समाको नाम से रिकते है और हकीमी दवा में काम होती है वह तत्वों का समवर्गीय होना पोर पोर उनमें पाते हैं। बीज के छिलके का स्वाद फूछ सट्टा मौर रचिकर निकालेर नियमो का तयादा -दा. मा. मि., होता है। इसको पत्तियों से एक प्रकार का रण निकलता है। रठल पोर पत्तियो से चमडा बहुत अच्छा मिनाया जाता तथापि-प्रध्य [क] तो नौ। तिस पर भारत नौ :70-प्रति है। हिंदुस्तान में पमड़े के बड़े बड़े कारखानों में ये पत्तियाँ तयापि प्रसम विलोबी। नागि मगाम मोकी। मिसली से मंगाई जाती है। --मानस, १।१६। तत्रत्य-वि० [सं०] वहाँ रहनेवाला (को०] । विशेष- इसका प्रयोग यश के साथ होता है.: तत्रभवान-सधा पुं० [सं०] माननीय । पूज्य । श्रेष्ठ । हम वहा नहीं गए, हयापि उनका काम हो गया । विशेष-प्रत्रभवान् की तरह इस शब्द का प्रयोग भी प्राय तथाभाव-वधा पुं० [सं०] ' गा भाव या स्पिनि सस्कृत नाटको मे अधिकता से होता है। सत्यता [को०] । तत्रस्थ-वि० [सं०] वह स्थित । वहाँ का निवासी। तथाभूत-वि० [सं०] १. उस प्रकार के गुण या प्रकृति का । २. उस स्थिति का (को०] । तत्रापि-पव्य० [सं०] तथापि । तो भी। तयाराज-सपा पुं० [सं०] गोतम युद्ध । तत्संबंधी वि० [सं० तरसवधिन] उससे सवध रखनेवाला [को०)। तयेई तायेइ ताघे - सापुं० [मनु०] ३. 'वाताई। उ०-लग्यो तत्सम - सा पु० [सं०] भाषा में व्यवहृत होनेवाला सस्कृत का वह ___फान्ह के पानि, तघेई तायेह तापे। बजनिधि को चित तुर पाद जो अपने शुद्ध रूप मे हो । सस्कृत का वह शब्द जिसका चूर फरि डारपौ राधे।-बज.प., पृ० १९। । व्ययद्वार भाषा में उसके शुद्ध रूप में हो। जैसे-दया, तथैव-प्रध्य [सं०] वैसा ही। उसी प्रकार। प्रत्यक्ष, स्वरूप, सृष्टि मादि। तथोक्त--१००] वसा वरिणत । जैसा कहा गया है। २ तपा- ततसामयिक-वि० [सं०] उस समय से सबंधित। उस समय पापित । 3.-भारत की तपोक्त ऊंची जातियों चाहे कितना का [को०)। हो ममिमान कर पर उनकी प्राकृतिया मोर इतिहास पुकार तथ-सका पु० [हिं०] ४० 'तत्व' । उ.-उह मनु कैसा जो फर्थ पुकार फर कहते है कि वह सौर्य दोष से वचो नहीं है।- परूयु । उद्द मनु फेसा जो उलट धुनि तयु!--प्रारण, पु० ३४ मार्या०, पृ. १३ । तथता-सया (सं० तथ+11] १ सत्यता । वस्तु का वास्तविक तथ्य'- वि० [म०] १. मध्य । सचाई। यथार्थता । २ रहस्य (को०)। स्वहा में निरूपण । २ तथा का भाव। उ०-यदि प्राप तथ्या --प्रव्य. से. तस] उस जगह। वह [ ] चाहे तो सस्कृतों को धर्मता, तपता का प्रशप्तिसत् मान तथ्यत -कि.मि सकते है।-सपूर्ण. ममि०प्र०, पृ. ३३५ । .] सत्य या सचाई हे मनुसार थे। तथा'-अन्य [म.] । मौर।व। २ इसी तरह। ऐसे ही। वथ्यभापी-वि० [म तथ्यमापिन् ] साफ मोर सभी बात कहनेगला। जैस~या नाम तथा गुण । तथ्यवादी-वि० [सं० तय्यवादिन] ३० सप्यभाषी'। यो०-तपारूप। तयारूपी। पावादी। तपाविधा तपा- तद्-वि० [म.] वह । विधान । तथावृत । तयाविषेप । तथास्तु ऐसा ही हो। विशेष-इसका प्रयोग यौगिक आन्दों के पारम में होता है। इसी प्रकार हो । एवमस्तु । जैसे-तदनतर, तदनुसार। विशेष-इस पद का प्रयोग किसी प्रार्थना को स्वीकार करने तेदा-कि.पि. [ तदा] उस समय सव। भयवा मागाहमा वर देने के समय होता है। ततर-फि० वि० [सं० तदन्तर ] इसके बाद । इस परात। तथा- पु. १ पत्य । २ सीमा। हद । ३ निश्चय । ४ तदनंतर-फि० वि० [सं० सदनन्तर] उसके पोछे । उसके बाद । म समानता। उपरात। तथा सानो कम्प] ३० 'तम्य' । तदनन्यत्व-सण . [10] कार्य पोर कार में पत्र। फार्म पर याकथित-वि० [सं०] जो मुलत नहोपरतु उस नाम से प्रचलित 2017 मोम नाम से प्रचलित कारणको एकतामाता हो। नामघारी। तदनु-फिनि० [सं०] १ उचके पीदे। तदनवर। उमछे अनुसार तमामय्य-f० [40] ३. 'तपापित' को । २. सो सरह । उसी प्रकार ! तबाऊत [0] इसी या उसी प्रकार किया हपा या तदनुकूल-वि० [H•] उसके अनुगार । तदनुसार। ___ निमित (०) तदनुरूप-वि० [म. उसी जमा। नती के रूप का। वधागत-- सा०] पुनका एक नाम । २. चिन (को०)। समान ।