पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३५९

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तद्वत् २००५ वनना तद्वत्-वि० [सं०] उसी के जैसा । उसके समान । ज्यों का त्यो। वनखाह-सच्चा सौ० [फा० तनख्वाह] वह धन जो प्रति सप्ताह, प्रति यो०-तत्ता-तद्वत होने का भाव या स्थिति । मास या प्रति वर्ष किसी को नौकरी करने के उपसक्ष्य में तघी-क्रि० वि० [सं• तदा ] तभी (व.)। मिलता है। वेतन । तलब। तन-सधा पुं० [सं० तनु । तुल० फा० तन 1१. शरीर। देह। तनखाहदार-सपा पुं० [फा०] वह जो तनखाह पर काम करता गात । जिस्म । हो । तनखाह पानेवाला नौकर । वेतनभोगी। यौ-तनताप %=(१) शारीरिक कष्ट । (२) भूख । क्षुधा। तनख्वाह-सधा खो• [फा० तनख्वाह दे. 'तनखाह'। मुहा०-तन को लगाना = (१) हृदय पर प्रभाव पड़ना। जी वनख्वाहदार-संधश पुं० [फा०तनस्वाहदार] तनखाहदार। मे बैठना । जैसे,—चाहे कोई काम हो, जर तन को न लगे तब दनगना -क्रि० स० [हिं०] दे० 'तिनकना'। 30-अनतहि बसत वक वह पूरा नहीं होता। (१) (खाद्य पदार्थ का) परीर मनत ही डोलत मावत किरिन प्रकास । सुनह सुर पुनि तो को पुष्ट करना । जैसे,—जव चिंता टूटे, तच खाना पीना भी कवि पाये तनगि गए ता पास 1-सूर (शब्द॰) । तन को लगे। तन तोड़ना = अंगडाई बेना। उन देना-ध्यान तनगरी-सहा श्री. [देश॰] शरीर ढंकने का मामूली वस्म । उ0- देना । मन लगाना । जैसे,—तन देकर काम किया करो। लई निगरी तोरि के सु हरि बोलो हरि बोल ।-सुदर० वन मन मारना= इद्रियो को वश में रखना। इच्छामों पर ०, भा० १, पृ० ३१७॥ अधिकार रखना। तनज-सा पुं० [म.तज] १ ताना।२ मजाक । २. स्त्री की मूद्रिय ! भग । तनजीम-सका श्री.[40 तनुजीम] अपने वर्ग को संघटित करना। मुहा०-तन दिखाना = (स्त्री का) समोग करना । प्रसंग सघटन [को॰] । कराना। तनजील--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म. तनजील] १ मातिथ्य करना। २. उता- तन-फि० वि० तरफ पोर। 10--विहसे करुना भयन चित रमा [को०] । जानकी लखन नन !-मामस, २. १००। तनजेव-समा स्त्री॰ [फा० उनजेव] एक प्रकार का बहुत ही महीन तन-सज्ञा पुं० [सं० स्तन, प्रा. पण, हि. पन; राज० तन, ] पढ़िया सूती कपडा । महीन चिकनी मलमल । दे० 'स्तन'160-तिया मान रा तन खिस्या पंटर हुवा ज तनज्जुल-सधा पुं० [म. तनपजुल] तरक्की का उलटा । प्रवनति । केस !~ढोला०,०४४२ उतार । घटाव। तनक'-माज सी. [देशन] एक रागिनी का नाम जि कोई कोई मेघ वनज्जुली-सहा पी०म० तनजुल +फा० ई (प्रत्य॰)] प्रवति। राग की रागिनी मानते है। उतार । तरसको का उलटा। तनका-वि० [हिं०] ० तनिक'। उ०-अपही देखे नवल किशोर। तनतनहा-क्रि० वि० [हिं० तन+फा० तनहा ] विलकुल मकेला। घर प्रावत ही तनक भसे हैं ऐसे तन के चोर--सूर (शब्द०)। जिसके साथ मौर कोई नहो। जैसे,—वह तनतनहा दुश्मन वनकनाgt-क्रि . [ हि० ] दे० 'तिनकना' की छावनी से चला गया। वनकीद-सधा श्री [अ० तनकी६] १ पालोचना।२ परख । [को०)। तनतना-सधा पुं० [हि तनतनाना या प० तनतनह] 1. रोबदाब । दवदवा । २ क्रोष । गुस्सा । (क्व०)। तनकीह-सक्षा स्त्री० [अ० तन्कीहा. जांच। खोजी तहकीकात । २ न्यायालय में किसी उपस्थित अभियोग के संवध में विचार- क्रि० प्र०-दिखाना । रणीय भौर विवादास्पद विषयों को दूढ़ निकालना। मदालत तनतनाना-कि०म० [अनु० या अ० तन्तनह १ दवदवा दिख- का किसी मुकदमे की उन बातों का पता लगाना जिनके लिये लाना। कान दिखाना।२ क्रोध करना। गुस्सा दिखलाना। वह मुकदमा चलाया गया हो और दिनका फैसला होना तनत्राण-सहा पुं० [सं० तनुभारण] १ वह चीज जिससे शरीर की जरूरी हो। रक्षा हो । २ फवध । बखतर। विशेष-भारत में दीवानी पदालतों में जब कोई मुकदमा दायर तनदिही-सक्षा बी० [फा०] दे० 'तदेही'। होता है, तब पहले उसमें अदालत की मोर से एक वारीस तनधर-सबा पुं० [सं० तनु+घर] है. 'तनुषारी'। पड़ती है । उस तारीख को दोनों पक्षों के वकील बहस करते तनधारी -सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'वनुषारी'। है जिससे हाकिम को विवादास्पद पोर विचारणीय बाता का तनना-क्रि०म० [सं० तन या तनु] 1.किसी पदार्थ के एक या जानने में सहायता मिलती है। उस समय हाकिम ऐसी सब दोनों सिरों का इस प्रकार मागे की मोर पढ़ना जिसमें उससे बातों की एक सूची बना लेता है। उन्ही पातो को कैद निका- मध्य भाग का झोल निकल जाय मोर उसका विस्तार कुछ लना और उनकी सूची बनाना उनकीह कहलाता है। बढ़ जाय । झटके, खिचाव पा खुमकी आदि के कारण किसी तनक्कना -क्रि० वि० [हिं० तनक] दे० 'तनिक' | उ.-रहे तनक्क पदार्थ का विस्तार बढना । जैसे, पावर या चादनी तनना, पौरि जाय फेरि मगि हल्लिय-ह. रासो, पृ०११। घाव पर की पपड़ी तनना । २. किसी पीज का जोर से किसी ४-४४