पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३६१

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पनि २०.. तनुमध्यमा तनि-कि०वि० [हिं०] दे० 'तनिक'। स०-तनि सुख तो पहियत वनुकूप--संवा पुं० [सं०] रोमछिद्र [को०)। हती हर विध विधिहि भनाय । मली भई सो सखि भयो तनकेशी-समस्त्री० [सं०] सुपर वालोंवाली स्त्री [को॰] । मोहन मयुरे पाय !-रसनिधि ( शब्द०)। वनुक्षय-सक पुं० [सं०] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार वह माम पो वनि-मध्य तरफ । मोर। मा मात्र से साध्य हो। तनि'- पुं० [सं० तनु ] शरीर । देव । तनुतीर--सा पुं० [सं०] भामहे का पेड़। । तनिक'-वि० [सं० तनु (-मल्ल)] थोड़ा । कम । २ छोटा। वनुगृह--सबा ई० [सं०[ परिवनी नक्षत्र [को०]। - १०-इहा हुत्ती मैरी सनिक मईया को तुप पार छन्यो।-- तनुच्छद-सा पुं० [सं०] कवच । बसतर। सूर (शब्द०)। तनुच्छाय-म पु० [सं०] खास बवूल का पेट। सनिक-क्रि० वि० जरा । टुक । तनुच्छाय-वि० भल्प या कम छायावाला [को०] । सनिका'--सका बी० [सं०] वह रस्सी जिससे कोई घोष बांधी जाय । तनुज-सबा पुं० [सं०] १ पुत्र। वेटा। लड़का। २ जन्मकुंडली वनिका-सर्व० [हिं० दिनका ] उसका। उ०-मना विद्यापति में लग्न से पांचवां स्थान जहाँ से पुत्रभाव देखा जाता है। कवि कठहार । तनिका दोसर काम प्रहार । -विद्या- तनुजा-सा बो• [सं०] कन्या। लड़की । पुत्री । घेती। पति०, पु.२८॥ छोटाई। २. दुर्बलता। तनिमा-सचा सौ० [सं० तनिमन् ] १ तनुता-सा सौ. [सं०] १. लघुता। यता । २ नजाकत। उ.--तनिमा ने हर खिया तिमिर, मगों में बहरी फिर फिर, दुबलापन । कृशता।। तनु में तनु भारति सी स्थिर, प्राणों की पावनता बन ।- तनुत्याग-वि० [सं०] कम खर्च करनेवाला । कृपण [को०] । गीतिका, पृ०६६। तनुत्र-सा • [सं०] दे० 'तनुश्रारण'। तनिया-सबी० [हिं० वनी] १. लंगोट । लंगोटी। कौपीन । २. तनुत्राण-सा पुं० [सं०] १. वह चीज जिससे शरीर की रक्षा हो। फछनी । जांघिया। उ.-तनिया ललित कठि विपिन टिपारी २. कवच । सतर। सीस मुनि मन हरत पचन कहे तोतरात ।-तुलसी (शब्द०)। तनुत्रान -संज्ञा पुं० [सं० सनुवाण] दे० 'तनुत्राण'। ३चोली। उ०—तनियो न तिलक सुनियो पगनियो न घामै तनुत्वचा सवा सौ. [सं०] छोटी भरणी। घुमरात छोडि सेजियां सुखन की।-भूषन (शब्द॰) । तनुत्वचा-समा सौ• जिसकी छाल पतली हो। तनिष्ठ-वि० [सं०] जो बहुत ही दुबला पतला, छोटा या कमजोर हो। । तनुदान-सा की• [सं०] भगवान । शरीरयान (समोग के लिये)। तनिसा-सा पुं० [देश॰] पुमाल । तनधारी-वि० [सं०] शरीरधारी। देहधारी । शरीर धारण करने- तनी-संखी० [सं० तनिका, हि. तानना] १. डोरी की तरह वाला। उ०-कहह सखी पस को तनधारी। जो त मोह बटा या लपेटा हुमा वह कपडा जो मंगरचे, पोसी प्रावि में येह रूप निहारी!-मानस, १।२२।। उनका पल्ला तानकर बांधने के लिये लपाया जाता है। दनुधी-वि० [सं०] क्षीणमति पल्पबुद्धि को। बंधन। 3.--कंकि ते कुपकलस प्रगट कैठि र तरक वनुपन्त्र--संक पुं० [सं०] गौवनी या गोंदी का पेठ । इगुमा वृक्ष । वनी--सूर (शब्द०) । २. दे० 'तनिया' । तनो -क्रि० वि० [सं० तनु ] दे० 'वनिक'। तनुपात-सका पु० [४०] शरीर से प्राण निकलमा । मृत्यु । मौत । तनी-वि० दे० 'तनिक'। तनुपोषक-सक पुं० [सं०] वह जो अपने ही शरीर या परिवार का पोषण करता हो। स्वार्थी। 30-तनुपोषक नारि नरा तनीदार---वि० [हिं० तनी + फा० दार] तनी या बंदवाला। सपरे। परचिवक जे जग मो बगरे।--मानस, १०२। . तनु-वि० [सं०] १. कुन्न । दुबला पतला । २ मल्प । योडा। फर्म । तनुप्रकाश-वि० [सं०] घुघले या मद प्रकाशवाला को प.कोमल । नाजुक । ४. सुंदर । बढ़िया। ५. तुच्छ (को०)। ६.छिछला (को०)। तनुबीज'-सा पुं० [सं०] राबबेर । तन--सबा खी [सं०] । शरीरदेह मदन । २.घमा । खाल। तनुपजिवि जिसके बीण घोटा। स्वक। ३ सो। पौरत । ४ घुली।'५. ज्योतिष में खन- तनुभव-संवा पु० [सं०] [बी. सनुभवा] पुत्र । वेटा । लपका। स्थान 1 जन्मकुंडली में पहला स्थान । ६. योग में पस्मिता, तनुभस्त्रा-समाधी[सं०] नासिका । नाक [को०] । राग, द्वेष पौर अभिनिवेश इन चारों क्लेशो का एक भेव दनुभूमि-संहानी• [सं०] बौद्ध श्रावको के जीवन को एक भवस्था । जिसमें पित्त में क्लेश की अवस्थिति तो होती है, पर साधन- तनभूत-वि. ] देहधारी, विशेषतः मनुष्य [को०] । पा सामग्री प्रादि के कारण उस मवेश की सिद्धि नहीं होती। . तनुमत्-वि[H] १. समाहित । सन्निहित । २. शरीर युक्त। सनुक -वि०सं० +5 (प्रत्य॰)] देतनिक" शरीरवाला। तनुक-कि० वि० [हिं०] दे० तनिक तनुमच्य-संवा [सं०] कमर वा कटि (को०। उनु - [t० तनु ] ३० 'सनु। .... वनुमध्य-वि० क्षीण कटिया,कमरवाला [को०] 1. .... तनुक-वि० [सं०] १. पतला । क्षीण । च । २. छोटा [को०)। तनुमध्यमा-वि० [सं०] पतली कमरवाली [को॰] । E1 दे० 'तानक । - -