पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३६७

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तप्तड तप्तकुंठ-संशा पुं० [सं० तप्तकुण्ड] वह प्राकृतिक बलधारा जिसका तप्तमद्रा-सासी-[सं०] द्वारका केस पक्रादि बापे को पानी गरम हो । गरम पानी का सोता या कुं। तपाकर वैष्णव लोग अपनी भुवा तवा दूसरे अंगों पर दान विशेष--पहाडों तपा मैदानों मादि में कहीं कहीं ऐसे सोते लेते हैं । पत्रमुद्रा। - मिलते हैं जिनका पानी गरम होता है । भिन्न भिन्न स्थामा विशेष- यह पार्मिक चिह्न माना जाता है और वैष्णव लोग में ऐसे सोतों का पानी साधारण गरम से लेकर खोलता इसे मुक्तिदायक मानते हैं। हमा तक होता है। पानी के गरम होने का मुख्य कारण यह तमरूपक-सवा पु ] तपाई हई और साफ पांवी । है कि यह पानी या तो बहुत अधिक गहराई से , पा भूगर्भ तप्तशुर्मी-सका पु० [सं०] पुराणानुसार एक नरक जा नाम जिसमें के अंदर की परिन से तपी हा पट्टानों पर से होता हुप्रा पगम्या स्त्री के साथ सभोग करनेवाले पुरुष पौर भगम्य पुल्चों माता है। ऐसे स्रोतों के जल में बहुधा अनेक प्रकार के के साथ संभोग करनेवाली स्त्रियां भेजी जाती है। खनिज द्रव्य (जैसे, गंधक, लोहा, भनेक प्रकार के धार) विशेष-इसमें उन पुरुषों पौर लियों को जलते र मोहे भी मिले होते हैं जिनके कारण उन पलों में बहत से रोपों समे पालिपन करने पड़ते हैं। को दूर करने का गुण प्रा जाता है। भारतवर्ष में तो ऐसे सोते कम है, पर यूरोप और अमेरिका में ऐसे सोते घडत तप्तसुराकुड-सं० [सं० तप्तसुराकुण्ड पुराणानुसार एक परक पाए जाते हैं, जिन्हें देखने सपा उनका जन पीने * लिये का नाम । बहुत दूर दूर से लोग वाप त से घोग अनेक प्रकार तप्ता'- पुं० [सं० ] १.वा। २. अट्ठी। उ०-निदानका के रोगों से मुक्त होने के लिये महीनों उनके किनारे रहते पहरे मोर एक भारी तप्ता जलाकर पावश्यक करय पारंम हो भी हैं। प्राय जल जितना प्रषिक गरम होता है, उसमें गुण पक्षा 1-प्रेमघन॰, भा०२, पृ.१५२ । भी उतना ही अधिक होता है । ऐसे सोतों के पल में दस्त तप्ता-वि० तप्त करनेवाचा । लाने, पल पढ़ाने या रक्तविकार पापि दूर करनेवाले खनिज तप्साभरण-सबा पुं० [सं०] शुद्ध सोने का गहना [को०] 1 द्रव्य मिले हुए होते हैं। तप्तायन-सपा पुं० [सं० दे० 'तप्तायनी' [को०)। तप्त भ--मा [सं० ताकुम्म ] पुराणानुसार एक बहुत भयानक तप्तायनी-संजी.[0] वह भूमि को दीन दुखियाको पात नरक जिसके विपय में यह माना जाता है कि वहां खीचते सठाकर प्राप्त की जाय। हए तेल के कड़ाहे रहते हैं। उन्हीं कड़ाहों में दुराचारियो को यम के दुत फेंक दिया करते हैं। तप्ति-भाबी [सं०] तप्त होने की अवस्था या भाव । गरमी । __ ताप [को०] । तप्तकच्छ-सबा पुं० [सं०] एक प्रकार का व्रत जो बारह दिनों में समाप्त होता पौर प्रायश्चित्तस्वरूप किया जाता है। तप -० [हिं० रुप ] दे० 'तप' उ.-साधक सिद्धिन पाय पो सहि साधिन तप्प | सोई पानहिं बापुरी सीस वो करहि विशेष-~-इसमे बच करनेवालों को पहसे तीन दिन तक प्रतिदिन कलप्पा -बायसी प्र० (गुप्त), पु. १२३ । तीन पल गरम दूष,तब तीन दिन तक निस्य एक पस घी, फिर तीन दिन तक रोज छह पल गरम षस पोर अत में तीन तप्य-संच पुं० [0] शिव । दिन तक गरम वायु सेवन करना होता है। गरम वायु से तघ्य–वि० [सं०] जो तपने या तपाने योग्य हो। तात्पर्य गरम दूध से निकलनेवाली भाप का है। यह व्रत कर तफरकुर-सदा पुं० [अ० तफरपुर] पिता फिक। २. से द्विजों के सब प्रकार पाप नष्ट हो जाते हैं। किसी किसी भयाशका। उ.-मेरी खुराफ मागे से इस सफरपुर में पापी के मन से यह व्रत केवल चार दिनो में किया जा सकता हो गई।-भारतेंदु १०, मा० १, पृ०५२२ । है। इसमें पहले दिन तीन पल गरम दूध, पूसरे दिन एक पल तफजुल-सा पुं० [म. तफजुल ] बड़ाई । वरप्पन [को०] । गरम घी मौर तीसरे दिन छह पल गरम जल पीना चाहिए तफतीश-सका बी.प. ती छानबीन । बोजगषया। पौर पौथे दिन उपवास करना चाहिए। १०-में दौसा हुमा पिता जी के पास गया। वह कहीं तफ- तप्तपापाण-सा पुं० [सं०] एक नरक का नाम । तीश पर जाने को वैयार सड़े थे । मान०, पृ. ३ । तलवालक-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक नरक का नाम । वफरका-सया • [म. सफ़कं] विरोध । वैमनस्य । तप्तमाप-सहा . [ से प्राचीन काल की एक प्रकार की परीक्षा क्रि० प्र०--डापना।-पाना। जिस व्यवहार या अपराष प्रादि के समय में किसी मनुष्य के तफराको पु० [हिं०] तमचा। उ.-होर मुसम्मन पर फपन की सत्यता मानी जाती थी। तफराक मारना गुनाह कनीरा है।-बस्थिनी., पृ.४.।। विशेष-इसमें लोहे या तांबे के बरतन में घी या तेल खोलाया तफरीक-शा श्री. [म. सफरीक ] 1 जुदाई। मित्रता पक्ष- पाता और परीक्षार्थी उस पोसते हुए पी या तेस में अपनी हदगी । २ बाकी निकासना । पटाना (गणित)। उगमी डालता था। यदि उसकी उंगली में छाले मादिन क्रि०प्र०-निकामना। परवे तो वह सच्चा समझा जाता था। ३. फरक । तर । ४. बंटवारा । बाँट । टाई (कानुन)। तफराको क मारला जरीकामा (गणित)