पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३६६

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तपिश २०१२ तप्तक विशेष--इसकी छाल तथा पत्तियां मौषध के काम में पाती है। सपोभंग-सधा पुं० [सं० तपोभङ्ग] विघ्नादिके कारण तप का भार इसे घिरमी भी कहते हैं। होना [को०] । तपिश-सा बी० [फा०] गरमी । तपन पांच । ताव। -सा बी० [सं०] तप करने का स्थान । तपोवन । सपी- पु[हिं० तप+ई(प्रत्य॰)].प करनेवाला । तपस्वी। -सधा पुं० [सं०] परमेश्वर । तापस । ऋषि । उ.--धनवत फुलीन मलीन पपी। विज तपोमर्ति-सहा पुं० [सं०] १ परमेश्वर । २ तपस्वी। ३ पुराणा- चीन्ह जनेउ उघार तपी ।-मावस, ४१०१।२ सूर्य (रि.)। इसार पारहवें मन्द तर के चौपे सावरिंग के समय के सप्तपियों तपीसर -वि० सं० तपीश्वर ] तपस्या करनेवाला । उ.-न में से एक ऋषि का नाम । सोहागनि महापदीत । सपे तपीसर डाले चीत ।-कवीर पं०, तपोराज-शा ए० [सं०] चंद्रमा [को॰] । पृ० २८४॥ तपोराशि- पुं० ] तहत वडा तपस्वी। तपु'-सा पुं० [सं० तपुस्] १ मग्नि । माग । २ सूर्य । रवि ३ शत्रु । तपोलोक---सक्षा ० [सं०] पुराणानुसार चौदह लोको मे से ऊपर तपुर-वि०१. तप्त । उष्ण । गरम । २ तापने या गरम करनेवाला । के सात लोको में से छठा लोक जो जनलोक भौर सत्य तपुरान-वि० [सं०] जिसका अगला भाग तपा या पाया हमा लोक के बीच में है। हो[को०] । विशेष-पद्मपुराण में लिखा है कि यह लोक तेजोमय हैऔर तपुराणा-सा खी० [सं०] बरछी या भाषा [को०] । जो लोग अनेक प्रकार की कठिन तपस्याएं करके भी कृष्ण तपेदिक-सं० [फा० तप+छ.दिका राजयक्ष्मा। यो रोग। भगवान को संतुष्ट करते हैं। वे इस लोक में भेजे जाते हैं। तपेस्साहु-सा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'तपस्या'। तपोवट-संश पुं० [सं०] ब्रह्मावतं देश । तपोज-वि० [सं०] १ जो तपस्या से उत्पन्न हुमा हो। २ जो मग्नि तपोवन समा० [सं०] वह एकांत स्थान या बन जहाँ तप बहुत उत्पन्न हुपा हो। मच्छी तरह हो सकता हो । तपस्वियो के रहने या तपस्या तपोजा-सया बी• [सं०] अल । पानी। करने के योग्य वन। विशेष-प्राचीन आर्यों का विश्वास था कि यज्ञ पादि को पनि तपोवरण-- विदेशी] तप से च्युत कर देनेवाली। उ०-एक ___को सहायता से ही मेघ धनता है, इसीलिये जल का एक नाम तेरी तपोवरण 1-मर्चना, पृ० ३। 'सपोज' पडा। तपोवल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] तप का प्रभाव या मुक्ति । तपोड़ी-सक्षा श्री० देश॰] काठ का एक प्रकार फा वरतन । -(पश०)। तपोवृद्ध–वि० [सं०] जो तपस्या द्वारा श्रेष्ठ हो। तपोदान-सका पुं० [सं०] एक प्राचीन पुण्यतीर्थ जिसका वर्णन महा- तपोवृद्ध-संश पुं० बहुत बड़ा तपस्वी [को॰] । भारत में पाया है। तपोत्रत-संध्या पुं० [सं०] १ तपस्या सवधी व्रत । २ वह जिसने तपोधति-सचा ई० [सं०] चारहवें मन्यतर के एक ऋषि [को०] 1 तपस्या का व्रत धारण कर लिया हो [को०] । पोधन-सधा पु० [सं०] वह जो तपस्या पतिरिक्त पोर की तपोशहन-सहा पुं० [सं०] १ तामस मनु के पुत्र तपस्य का एक नाम न करता हो। तपस्वी। उ०---सिद्ध तपोधन जोगि जन सुर २ तपसोमूर्ति का एक नाम । किन्नर मुनि ६-मानस, १।१०५ । २ धौने का पेड । - तपौनी-सस बी• हि तापना ] ठगो को एक रसम को मुखा- तपोषना-सधा स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी। फिरों के गिरोह को लूट मार चुकने और उनका माल ले लेने तपोधनी-वि० [सं० तपोधनिन् । 'तपोधन'। उ.--तुपोषनी में पर होती है। इसमे सब ठग मिलकर देवी की पूजा करते है पौर गुग पढ़ाफर उसी का प्रसाद मापस में बांटते हैं। जात फहायो। से नहिं जान्यो सन्मुख प्रायो।-शकुतला, मुहा०--सपोनी का गुड़=(1) तपौनी की पूजा के प्रसाद पु. ६२ का गुरु जो फिसी नए मादमी को पहले पहल तपोधर्म-संका . [सं०] तपस्वी । अपनी मडली में मिलाने समय ठग लोग खिलाते है। तपोधाम-तथा [.तपोधामन् ] तप करने का स्थान । २ (२) किसी नए मादमी को अपनी मंडली में मिलाने के एक प्राचीन तीर्थ (को०)। समय किया जानेवाला काम या दिया जानेवाला पदार्थ । तपोधृति-शा पुं० [सं०] पुराणानुसार मारह मन्दतर के चौथे २ दे० 'तपनी'। सावणि सप्तर्षियों में से एक ऋषि । तप्त-वि० [सं०] १ तपाया या तपा हमा। जलता हुमा। तपोनिधि-शा पुं० [सं०] तपोनिष्ठ । तपस्वी । तापित । गरम । उष्ण । २ दुखित । क्लेशित । पीड़िता तपोनिष्ठ-सा पुं० [*•] तपस्वी । यौ०--सप्त शरीर जलती हई देह । १०-कभी यहाँ देखे थे . तपोवन -सा पु० [सं० तपोवन] २० 'तपोवन' । __ जिनके, श्याम बिरह से तप्त शरीर-अपरा, पु. १०२।। । उपोयल-पका पु० [सं०] तपस्या से प्राप्त बल, तेज या थक्ति [को०] ! तप्तक-संच पुं० [सं०] कड़ाही (को०] ।