पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३७

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जड़ापल १६८० जतुगृह क्रि० प्र०-देना-स्वल्प वेतनभोगी कर्मचारियो को जाड़े के अब के ऐसे जतनन जती। विवाहि गर्भ बीच ही हतों- कपडे या उसके विनिमय में धन देना ।-मिलना । नंद००, पृ० २२२ । जड़ावना-सडा पुं० [हिं० जड़ावर ] दे० 'जडावर'। जतनी'-सधा पुं० [ सं० यत्न ] १. यरन करनेवाला । २. सुचतुर । चालाक। जढ़ावला-वि० [हिं० जड़ना ] बढ़ाया हुमा । सचित । जतनी२..-सक्षा श्री० [ म० यत्न (रक्षा) 1 यह रस्सी या डोरी जड़ित-वि० [हिं० जहना या सं० जटित ] जो किसी चीज में जतना जिसे चखें (रहट) की परियों के किनारे पर माल के टिकाव जड़ा हुमा हो । २. जिसमें नग मादि जडे हो। के लिये बांधते हैं। जदिमा-सा स्त्री० [सं० जडिमन् ] १ जहता । जडत्व। २ एक जवनु -सहा पुं० [हिं०] दे० 'यत्न'। उ०—करेह सो जतनु भाव जिसमें मनुष्य को इ! अनिष्ट का ज्ञान नही होता मोर " विवेक विचारी। -मानस ११५२। वह जड़ हो जाता है।३ मौस्यं । मूर्खता। जतराई-समा स्त्री० [ मै० यात्रा ] दे० 'यात्रा'। उ०-मां पोर स्त्री जड़िया-सचा तु० [हिं० जड़ना] १. भगों के जहने का काम को साथ लेकर वह जगन्नाथ जी की जतरा कर पाया था।- करनेवाला पुरष । वह जो नग जहने का काम करता हो। नई०, पृ०१०७ कुंदनसाज । उ०..--हकनाहक पकरे सकल जडिया कोठीवाल । जतलाना-क्रि० स० [हिं० जताना ] दे० 'जताना'। मर्ष०, पु०४३ । २. सोनारों की एक जाति या वर्ग जो गहने। में नग जड़ने का काम करती है। जतसरी-सशा पुं० [हिं० जाता] दे० 'जैतसर' । जडी-समाली हिजट ] वह वनस्पति जिसकी जद मौषध जता(OT-वि०, अव्य० [सं० यत् ] दे० 'जितना' । उ०--मेरे पास धन माल है होर मता। तुजे देऊगी मैं सारा जता ।- काम में लाई जाय । बिरई । दक्खिनी०, पृ० ३७६ । यौ०-जही वूटी जंगली मौषषि या वनस्पति । जताना-क्रि० स० [सं० ज्ञात] १. जानने का प्रेरणार्थक रूप । शात जयोभत-वि० [सं० जडीभूत ] स्तब्ध । निश्चल । जडभाव को कराना। बतलाना । २ पहले से सूचना देना । आगाह करना ! प्राप्त । गतिहीन । उ०-गौसम ने जिस परिवर्तन के अमर जताना -क्रि० प्र० [हिं० जाँता] दे० 'जंताना'। सत्य को पहचाना था, क्या यही गतिशील होकर चल सका। जवारा-ससा पुं० [हिं० जाति या सं० यूथ वश । खानदान । कुल । लौटकर पाया कहाँ जहाँ शाश्वत जडीभूत स्थिरता का जाति । घराना। पाषाण माकाश घूमने का प्रयत्न कर रहा था। प्रा०भा० ५०, पृ० ४७५। जति' -कि० [सं० जेतृ] जेना। जीतनेवाना। उ०-घरन पीठ उन्नत नत पालफ, गूढ गुसुफ जघा कदली जति ।-तुलसी जड़ीला'-सशा (० [हिं० जह+ईला (प्रत्य॰)] १वह वनस्पति प्र०, पृ०४१५ जिसकी जह काम में माती हो। जैसे, मूली, गाजर । २ वह ऊंची उठी हुई जह जो रास्ते में मिले। -(कहार )। जतिन-सक्षा पुं० [सं० यति] दे० 'यति'। उ०-स्वान लग जति न्याउ देख्यो मापु वैठि प्रचीन । नीधु हति महिदेव बालक कियो जड़ीला--जहदार । जिसमे जड़ हो। - मोचु विहीन । तुलसी ग्र०, पृ० ४२२ । जडया--सक्षा पुं० [हिं० जहना ] चांदी का एक गहना जो छल्ले जाती-सचा पुं० [ म० यतिन् सन्यासी। दे० 'यति'। उ०-जती - की तरह पैर के अंगूठे में पहना जाता है। पुरुप कहुं ना गहैं परनारी को हाथ |--शतला०, पृ० ६७ १ जडुल-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'जटल' । जती -सचा त्री० [सं० यति छद में विराम ! दे० 'यति"। जया -सधा ग्री[हिं० जादा+ऐया (प्रत्य॰)] वह बुखार जता सझाए० [सं०] वृक्ष का निर्यास । गोंद । २ लाख । साह । जिसके भारभ में जाड़ा लगता हो । जूडी । ३ शिलाजतु । शिलाजीत । जदा-वि० [सं० अर] दे० 'जट' । जतु-सझा ली गेदुर । चमगादड (को०] । जदता-सला श्री० [सं० जहता ] दे० 'जनता'। जतुक-सशा पं० [सं०] १ हींग। २. लाख। नाह। ३ शरीर के जदाना-क्रि० प्र० [हिं० जड़ या जक] जड हो जाना। २. हठ घमडे पर का एक विशेष प्रकार का चिह्न जो जन्म से ही करना । जिद करना । अपनी बात पर पड़े रहना। होता है। इसे लच्छन या लक्षण भी कहते हैं । जता'-वि० [सं० यत् ] जितना । जिस मात्रा का। जतुका-समा श्री० [सं०] १ पहाडी नामक लता जिसकी पत्तियाँ जत--सफा पुं० [सं० यति ] वाद्य के बारह प्रवों में से एक। पौषष के काम में पाती हैं। २ चमगादडा ३ लाक्षा। होली का ठेका या ताल । लाख । लाह (को०)। जतन -मन पुं० [सं० यरन दे० 'यत्न । उ०-बार बार जतुकारी-सक्षा स्त्री० [सं०] पर्पटी या पपडी नाम की लता। मुनि जतन कराहीं। मत राम कहि मावत नाही।-सुलसी जतुकृत्-सक्षा स्त्री० [सं०] दे० 'अतुकृष्णा ' [को०] । ( शन्द०)। जतुकृष्णा-सा सी० [सं०] जतुका या पपडी नाम की लता। जवना -क्रि० स० [ यस्न, हि० जतन ] यत्ल करना 11.- जतुगृह-समा पुं० [सं०] घास फूस ऐसी चीजों का बना हुमा घर