पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३८

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जतुनी जो जल्दी जल सके। २. लाख का बना घर जैसा वारणावत में दुर्योधन ने पांडवों को भस्म करने के लिये बनवाया था। लाक्षागृह (को०)। जतुनी-सच्चा सौ. [सं०] चमगादड़। जतपत्रक-सधा पुं० [न०] १ शतरंज का मोहरा । २ चौसर की गोटी। ३ लाख का बना हुमा रूप या प्राकार [को०)। जतुमणि-का. [सं०] एक प्रकार का क्षुद्र रोग जिसमें दाग पड जाता है । जटल । जतुक । जतुमुख-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का धान । जतुरस-सहा पुं० [सं०] लाख का बना हुला रग । अलक्तक । महावर । जत-सम्चा बी० [सं०] एक पक्षी का नाम । चमगादड । २. लाख का बना हुप्रा रग। जतूकर्ण-संशा पुं० [सं०] एक ऋषि का नाम । जतूका-सशास्त्री० [सं०] दे॰ 'जतुका'। जतेक -क्रि० वि० ( म० यर या हिजितना+एक ] जितना। जिस मात्रा का । जिस सख्या का। जत --क्रि० वि० [सं० यत्र, प्रा. जरय ] जहाँ। उ--ब्रजमोहन मोह की मुरति राम जतै घनि रोहिनि पुन्य फत्री- घनानद०, पृ० २०.! जत्था--मझा पुं० [मं० यूथ] वहत से जीवों का समूह । मुहागरोह । कि०प्र०-वाधना। यी०-जत्यादार, जत्थेदार= जत्या अर्थात् समूह का प्रधान या नायक । जत्र -फ्रि०वि० [सं० यत्र] जहाँ । जिस जगह । उ०--किते जीव संमूह देखत भज्ज । मृग व्याघ्र पीते ग्छि जब गज्ज।- ह. रासो, पृ० ३६ । जवानी-सुशासौ. [ देश०] जाटो की एक जाति जो रुहेलखड मे चरुती है। जन्न-समा पु० [मं०] १ गले के सामने की दोनों भोर की वह हड्डी जो कंधे तक कमानी को तरह लगी रहती है। हंसली। हसिया । उ०-यज्ञोपवीत पुनीत विराजत गूढ जयु बनि पोन अस तति । -तुलसी प्र०, पृ० ४१५ । २ कधे और बाह का जोड। जयश्मक-सा पु० [मं०] शिलाजीत । पथ -सन्हा पु० [सं० यूथ ] जत्या। पूछ । यूथ । उ०---झांझ 'त करत घोर घटा घहरि घने । घुघरू पिरत फिरत मिलि एक जथ! --भारतेंदु ग्र०, भाग २, पृ० ४४७ । जथा--क्रि० वि० [सं० यथा ] १ दे० 'यथा'। २०-जथा भूमि सब वीज मैं, नखत निवास प्रकास । रामनाम सब घरम में जानत तुलसीदास । -तुलसी ग्र, भाग २, पृ० ८। यौ०-जथाजोग । जथापित । जथारुचि = अपने इच्छानुसार। उ०-बट फरि कोटि कुतकं जथारधि वोलह ।-तुलसी , १०३४। जथालाभ = जो भी मिल जाय उसमें । जोभी प्राप्त हो उससे। उ.-जपालाश सतोप सदाई।--मानस, ७१४६। जथा-सहा स्त्री० [सं० यूथ 1 मंग्ली। गरोह । समूह । टोसी। कि०प्र०-बांधना ! जथा-सचा बी० [सं० गथ ] पूजी। धन । संपत्ति । यौ०-जमा जपा। जथाजोग -क्रि० वि० [सं० ययायोग्य ] दे० 'यथायोग्य' 1 उ.-- जपाजोग भेटे पुरवासी गए सूल, सुखसिंधु नहाए । सूर०, ६ । १६८। जथाथित@-क्रि० वि० [सं० यथास्थित ] जैसा था वैसा ही। ज्यों का त्यौ । उ०शिवहिं विलोकि ससकोत यारू। भयर अथाथित सबु ससारू -मानस, १।८६ । जथारथ -ग्रव्य० [सं० यथार्थ] दे० 'यथार्थ' । उ०-जे जन नियत जधारपवेदी। स्वारथ पर परमारथ भेदी। मद मं०, पृ० ३०२। जथारथवेदी-वि० [सं० पधार्थ+वेदिन ] यथार्थवेता। सच्चाई को जाननेवाला । जथापकास-कि० वि० [सं० यथावकाश ] पथकाश के अनुसार। उ.-जाके जठर मध्य जग जिती। जथावकास रहत है तितौ ।नद० प्र०, पू० २२६ । जथासंखिg-अव्य० [सं० यथासख्य ] क्रम के अनुसार । जैसा कम हो उसके अनुसार । १०-वसे वर्ण च्यारचौ जथाससि वास । चहू पाश्रमं ी तज लोभ मास ।-ह. रासो, पृ० १७ । जद -क्रि० वि० [सं० यदा ] जब । जब कभी। उ०—(क) अव जागू तद एकली, जब सोक तब बेल /-ढोला०,०५११ । (ख) ब्रजमोहन घनमानंद जानी जद चस्मों विच माया है। -धनानंद०, पू०११। जदार-प्रव्य. [सं• यदि ] अगर । यदि । जद-सहा स्त्री॰ [फा० जद ] १ आघात। चोट । २. लक्ष्य । निशाना । ३ सामना [को०)। जदनी-वि० [फा० जुदनी ] मारने या वध करने योग्य । जदपि-क्रि०नि० [सं० यद्यपि ] दे० 'यद्यपि' उ०-जदपि पकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना।- मानस, १ । ७६ । जबदा-सचा पुं० [हि.] दे० 'जद्दवद्द'। जदल-सा पुं० [अ०] १ युद्ध । संघर्ष। २. झगडा । हुज्जत [को०] । जवर, जद्वार-सज्ञा पुं० [अ०] जहर के असर को दूर करने- वाली एक घास । निविषी। जदा-वि० [फा० जदह, ] पीडित । सत्रस्त । मारा हुमा । जैसे, गमजदा । मुसीवतजदा = विपत्ति का मारा। जदि -प्रय० [सं० यदि ] मगर । जो। जदीद-वि० [ प.] नया । हाल का । नवीन । जदुर-सहा ५० । स० यदु । द० 'यदु। जदुईस -सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'जदुपति'।-प्रनेकार्थ, ०६१ जदुकुमबु सम्श पुं० [हिं० दे० 'यवश