पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४०

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जनप्रवाद जनकपुर १६८३ जनकपुर-सशा पु० [सं०] मिथिला की प्राचीन राजधानी । जनथोरी- श्री० [देश॰] ककडवेल । वेंदाल । विशेष-सका स्थान माजकल लोग नेपाल की तराई में बतलाते जनजाति-समा सी० [सं० जन+जाति ] जंगलों और पर्वतीय क्षेत्रों हैं। यह हिंदुपों का प्रधान तीर्थ है और हिंदू यात्री प्रति वर्ष में रहनेवाली जाति या वर्ग। वहाँ दर्शन के लिये जाते हैं। जनधन-सा पुं० [सं० जनधन ] १ मनुष्य और सपत्ति । २. जनकात्मजा-मथा श्री [म.] सीता। जानकी (को०। सार्वजनिक धन । जनकारी-सशा पुं० [सं० जनवारिन्] लाख या बना हुमा रग। जनधा--मश पुं० [सं०] अग्नि पाग । भालतक। जनन-सशा पुं० [सं०] १. उत्पत्ति । उद्भव । २. जन्म । ३ जनकौरकु-सज्ञा पुं० [हिं० जनक पौरा (प्रत्य॰)] १. जनक का प्राविर्भाव । ४ तत्र के अनुमार मत्रो के दस संस्कारों में से स्थान । जनक नगर। २०-वाजहि डोल निसान सगुन सुभ पहला सस्कार जिसमें मत्रो का मात्रिका वरणों से सद्धार किया पाइन्हि। सिय नहर जनकौर नगर नियराइन्हि। -तुलसी जाता है। ५ यज्ञ मादि में दीक्षित व्यक्ति का एक सस्कार ग्र०पू०५६ । २. जनक राना के वशज या सघधी । उ०- जिसके उपरात उसका दीक्षित रूप में फिर से जन्म प्रहण कोसलपति गति सुनि जनकौरा। मै सब लोक सोक बस करना माना जाता है। ६ वश । कुल । ७ पिता । . चौरा। तुलसी (शब्द०)। परमेश्वर । जनक्षय-मश्रा ० [सं०] महामारी । जोपनाश [को०] । जनना-क्रि० स० [सं० नमन (= चन्म)] सतान को जन्म देना । प्रसव जनखदाँ-सा ए० [फा. बनस+दी ठोड़ी। चिबुक । उ०-जन करना । उ०-(2) जनस पुत्र मम पजे नमारा। तदपि खदा में तेरे मुम चाहे उमजम का असर पिसता ।--कविता बनवि हर सोच अपारा 1-फपीर (भान.)। (ख) रम सम को०, मा.४, पृ.६। जघन दुति देखत नसत जनन जग माही।--रघुराज (शब्द०) जनखा-वि० [फा. जनमह या जनानहJ१ जिसके हाव भाव जननाशीष-सपा पुं० [म० जनन+प्रशोध] यह प्रशीष जो घर मे आदि औरतों के से हों। २ हीवड़ा । म सक । किसी का जन्म होने के कारण लगता है । वृद्धि। जनगणना-सहा स्त्री० [सं० जन+गणना] मधुमशुमारी। जनसख्या जननि -प्रक्षा बी० [सं० जननि] दे० 'जननी'। धमझि मटेन की गिनती। समाज सब, अननि जनक मुसुकाहिं। -तुलसी (शब्द०)। (ख) हाँ इहाँ तेरे ही कारन मापौ। तेरी सौं नि जननि जनगी-सदा नी [देश०] मछली । जसोदा मोहि गोपाल पठायो।-पुर०, १०१४७८ ।। जनवरी-संभा पु० [सं० जन+ गृह मडप । -(हि.): जननी-सहा ग्री[सं०] १ उत्पन्न करनेवाली। २ माता) मा। जनचक्षु-सझा पुं० [ मं० जनचनुम् ] सूर्य। २०-(क) जननी जनकादि हितू भए भूरि बहोरि भई उर जनचर्या-समा श्री० [ मं०] तोकवाद । सर्वसाधारण में फैनी की जरनी।-सुलसी (शब्द०)। (स) करनी करुनासिंधु की हुई बात। मुख कहत न धावै । कपट हेत परसे बकी जननी गति पावै ।- जनजल्पना-सहा पुं० [म० जनजल्पना] लोकचर्चा 1 अफवाह [को०] 1 सूर०, ११४ । ३. जूही का पेट । ४ कुटकी । ५ मजीठ। ६. जनजागरण-सा पुं० [म० जन+जागरण ] जुनसमुदाय मे स्वहित जटामासी । ७ मलता । ८ पपड़ी। पपरिका। चमगादड। । की दृष्टि से चेतना उत्पन्न होना । १०. दया ! कृपा । ११ जनी नाम का गधद्रव्य । जनता-सच्चा सौ[सं०1१ जनन का भाव । २ जनसमूह । सब- जननेंद्रिय-सधा बी० [सं० जनन इन्द्रिय ] १ वा दिय साधारण जिससे प्राणियों की उत्पत्ति होती है। भग। योनि । २, यौ०-जनता जमादन = जनसमक्ष रूपी ईश्वर । लोकपी उपस्थ (को०)। ईश्वर । जनपद-सचा पुं० [सं०] १ ऐशा । २ सर्वसाधारहा । निवासी। जनतत्र--सहा पुं० [सं० जन + तस्त्र] जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियो देशवासी । प्रथा । लोक। लोग । उ०----ज्यों हुलास रनिवास का शामन । सोकतत्र । प्रषातत्र । नरेशहि त्यों बनपर रषधानी।-तुलसी (शब्द०)। ३. यो०-जनतवादी = लोकतत्र को माननेवाला। राज्य । ४ पाचनिक क्षेत्र । ५ मनुष्य जाति (को०)। जनतांत्रिक- वि०म० जन+तान्त्रिक ] बनतष सबधी। 30- जनपदकल्याणी-समा स्त्री० [सं० बमपर+कल्याणी ] गणतत्र की विजित हो रहा यात्रिक मानव ! निखर रहा जनतात्रिक __सामान्य (जनभोग्या) विशिष्ट गरिएका । मानव 1 -अणिमा, पृ. १२० । जनपदी-सया पुं० [सं० जनपदिन] देश, समाज, क्षेष का शासक को। जना-साना रमी संग छाता या इसी प्रकार की और कोई चीज जनपदीय-वि० [सं०] जनपद का । जनपद सबधी। जिससे धूर और वृष्टि से रक्षा हो।। जनपाल, जनपालक–स पुं० [सं०] १ मनुष्यों का पोषण करने- जनत्राता-मशा पुं० [अ० जन+त्राता] सेवक की रक्षा करनेवाला। वाला । सेवक या धनुचर का पालन करनेवाला । लोक का रक्षक। 10-मह दन गएउ मलन जनयाता ।- जनप्रवाद-सज्ञा पुं० [सं०] १ लोकप्रवाद । लोकनिदा। २. जनस । मानस, ७.११०। पफवाह । किंवदती।