पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३९

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जदुनाथ जनकनदिनी जदुनाथ -सा पुं० [हिं०] २० 'यदुनाथ' उ०-बिनु दीन्हें ही देत सूर प्रमु, ऐसे हैं जदुनाथ गुसाई।-सूर०, १।३।। जदुपति -सहा . [सं० यदुपति ] श्रीकृष्ण। 30-कोक कोरिक संग्रही कोच लाख हबार । मों सपति जदुपति सदा विपति विदारनहार-विहारी (शब्द॰) । जदुपाल-सज्ञा पुं॰ [ सं० यदुपाल ] श्रीकृष्ण । जदुपुरी -सञ्ज्ञा पुं० [सं० यदुपुरी ] राजा यदु का नगर । यदुकुल की राजधानी, मयुरा अथवा यदुनों की पुरी द्वारका । उ०- दृष्टि पडी जदुपुरी सुहाई।-नंद० प्र०, पृ० २१३ । जबशी-सहा गु० [हिं०] दे० 'पदुवशी। उ०-कुज कुटीरे जमुना तीरे तू दिखता जदुवशी ।-हिम कि०, पृ० २४ । जदुराइल-संहा पुं० [ मै० यदुराज ] यदुपति । श्रीकृष्णचद । जदुराज -सज्ञ पुं० [सं० यदुराज ] श्रीकृष्णचद । जदुगम -सपा पुं० [स० यदुराम ] यदुकुल के राम । बलदेव । जदुराय -सझा पु० [सं० यदुराज ] श्रीकृष्णचद्र । जदुवर -सक्षा पुं० [ स० यदुवर ] श्रीकृष्णचद्र । जदुषीर -सदा पुं० [सं० यदुवीर ] श्रीकृष्णचद्र । जद्द -वि० [अ० ज्यादह, ] अधिक । ज्यादा। जहर-वि० [ मं० योद्धा ] प्रचह। प्रबल । उ०-छागलि चलेउ समद्द सूप वलहद्द जद्द प्रति ।-गोपाल (शब्द॰) । 'ज-सा [.] दादा । पितामह । बाप का बाप । जद्दपिल-क्रि० वि० [सं• यद्यपि ] दे॰ 'यद्यपि। जहवद- पु० [सं० यत्मवद्य प्रथवा हिं० मनु०] अकयीय वात । वह बात जो न कहने योग्य हो । दुर्वचन । जही-सहा स्त्री॰ [प्र. ] चेष्टा । कोशिश । प्रयल । दौडधूप [को०] । जद्दी-वि० [.] मौल्सी । वापदादे की [को०] । जद्दोजहद-सहा स्त्री॰ [भ] दौरधूप । चेष्टा । प्रयत्न । उ०-- ___ व्यक्ति विलीन दलो के दुर्मद, जद्दोजहद में रद्दोबदल मे -- मिलन०, पृ० १७३। जद्यपि-क्रि० दि० [सं० यद्यपि ] दे० 'यद्यपि'। उ०-सहज सरल रघुवर वचन, कुमति कुटिल फरि जान । चने जौक जल वक्रगति, जद्यपि सलिल समान !-"तुलसी ग्र०, पृ० १०१ । जनगम-सक्षा पुं० [सं० जनगम ] चाहाल । जन-सज्ञा पुं० [सं०] १. लोक । लोग । यौ० जनभपवाद -अफवाह । लोकापवाद । उ०-जन अपवाद गूजता था, पर दूर-अपरा, पृ० १३६ । जन प्रदोलन - उद्देश्यपूर्ति के लिये जनसमूह द्वारा किया हमा सामूहिक प्रयल या हलचल । जनजीवन = लोकजीवन । जनप्रवाद । जनक्षय । जनथुति। जनवल्लभ । जनसमूह । जनसमाज। जनसमुदाय । जनसमुद्र - जनसमूह । जनसाधारण । जनसेवक । जनसेवा, मादि। २ प्रजा। ३. गंवार । देहाती। ४, जाति। ५ वर्ग । गण। उ.-पार्य लोग इस समय भनेक जनों में विभक्त थे। प्रत्येक जन एक पृथक् राजनैतिक समूह मालूम होता है ।-हिंदु. सभ्यता, पु. ३३ 1६ अनुयायी। अनुचर । दास । उ०- (क) हरिजन हस दशा लिए होलें । निर्मल नाम धुनी चुनि बोलें ।-कबीर (शब्द॰) । (ख) हरि भर्जुन को निज पन जान । खे गए तह न जहाँ ससि भान -सूर०, १०। ४३०६। (ग) जन मन मजु मुफर मन हरनी। किए तिलक गुन गन वस करनी !-तुलसी (शब्द॰) । यौ--हरिजन। ७ सह। समुदाय । जैसे, गुणिजन । ८ भवन । ६ वह जिसी बीविका शारीरिक परिश्रम करके दैनिक वेतन लेने से चलती हो। १० सात महाव्याहृतियों में से पांचवीं व्याहृति । ११ सात लोकों में से पांचों लोक। पुराणानुमार चौदद खोकों के प्रतर्गत ऊपर के सात लोको में से पांचों लोक जिसमें ब्रह्मा के मानसपुत्र पौर बरे बडे योगीद्र रहते हैं। १२ एक राक्षस का नाम । १३ मनुष्य । व्यक्ति । जन-समा बी० [फा० जन] १. महिला। नारी। २ स्त्री। पत्नी । भार्या । 30-मुसल्ला विद्या उसका जन गनियाज । -दरिखनी०, पृ० २१५ जेन' -वि० [सं० जन्य ] उत्पन्न । जनित । जात । उ०-सतर्सया तुलसी सतर तम हरि पर पद देत। तुरत मविद्या जन दुरित पर तुल सम करि क्षेत।-स० सप्तक, पृ० २५ । जनस -सपा [हिं० जनेउ ] दे० 'जनेऊ'। उ०-फोट घाट पनउ तोड। -कीति०, पृ०४४ ॥ जनक'-वि० [सं०] पैदा करनेवाला । जन्मदाता। उत्पादक । जनकर--सबा पुं० [सं०] १ पिता। वाप। २ मिथिला के एक राजवश की उपाधि। विशेष-ये लोग अपने पूर्वज निमि विदेह के नाम पर वैदेह भी कहलाते थे। सीता जी इस कुल में उत्पन्न सोरध्वज की पुत्री थी। इस कूल में दहे वो ग्रह्मशानी उत्पन्न हुए हैं जिनकी कथाएँ ब्राह्मणो, उपनिषदो, महाभारत पोर पुराणों मे भरी पही हैं। ३ सीता जी के पिता सीरध्वज का नाम । यो०-जनकतनया =सीता । जनक की पुत्री। उ०-तात जनक- तनया पह सोई।-मानस. १६२३१ । अनकनंदिनी। जनक- दुलारी। जनकपुर । जनकसुता =३० जनकात्मजा। उ०- जनकसुता जगजननि जानकी।-मानस, १५१८ । ४ सवरासुर का चौथा पुत्र । ५ एक वृक्ष का नाम । जनकता-सझा खी० [म.] १ उत्पन्न करने का भाव या काम । २ उत्पन्न करने की शक्ति । जनकदुलारी---सज्ञा स्त्री० [म० जनक+हिक दुलारी] सीता। जानकी। जनकनदिनी-सबा बी० [सं० जनकनन्दिनी] सीता। जानकी । उ०-जनकनदिनी जनकपुर जब ते प्रगटी माइ। तब ते सब सुख सपदा अधिक अधिक मधिकाइ।-तुलसी ग्र०, पृ० ८३ ।