पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४११

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वापसेतु २०५७ सापेजम तापसेतु-सा पुं० [सं०] एक प्रकार की ईम । ताप्ती-समाधी० [हिं०] दे० 'ताफ्ता' वापसेष्टा-सझा श्री० [सं०] मुनस्का । दा [को०] । ताप्य-सका पुं० [सं०] सोनामक्खो। तापस्य-संहा[सं०]१ वापस धर्म। तपस्या। २. वैराग्य। ताफता-- स० [फा० तापत्तहा २० 'ताफ्ता' । उ०-झुटो न सिसुता सन्यास (को०] की झलक झलक्यो जोवन प्रग । दीपत देह दुहून मिलि विपति तापस्वेद-सबा [सं०1१ किसी प्रकार की उष्णता पहुंचाकर ताफता रग-बिहारी (शब्द०)। उत्पन्न किया हुमा या ज्वरादि की उष्णता के कारण उत्पन्न ताफ्ता-सका पु० [फा. तानह ] एक प्रकार का चमकदार रेशमी पसीना। २ गरम बाल, नमक, वात्र, हाथ, प्राग की पाच कपठा। घूप छोह रेशमी कपड़ा। मादि से सेंककर पसीना निकालने की भिया । ताव-सबा नी [फा०1१. ताप । गरमी। २ चमक । पाभा । तापस्स -सपा पुं० [हि.1 दे० 'तापस-१'। उ०-जगम इक दोमि । ३. शक्ति । सामथ्र्य । हिम्मत । मजाल । जैसे,—उनकी तापस्स मिल्यो वरदार सुद्ध मन ।--पु रा०,६१४२ क्या ताव कि मापके सामने कुछ बोलें? ४. सहन करने की तापहर-वि० [से. ताप+हि. हरना ] तपन या दाह को दूर शक्ति। मन को वश में रखने की सामर्थ्य । घयं । जैसे,----अब करनेवाला। उ०-तापहर हृदयवेग लग्न एक ही स्मृति में, इतनी तान नहीं है कि दो घडी ठहर जायें। कितना अपनाव 1-अनामिका, पू० ६६1 ताबड़तोड़-क्रि० वि० [अनु० ] एक के उपरात तुरत दुसरा, इस तापहरी-संचसी•[सं०] एक व्यजन का नाम । एक पकवान । क्रम से प्रति क्रम से। लगातार | रावर । (भावकारा)। तावनाक-वि० [फा०] प्रकाशमान । ज्योतिर्मय | चमकता हमा। विशेष-उरद को बरी मिले हप घोए चावल को हलदी के साथ उ०-वचन का प्रजब मय यो है ढावनाका फहमदार के गोश घो में तले या पकावे । तल जाने पर उसमें थोड़ा अल सल का जिस्म खुश्क ।-पक्खिनी०, पृ० २६७ । दे। जब रसा तैयार हो जाय, तब उसे प्रदरफ पोर हीग से तावॉ--वि० [फा०] ज्योतिर्मय । प्रकाशमान । वीप्त । रोशन। बघारकर सतार ले। ताबावि० [प्र. तावमा दे० 'तावे'। तापा-सहा हिं० टोपना?] मछली मारने का तस्ता ताबार--सक्षा पु. अधिकार का उ०-राके वंश जाया भूमि ताबा (सब०)। २. मुरगी का दरवा। की प्रडाई।-विखर०, पु० २७ । तापायन-संश [सं०] वाजसनेयी शाखा का एक भेद । ताविश-सबा बी० [फा०] गर्मी । उष्णता । उपन। 30-तुज तापिंछ-सापुं० [सं० तापिञ्छा दे० 'दापिंज' । हुस्न के खुरशीव का तिरलोक मे ताविश पड़े।-वरिखनी०, तापिंज-सका [सं० तापिञ्ज] १ सोनामवखी। २ श्याम पृ० ३२१ । उमाल । ताबी-सका प्रो० [फा०ताय ] ताप । गरमी । उष्णता उ.- तापिप-संवा पु[सं०] तमाल वृक्ष । उ०-चढ़ी तापिच्छ शाखा मक्का भिस्त इज्ज को देखा। मबरा भाव मौर ताची 1- सी भुजाएँ-अनुव को मोर दाएँ और बाएं।-साकेत, घट०, पू. २११। पू. ६३॥ तावीज-सका [म. तावीज़ ] दे० 'तावीज' । उ०-हीरा तापित-वि० [सं०]१ ताफ्युक्त। जो तपाया गया हो। २. मुज तानाज में साहुत है यह धान-स० समक, १०५ दुखित । पीड़ित । ताबीर-सहा श्री० [40] स्वप्न मादि का शुभाशुभ वर्णन । वापिनी-सका खौ० [सं० ताप ? ] अनाहत चक्र की एक मात्रा । १०-इबादत में रहता है रोशन जमीर। बतावेगा तावीर तापी-वि० [सं० तापिन् ] १ ताप देनेवाला ।२ जिसमें ताप हो। मह मदं पीर ।-दक्विी०, पृ. ३०.। ताबूत-सा पु०[10] वह संदूक जिसमें मुरदे की साथ रखकर तापी-संथा बुद्धदेव । गाने को ले पाते हैं। मुरदे का सदुक । 104-कुश्तए हसरते तापीर-समा स्लो०१ सूर्य की एक कन्या। दे० 'तापती'। २ तापती दीवार है या रव किस्के । नल्ल ताबूत में जो फूल लर __ नदी। यमुना नदो। नरगिस्फे।--श्रीनिवास० ०, .८५! तापीज-शा पुं० [सं०] सोनामपक्षी। माक्षिक पातु । तावे'.--वि० [अ० तापन] १ क्षणीभूत । मधीन । माहत । बैसे- वापुर-सपा पुं० [पालि] महामोधिसत्व का दूसरा नाम । उ०- जो तुम्हारे तावे हो, उसे पांख दिखामो। २.माज्ञानुवर्ती नवधीक्षित भिक्षु बोधिसत्व होने की प्रतिज्ञा करते हैं और उसके हुक्म का पारद । बाद से उनर शिष्य उन्हें 'तापुर' या महाबोधिसत्व कहकर यो०-ठानेवार। सबोधित करते हैं। संपूर्ण भि० ग्रं..पू. २१४ । ताबेगम-सधा स्त्री॰ [फा. ताप +10 गम] दुख सहने की पूरि ताद-सहा पुं० [सं० तापेन्द्र सूर्य । उ०-नमो पातु तापेंद्र देव को प्रतीच नमो मे रवि रक्षा रक्षेदु दी। -विश्राम (शब्द०) तावेजन्त-सधा श्री [फा. दाव+म.डन्त ] प्रेम को पोकाया तातो-सबा श्री [सं० तापती] दे० ठापती' । दुस सहने की शक्ति [को०)।