पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४१०

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वापत्य २०१६ वापसी तापत्य'–प सं०] अर्जुन का एक नाम [को०] । लकीर के रूप मे कपर की भोर चढ़ता है मोर कम गरमी पाकर नीचे की पोर घटता है। गली हुई वरफ या बरफ | तापत्य-वि० तापती सबधी [को०] । के पानी में नसी को रखने से पारे की लकीर जिस स्पान | तापद-वि० [सं०] कष्टदायक [को०)। तकनीचे पाती है, एक चिह्न वहाँ सगा देते हैं और मौनते तापदःख-संज्ञा पुं० [सं०] पातंजल दर्शन के अनुसार दुःख का एक हुए पानी में रखने से जिस स्थान तक ऊपर बढ़ती है, दूसरा चिह्न वहाँ लगा देते हैं। इन पोचों के बीच की दूरी को १०. विशेष-पातबल दर्शन मे तीन प्रकार के दुख माने गए हैं, अथवा १५० बराबर भागो में चिह्नो के द्वारा बांट देते हैं। तापदुःख, सस्कारदुःख भोर परिणामदुखि । २० 'दुख' । ये चिह्नश या रिग्री कहलाते हैं। यंत्र को किसी वस्तु पर तापन-सका पु०सं०] १. ताप देनेवाला। २. सूर्य। ३. कामदेव रखने से पारे की लकीर जितने प्रमों तक पहुंची रहती है, . के पांच पाणों में से एक। ४. सूर्यकांत मणि । ५ भकं वृक्ष । उतने मंशों की गरमी उस वस्तु मे कही जाती है। मदार। ६. ढोल नाम का बाजा । ७. एक नरक का नाम । सापयान-वि० [सं०] उष्ण । जलता हुमा [को०] । ८ तत्र में एक प्रकार का प्रयोग जिससे शत्रु को पीडा होती है।६ सुवर्ण। सोना (को०)।10. कष्ट देनेवाला (को०)।११. वापा-सपुं० [सं० ताप ] क्रोष।- (हि.)। ग्रीष्म ऋतु (को०)। १२ असानेवाला (को०)। ११. मत्संना तापल-वि० गरम । उत्तम तपा हमा। ३.-एक कहा यह जीउ करनेवाला (को०)।१४ अवसाद । कष्ट । विषाद (को०)। पियारा तापल रहा सरीर मझारा |-द्रा०, पृ.५८ । तापन--वि०१.कदा कष्टकारक । २ गरमी देनेवाला। ताप- सापव्यंजन-सका ० [सं० तापम्यञ्जन ] वे गुप्तचर या फिया कारक को०] । पुलिस के मादमी जो तपस्वियो या साधुनो के वेश में तापना-सक्षा खी० [सं०] पवित्रता । शुद्धता (को॰] । रहते थे। तापना-कि०म० [सं० तापन] माग की पांच से अपने की गरम विशेष-कौटिल्य के समय मे ये समाहर्ता के अधीन होते थे। करना। पपने को भाग के सामने गरमाना। कहीं कहीं ये किसानों, गोपों, व्यापारियों तथा भिन्न भिन्न प्रध्यक्षों के धूप लेने के भयं में भी बोलते हैं, जैसे, वह ताप रहा है। कपर दृष्टि रखते थे तथा पशु राजा के गुमघरो मोर पोर विशेष-'माग तापना' मादि प्रयोगो को देख प्रषिकाय लोगों आकुमो का पता भी लगाया करते थे। ने इस क्रिया को सकर्मक माना है। पर माग इस क्रिया का तापश्चिव-सा पुं० [सं०] एक यज्ञ का नाम । कर्म नहीं है, क्योंकि भाग मही गरम की जाती है, गरम किया तापस'- संभा पुं० [सं०] [ श्री. तापसी ] १ तप करनेवाला। जाता है शरीर । 'शरीर तापते हैं, 'हाप र नापते है ऐसा तपस्वी। उ०-सली । कुमार सापरा कहते हैं कि आतिथ्य नहीं बोला जाता। दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि इस स्वीकार करना होगा।-मारतेंदु, मा. १, पृ०६४। क्रिया का फल कर्ता से अन्यत्र कहीं नहीं देखा जाता, जैसे कि २ माल । तेजपत्ता।३ दमनका दौना नामक पौधा ।। 'तपाना' में देखा जाता है। 'भाग तापना' पक संयुक्त क्रिपा एक प्रकार की ईख ५ वर्क | बगला । है जिममें भाग तृतीयांत पद (करण) है। तापस-वि० तपस्या या तपस्वी से संबंधित । वापना-क्रि० स०१शरीर गरम करने के लिये जलाना । फूंकना। तापसक-सम पुं० [सं०] सामान्य या छोटा तपस्वी। वह तपस्वी संयो०क्रि०-डालना। जिसकी तपस्या थोड़ी हो। २. उसाना । नष्ट करना। बरबाद करना । जैसे,- सारा धन वापसज-सा पुं० [सं०] वेषपत्ता। तेजपात । क तापकर किनारे हो गए। तापसतह-सपु० [सं०] हिंगोट वृक्ष। गुमा का पेड। गुदी यो०-कना तापना। तापना -क्रि० स० तपाना । गरम करना । उ-तापी सम विशेष--तपस्यो लोग वन में गुदी का ही तेल काम लावे भूमि यो कृपान भासमान सों।--भुषण २०, पृ०४५ थे, इसी से इसका ऐसा नाम पड़ा। तापनीय-सधा पुं० [सं०] १ एक उपनिषद् । २ एक प्राचीन तौल तापसहम-सहा पुं० [सं०] गुवी वृक्ष । जो एक निष्क के बराबर पी [फो०] । वापसप्रिय:--वि० [सं०] १. जो तपस्वियों का प्रिय हो। २ तापनीय-वि• सोने से युक्त । सुनहला [को०] । जिसे तपस्वी प्रिय हो।। तापमान-सा संताप+मान] पर्मामीटर या गरमी मापने तापसप्रिय-सझt.१ इगदी पक्ष । २ चिरीजी का पर। के यंत्र द्वारा मापी गईशारीर या वायुमन की ऊष्मा। तापसप्रिया-सा मी० [सं०] भगूर या मुनक्का । दाख। सापमान यंत्र-संवा पु[सं० तापमान+यन्त्र] उष्णता की मात्रा मापने का एक या । गरमी मापने का एक यत्र । गरमी मापने तापसवृक्ष-सका ई० [सं०] दे० 'तापसतर' । का एक प्रौजार। वापसव्यंजन-n. [सं० तापसव्यश्चन ] ३. 'तापम्पजन') विशेष—यह यत्र शीशे को क पतसी नली में कुछ दूर तक सापसी-सबबी [सं०] १ तपस्या करनेवाली स्त्री। २. तपस्वी पारा परफर बनाया जाता है। अधिक गरमी पाकर पा पारा की स्त्री।