पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४२

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जनलोक जनाउ लोकनिंदा। बदनामी। ३ बहुत से लोगों का कोलाहल । हल्ला । शोरगुल। जनलोक-मशा पुं० [मे०] ऊपर के सप्तलोकों में से पांचों लोक। दे० 'जन' ११ । जनवरी-समा श्री० [अ० जनुपरी] अप्रेजी साल का पहिला महीना जो इकतीस दिनों का होता है। जनवल्लभ-सबा पुं० [सं०] १. श्वेत रोहित का पेठ । सफेद रोहिडा । २ जनप्रिय । लोकप्रिय । जनवाई-समा स्त्री॰ [हिं० जनाना ] दे० 'जमाई'-२ । जनवाद-मझा पुं० [ ०] दे० 'जनरव' । ननवाना-क्रि० स० [हिं० जनना 1 जमने का प्रेरणार्थक रूप । प्रसव कराना । लहका पैदा कराना । जनवाना-क्रि० स० [हिं० जानना ] समाचार दिलवाना। किसी दूसरे के द्वारा सूचित कराना । जनवास-पच्छा पुं० [सं० जन्य + वास ] १ सर्वसाधारण के ठहरने या टिकने का स्थान । लोगों के निवास का स्थान । २ बरातियों के ठहरने का स्थान । वह जगह जहाँ कन्या पक्ष की पोर से बरातियों के ठहरने का प्रबंध हो । उ०-(क) सकल सुपास जहा दीन्ह्यो जनवास तहाँ कीन्हो सन्मान दे हुलास त्यों समाज को।कबीर (शब्द०)। (ख) दीन्ह जाय जनवास सुपास किए सब । घर घर बालक बात कहुन लागे सब ।- तुलसी (शब्द.)। ३ सभा। समाज । जनवासना-क्रि० स० [म० जनवास+ना (प्रत्य०)] प्रागत जन को ठहरने या बैठने का स्थान देना । १०-तोरन सुचारु प्राचार करि के जनवासत महपहि । -पृ० रा०, ७.१७७ ।। जनवासा-सा ० [सं० जन्यवास] दे० 'जनवास'-२ । उ०-प्रति सुदर दीन्हेठ जनवासा । जहं सब कई सव भाति सुपासा। -मानस, ११३०६ । जनव्यवहार-समा पुं० [सं०] लोकप्रसिद्ध या लोक में प्रचलित चलन या रीति रिवाज [फो०] । जनशून्य-वि० [सं०] जनहीन । निर्जन । सुनसान । जनश्रत-वि० [सं०] प्रसिव । विस्पात । मशहूर । जनश्रुति-सन्ना बी० [सं०] ग्ह खबर जो बहुत से लोगों में फैली हुई हो पर जिसके सच्चे या झूठे होने का कोई निर्णय न हमा हो । अफवाद । किंवदती। क्रि० प्र०-उठना ।-फैलना जनसख्या-सका बी० [सं० जन+मरुपा ] किसी स्थान विशेष पर बसने या रहनेवाले लोगों की गिनती। मानावी । जैसे,- (क) काशी की जनसंख्या दो लाख के लगभग है। (ख) कलकत्ते की जनसख्या में बचई की अपेक्षा इस बार कम वृद्धि जनसाधारण-भक पुं० [हि.] सामान्य जन । माम जनता । जनसेवक-वि० [सं० जन + सेवक ] जनता की सेवा करनेवाला । जनता का हित जनता जनसेवा-समो० [सं० जन+ सेवा ] सर्वसाधारण हित का काम । जनसेवी-वि० [सं० जन+सेविन ] दे० 'जनसेवक' । जनस्थान--ससा पु० [सं०] दंडकारण्य । दडफवन । जनहरण-सहा पुं० [सं०] एक दंडक वृत्त का नाम । विशेप-यह मुक्तफ का दूसरा भेद है मौर इसके प्रत्येक घरण में तीस लघु मौर गुरु होता है। जैसे,-लघु सब गुरु इक तिसर न मन घर भजु नर प्रभु मघ जन हरण । जनहित--सहा पुं० [सं० जन+हित ] लोकोपकारी कार्य। लोक- कल्याण । ३०-फा न कियो जनहित जदुराई । सूर०, १।६। जनहीन-वि० [सं०जन + हीन ] निजंन । पिजन । जनशून्य । जनांव-सहा पुं० [सं०जनान्त ] १ वह प्रदेश जिसकी सीमा निश्चित हो। २. यम । ३ वह स्थान जहाँ मनुष्य न रहते हो। जनांत-वि• मनुष्यों का नाथ करनेवाला । जनांतिक-संत्रा पुं० [सं० जनान्तिक] १ दो भादमियों में परस्पर वह समितिक बातचीत जिसे मोर उपस्थित लोग न समझ सकें। विशेष-इसका व्यवहार बहुधा नाटकों में होता है। २ व्यक्ति का सामीप्य । जना'-सधा स्त्री० [सं०] १ उत्पत्ति । पैदाइश । २ महिष्मती के राजा नीलध्वज की स्त्री का नाम । मिनी। विशेष-भारत के अनुसार पांडवों से अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को पकड़नेवाला प्रवीर इसी के गर्भ से उत्पन्न हुपा था। उस घोडे के लिये प्रवीर और पांडवों में जो युद्ध हुमा था उसमें इसने (जैमिनी ने अपने पुत्र को बहुत सहायता और उत्तेजना दी थी। जव युद्ध में मवीर मारा गया तब यह स्वयं युद्ध करने लगी। श्रीकृष्ण को इससे परियों की रक्षा करने में बहुत कठिनता हुई थी। जना-सज्ञा पुं० [4. जिन ] दे० "विना'। जना--वि० सं० जन्य ] [ वि०सी० जनी ] उत्पन्न किया हमा। जन्माण हुमा। जना@:-डा पुं० [सं० जमी (= माता) का हि०० रूप] उत्पन्न करनेवाला पिता। 10-एकै बनी बना ससारा। फौन ज्ञान से भयउ प्यारा ।-कपीर बी०, पृ. १२ । जनाईश नी० [हिं० जनना] १. बनानेवाली। दाई । २. जनाने की उजरत । पैदा कराई का हक या नेग। दाई की मजदूरी। जना -सवा पुं० [हिं० जनाव] दे० 'जनाव' । उ...एवष- नाप चाहत पलन, भीतर फरह जबाट। भप प्रेम बस सचिव सुनि, विष समासर राह|-ससी (पम्प) । जनसंवाध-वि० [ 10 ] सघन वसा हुपा (को०] 1 जनसमूह-संज्ञा पुं० [सं० जन+समूह ] सर्वसाधारण मनुष्पों का समुदाय । आम जनता का मजमा।