पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३

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जनाकर १५८६ अनिका' जनाकर-वि० [सं० जन+पाकर ] मनुष्यों से भरा हुमा। अनानापन-सना पुं० [फा० जमानह +पन (प्रत्य॰)] मेहरापन । जनाकीर्ण। १०-ग्राम नही वे ग्राम माज प्रो नगर न मगर स्त्रीत्व। जनाकर। प्राम्या, पृ० ११ । जनानी-वि० सी० [ फा जनानह ] दे० 'जनाना' । जनाकार-वि० [अ० जिनह+फा० कार ] धुरा काम करनेवाला। जनाब-संज्ञा पुं०प०बी० जनाबा] १. बडों के लिये ग्रादर सचक व्यभिचारी । उ०-कहीं मजमा है मर्दोजन जनाकार । पाम्य । महाशय। महोदय । जैसे, जनाब मौलवी साहब। -कवीर म०, नु०४७ । २. पावं। पहलू (को०)। ३. प्राश्रम (को०)। ४. चोखट । जनाकीर्ण-वि० [सं०] सघन प्रावादीवाला। मादमियों से भरा देहली। ड्योड़ी । ५ उपस्थिति । मौजूदगी (को०) 1 हया। जनाफर 1 30-हवड़ाहे जनाफीरणं स्थान मे उन जनावधाली-सपा पुं० [अ० ] मान्यवर । महोदय । प्रतिष्ठित दोनो ने अपने को ऐसा छिपा लिया, जैसे मधुमक्खियो के पुरुषो के लिये आदरसूचक घोषन । छत्ते में कोई मक्खी।--तितली. पु० २१६।। जनार्दन'-सा पुं० [सं०] १ विष्णु । २ शालग्राम की घटिया का जनाचार-सहा पुं० [सं०] देश या समाज प्रादि की प्रचलित फा एक भेद । ३. कृष्ण (को०)। रोति । लोकाचार। जनार्दन-वि० चोगों को फष्ट पहुँचानेवामा । हु खदायी । जनाजा-सा पुं० [अ० जनाजह, ] १ मृत शरीर । मुर्दा । बव। जनाव-सपा पुं० [हिं० वमाना] बनाने की क्रिपा । सुचना । इत्तिला। लारा। उ०-सुदी खूध की खोइ जनाजा बियते फरमा।- २०-घनत व काहहि कियो बनाद । हरि प्यारी सो बाढयो पलटु०, पृ० १४ । २ घरपी या वह संप जिसमें लाय को भाय । रास रसिक गुण गाइ हो । -सुर (पाद)। रखकर गाड़ने, जलाने पा और किसी प्रकार की प्रतिम जनावना-फि० स० वि० जनामा ] सूचित करमा। विदित क्रिया करने के लिये ले जाते हैं। उ०-छुटेंगे जीस्त के करना । जताना। शापित करना। ३०-तातें प्राप मागे फदे से कौन दिन प्रातिश । जनाना होगा कर अपना रवा नहीं कहा जनावमो? जो कोई न जानतो होइ ठाको जनाइए। मालूम ।-कविता को०, भा०४, पृ० ३८१। यो-सौ वावम०, भा०१.पु०२३१ । क्रि० प्र०-उठना । निकलमा !--रयां होना। अनाप -सया पुं० [हिं० जानवर ] दे० 'बामवर' । १०--पास (नातिग-वि० [सं०] प्रसाधारण । असामान्य । बोकोसर (को०] । में कोई जवावर म रहन पावे -दो सौ यावम., मा. निाधिनाथ-सचा पुं० [सं०] १ ईश्वर । २ राजा। १. पू० २१०॥ नाधिप-सहा पुं० [सं०] १. रामा मरेण । २ विषा का एक जनाशन-सप्ता पुं० [४०] 1 भेडिया। २. मनुष्यभक्षक। वह जो नाम [को०] यादमियों को खाता हो। ३ आदमियों को खाने का काम । जनाती-सज्ञा पुं० [पयवा हिं० पम ( यज्ञ - विवाह )+प्राती जनाश्रय-सया पुं० [सं०] ठहरने का स्थान । धर्मशाला। (पत्रा के)] कन्या पक्ष के लोग । घराती। सराय [को०)। जनानखाना-सक्षा [घ० जनान + फर० खानह ] घर का वह भाग जनाश्रय-सा पुं० [सं०] १ धर्मशाला या सराय प्रादि वहाँ जिसमें लिया रहती हों। स्त्रियों के रहने का घर। प्रत पूर यात्री ठहरते हों। २ वह मकान या मंडप मादि जो किसी उ०-प्रद उन्हीं की सतान, जनानखानों में पतली छडी सिप विशेष कार्य या समय के लिये बनाया जाय। ३. साधारण भग्रेजी सूता को पड़ी सक्षमा कृषों से युसवाते ठेवले ना घर । मकान। रहे हैं।-प्रेमघन०, पृ००६ । जनि-सधा सी० [सं०] १ उत्पत्ति । जन्म । पैदाइश । २ मिससे जनाना--क्रि० प्र० [हिं० जानमा का प्रे०प] मालुम पराना। कोई उत्पन्न हो। मारी । स्पी। ३ माता । ४. जनी नामक बताना । १०-सोइ जानइ जेहिवेह बनाई। जाचत तुम्हहिं गषद्रव्य । ५ पुषय' । पतोहू । ६ मायाँ। पत्ली । ७. तुम्ह हो पाई।-मानस, २११२७ 1 स्तुका । ८ घन्मभूमि । संयो० कि०-ऐना ।-रखना। जनि-कि० वि० [हिं० पाना] जनु । मानो। उ०-पीम पयोधर जनाना-क्रि० स० [हिं० जनना का प्रेरणार्थक रूप 1 उत्पन्न अपरब मुंवर ऊपर मोतिन हार। बमि कनकाचन उपर कराना । जनव का काम परामा । विमल पम दुइ थप सुरमरिधार-विद्यापति, पृ०३६ । संयो० कि०-देना। जनि-प्रप. [हि] मत । नही। न ( निषेधार्थक)। नाना--वि० [फा० जनानह ] [वि०ी० जनानी] १ सियो का १०-अनि लेह मातु कलक करुना परिहरह प्रवसरु नहीं। म्थी समधी । जैसे, जनाना काम, जनानी सुरत, जनानी ---मानस, १९७६ बोली। २ नामर्द । नपुसका हीजड़ा।३ निबल । डरपोक । जनि -स० [हि.] दे० 'जिस'। 10-जनि का जन्म होइस हम ४ पौरत । स्त्री। पत्नी। गेलहुँ ऐलहुँ तनिकर पते ।-विद्यापति, पृ० २५२ । जनाना-सा पुं० १ जनखा । मेहरा । २, प्रत पुर । जनानखाना। जनिक-वि० [सं० ] उत्पन्न करनेवाला । जन्म देनेवाला [को०)। मुहा:-जनाना करना - पर्दा करना। स्थान को पर्देवाली स्त्रियों जनिका'-सबा श्री॰ [हिं० जनाना ] पहेली। मुमम्मा। बुझौवल । के माने जाने योग्य करना। जनिका-वि० [सं०] दे० 'अनि' [को०] ।