पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४२२

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धारित सार्योयीक वारित-वि० सं०] १. तारा हमा। पार किया हुपा। २ जिसका तारुण--वि० [सं०] युवा । जवान !ि उदार हुमा हो [को०] । तारुण्य-सपा पुं० [सं०] यौवन । जवानी । ३०-झलकता पाता वारी-सहा वी० [ देश ] १. एक प्रकार की चिडिया। २. निद्रा । प्रभी तारुएय है । मा गुराई से मिला मारण्य है।-साकेत, ३ समाधि । ध्यान | उ.-(क) विकल पचेत तारी तुम ही रयों लगी रहे।-घनानद, पृ० २००१ (ख) सूनि समापि तासन -सपा श्री. [हिं० दे० 'तरुण'1 30-तरु अंब गोष लागि गई तारी-जायसो ग०, पृ० १०.। तारुन विविध सपिय गौप उम्भिप सरस । प्रतिबिद मुष्ण तारी-संघा स्त्री० [हिं०] दे० 'सानी' । उ०-घुटकी तारी थाप दे राका दरस मुह गावत बहुमान जस । --पु० रा०, १२६७१। पळ जिवाई बैग --फवोर में, पु० ११४ ॥ वारूg+- पुं० [हिं०] दे॰ 'ताल। तारी -सहा वी. ft.] दे० 'ताही। तारूपी -वि० [हिं० तारना] वारनेवाला । उद्धार करनेवाला। तारी-वि० [सं० तारिन्] १. उद्धार के योग्य बनानेवाला । २ उद्धार उ-तासगी ट देखिही, ताहाँ प्रस्याना -दादू, करनेवाला । उदारक [को०] । पृ० ५६२ । तारीक-वि० [फा०] १ स्याह । फाला। २ घुघला। घंधेरा। तारेय--संज्ञा पुं० [सं०] १. तारा या वालि का पुष भंग । २. ३०-~स के सारीक अपनी प्रास्त्रों में माना हो गया ।- वृहस्पति की स्त्री तारा का पुत्र बुध । ३. मंगल प्रव (को०)। भारतेंदु पं०, मा० २, पृ०८४६/ वारीकी-शा खौ• [फा०] १ स्याही। २ प्रधफार 150-इस्लाम ताव-वि० [सं०] बुना हुमा [को०] 1 प्राफताव शि प्रागे कुम फी वारीकी फमी ठहर समती तार्किक-सपा ० सं०] १ तर्कशास्त्र का पाननेवाला।२ तस्वदेता। है ?-भारतेंदु, मा० १, पृ० ५२९ । दार्शनिक। तारीख-पक्षबी प्र०] १ महीने का हर एक दिन (२४ घंटों ता --सा पुं० [सं०] कश्यप । का) । तिथि। ताल-सा पुं॰ [सं० ताक्ष्यं] कश्यप के पुत्र गरुड़ । मुहा०-सारीख डालना तिथि वार मावि लिखना। ताज-सधा पुं० [सं०] रसाजन । २ वह तिथि जिसमें पूर्व काल के किसी वर्ष में कोई विशेष ता:-सपा प्रो०सं०] पातालगष्टी बता । छिरेंटो । छिरिहटा । घटना हुई हो, विशेषत ऐसी जिसका सत्सय या शोक मनाया पाता हो अथवा बिसके लिये कुछ रीति व्यवहार प्रति वर्ष

ताऱ्या-सया ई० [सं०] १ तृप्त मुनि के गोत्रज । २ गरु। ३

करना पता हो। ३ नियत तिषि। किसी काम के लिये गरुड के बड़े भाई अरुण । ४. घोड़ा ! ५. रसाजन । ६. सर्प । ठहराया हुमा दिन । जैसे,--कल मुकदमे की तारीख है। ७. पश्वकणं वृक्ष । एक प्रकार का शालवृक्ष । ८. एक पर्वत मुहा०-तारीख दालना तारीख मुकरर करना। दिन नियत का नाम । ६ महादेव । १० सोना । स्वणं । ११ रथ । करना। तारीख टलना=किसी काम के लिये पहले से नियत १२. पक्षी (को०)। दिन और मागे कोई दिन नियत होना। जैसे, उनके ताक्ष्यज-सुथा पुं० [सं०] रसोत । रसाजन । मुकदमे की तारीख टल गई । तारीख पड़ना=किसी तादयध्वज-सा० [20] विष्णु (को० काम के लिये दिन मुकर्रर होगा । तिथि नियत होना। ताय॑नायक-सहा पुं० [सं०] गड (को०] । ४ इतिहास । उ०मैंने सुना है कि तारीख प्रकवरी में कबीर त -सपा पुं० [सं०] बाग पक्षी [को०] । साहब और नानक साहब के विषय में अनेक बातें लिखी हैं। क्ष्यसुत-सहा ९० [सं०] गरुड [को०] । -कधीर म.पू. ५२४ । ताक्ष्यप्रसव-सहा ई० [सं०] पपकर्ण पक्ष । तारीफ-संचासी० [प० तारीफ़ ] . लक्षण। परिमापा २ वर्णन । विवरण । ३ बखान । प्रशसा । श्वाधा। वाक्ष्यशैल-समा पु० [सं०1 रसाजन । रसात । ताय॑साम-सक्षा पुं० [सं० ताक्ष्यं सामन] सामवेष को। क्रि० प्र०-करमा ।-होना। ___ तायी-साडी [सं०] एक वनलता का नाम । ४ प्रशसा की बात । विशेषता । गुण । सिफत । जैसे,-यही तो इस दवा में तारीफ है कि परा भी नहीं लगती। ताएँ'-वि० [सं०] [विनीताणी तृण से निर्मित (को॰] । मुहा०-तारीफ के पुल बांधना = बहुत अधिक प्रशंसा करना। तार्ण-संशा पुं० १. पास का कर । २ मग्नि [को०] । पतिरजित प्रायसा करना। 10-मुबारफ कदम ने तो हारीफ तास-सप्पा पुं० [सं०] एक प्रकार का पदन जिसका रग सुमापसी के पुल हो बांध दिए ।—फिसाना०, मा० ३, पृ. ३५) होता है और गंध खट्टी होती है [को० ॥ ता -सश खो• [हिं० तारी] दे० 'वारी"18--दसर्व दुवार तार तार्तीय-वि० .1 तृतीय । तीसरा । २ तृतीय सबध रखने- का लेखा। उलटि दिस्टि पो लाव सो देखा।--जायसी ग्रं०, वाला को। (गुप्त), पृ०२६५। जातीय-सा पुं० तृतीय अंश या भाग [को०] । वार-- [हिं०] दे० 'तालु। ठायीक-वि० [सं०] तृतीय (को०)।