पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खापार वालूफाई विशेष-इसका ढांचा कुछ दूर तक तो कड़ी हड्डियों का होता है चाशनी, पाग इत्यादि का पावश्यकता से अधिक गरम हो उसके पीछे फिर मुलायम मांस की तहों के कारण कोमल जाना । किसी पाग या पकवान भादि का कड़ाह में जब होता है, वो नाक के पीछेवाले कोश और मुखविवर के जाना । जैसे, पानी का ताव खा जाना, पाग का वाव खा बीच एक परदा सा जान पड़ता है। जाना ३. किसी खौलाई, छपाई या पिघलाई हुई वस्तु का मुहा०-तालू उठाना - तुरंत के जनमें हुए बच्चे के तालको पावश्यकता से अधिक ठढा होना । दे० 'ताव खाना' ताव दवाकर ठोक करना । (दाइयों या चमारिने यह काम करती देखना-मांच का अंदाज देखना। ताव देना=(१) पाँच पर हैं)।ताल में दांत जमना-मष्ट माना। बुरे दिन माना । रखना । गरम रखना। (२) भाग में नाब करना। तपाना । -(धातु मादि का) ताव बिगड़ना-पाने में पांच का कम विशेष-प्रायः क्रोध में दूसरे के प्रति लोग इस वास्य का या अधिक हो जाना (जिससे कोई वस्तु विगढ़ जाय) । मूखों व्यवहार करते हैं। बच्चों को ताल में काटा या अंकुर सा पर ताव देना-सफलता प्रादि के अभिमान में मूछ ऐठना। निकल पाता है जिसे ताल में दाँत निकलना कहते हैं। पराक्रम, बल मादि के घर में भूों पर हाप परना। . इसमें बच्चों को बड़ा कष्ट होता है। २ मधिकार मिले हए क्रोध का मावेश। घमड लिप हए गुस्से वालू लटकना-रोग के कारण तालू का नीचे लटक माना । चालू की झोंक। से जीमन लगाना-चुपचाप न रहा जाना । बके जाना। महा०-ताव दिखाना-अभिमान मिला हमा क्रोष प्रकट करना। २. खोपनी के नीचे का भाग । दिमाग । बड़प्पन दिखाते हुए बिगड़ना। मांस दिखाना ! साव में मुहा०-ताल चटकना = (१) सिर में बहुत अधिक गरमी जान पाना-प्रमिमान मिले हर कोष के मावेग मे होना । भहंकार पढ़ना । (२) प्यास से मुह सूखना । जैसे,—प्यास से तालू मिथित कोष के वश में होना। वैसे,-ताव में पाकर कहीं घटकना। मेरी चीजें मौन फेंक देना। ३. पोहे का एक ऐव। ३ पहंकार का वह भावेश जो किसी के बढ़ावा देने, ललकारने वालूफारसंशा [हिं० तालु+फाइना] हाथियों का एक रोग मावि से उत्पन्न होता है। शेखी की झोंक। जैसे,--ताव में जिसमें हाथी के तालू में घाव हो जाता है। माकर इतना चंदा लिख तो दिया, पर दोगे कहाँ से?४. वालूर-संच पुं० [सं.] पानी का भवर [को०]: किसी वस्तु के तत्काल होने की घोर इच्छा या उत्कंठा। तालूपक-संशा [सं० दे० 'तालु' [को॰] । ऐसी इच्छा जिसमें उतावलापन हो। घटपट होने की चाह वालेवर-वि०म० ताला(भाग्य)+फावर(प्रत्य॰)] धनाढ्य । या पावश्यकता । उ.-बोटुरिणया साजण मिलइ, बलि कित घनी। वाढठ वाद !-ढोला०,०५५६ । वाल्तक-संश पुं० [१० समल्लुक] संबंध। बगाय । उ.-हमारे मुहा०-ताव चढ़ना=(१) प्रबल इच्छा होना । ऐसी इच्छा होना ठाल्लुक मलेमानुस शरीफों से हैं। हमने ऐसे एक एक दफै के कि कोई बात चटपट हो जाय । (२) कामोद्दीपन होना। ताव दस दस रुपए लिए हैं 1-ज्ञानदान, पृ० १२६ । पर-बब इच्छा या भावश्यकता हो, उसो समय । जरूरत के ताल्लुका-संशा पुं० [म. तअल्लुकह] दे॰ 'तमल्लुक' । मौके पर। वैसे-तुम्हारे ताव पर तो रुपया नहीं मिल सकता। ताल्लुकात-संक्षा पुं० [4. तपल्लुक का बहु व.] संबंध । मेल तावर-संक्षा पुं० [फा० ता (संख्या)] कागज का एक तख्ता । से, जोल [को॰] । चार ताद कागज। तान्लुकेदार--संश पुं० [म. तअल्लुकह+फा• दार (प्रत्य॰)] तावड़ियाखु-सदा खी० [से. बाप, प्रा० ताव+डी (प्रत्य॰)] दे० 'ताल्लुकेदार'। धाम। धूप 1 ३०-सूखे जेठ मंझार सर तीखा तावरियोह। तात्वबुद-संज्ञा पुं० [सं०] एक रोग निसमें ताल में कमल के वाकी ०, भा० २, पृ०१६ ॥ पाकार का एक बड़ा सा अंकुर या काँटा सा निकल पाता है वावण-वि० [सं० तावान् ] तिवना उतना। १०.--तिल ज्यों जिसमें बहुत पीड़ा होती है। घाणी पोडिए ताण तत्ते तेल ।-प्राण, पृ०२५५ । ताव-संवा पुं० [सं० वाप, प्रा. ताव ] १. वह गरमी जो किसी घस्तु को तपाने या पकाने के लिये पहुँचाई जाय। तावत-कि० वि० [०] १.उतने काल तक। उतनी देर तफ । तब तक । २. उतनी दूर तक। वहाँ तक। ३ उठने परिमाण क्रि० प्र०-लगना । यौ०--तावबंद । ताव भाव । तक। उतने तक। विशेष-यह 'मार' का संबंधपुरक शब्द है। मुहाव-( किसी वस्तु में ) ताव माना-(किसी वस्तु का) जितना चाहिए, उतना गरम हो जाना। से,-ममी ताद तावताम-संका '० [हि. ताव+अननसार नहीं पाया है, पुरियों कड़ाही में मतलो । वा खाना = गुस्सा। उ०-दागी सुतोप लखि ठार तीम-ह. यसो (१)मांच में गरम होना । (२)भावेश में माना। द हो पू०१०८1 पान्य । ताव खा बाना=(१)पांच पर पढ़े हुए कड़ाहे के घो, तावदार-वि० [हिं० वाद+फादार1 नावदार-वि० [हिं० वाव+फा. वार] १. वह (यक्ति)