पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३०

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तिवाल विवाल-सचा पुं० [हि० तमाला, तमारा ] पस्कर । उ०-मावै विकृतिक-सका स्त्री० [मनु.] सवारी में पक्षों को डॉकने लोही इखियो, तन ज्यो भड़ा तिवास। बाकी.., भा० लिये किया जानेवाला शन्द । ३, पृ० २३ । विशेष बच्चे जांघों के बीच में एक लकड़ी से पाते हुए पका वि -वि० [सं० तद् या त ] वह। उ०-तिन नगरि ना नागरी, लेते हैं और उसे घोडा मानकर तथा अपने को सवार मानकर प्रति पद हंसक होन।-केशव (शब्द०)। "विक तिक घोड़ा' कहते हुए सेलते हैं। विधा-सा बी० [हि.] दे० 'तिय' । उ०--रामपरित चिंता- विकानी-सशा मौ• [ हिं• तीन+कान ] वह तिकोनी सकड़ी पो मनि चारू। सत सुमति तिम सुभग सिंगारू-मानस पहिए के माहर धुरी के पास पहिए की रोक के लिये नगी १। ३२ रहती है। तिया--सबा ली. [हिं०] दे० 'तिया'। तिकारी-संशा पुं० [सं०त्रि+कार ] खेत की तीसरी जोताई। तिभागी -- विहि 1 दे० 'त्यागी'। उ०-बलि मौ विक्रम विकुरा-मया पुं० [हि. तीन+कुरा ] फसल की उपज की तीन दानि बसा पहे। हेतिम करन तिमागी कहे।-जायसी , बराबर बराबर राशियों जिनमें से एक जमींदार सेवा है। (गुप्त), पृ० १३१ । सिके-सर्व० [हिं० तिचे। उ०-वेह जिकण वा दोई, विपास--सर्व० [हिं० ता] वा । उसे । उ.-ज्यों माया स्यो तिक सदाई तीखा।-रघु० रू०, पृ. २४।। जोयसी जम सहहि तिप्रास सहाम । -प्राण, पु. २५२। तिकोन'-वि० [सं० त्रिकोण ] दे० 'तिकोना'। ३.-बॉस विवाहा'-सधा पुं० [सं० त्रिविवाह ] १ तीसरा विवाह । २. वह पुराना साज सब मटपट सरल तिकोन खटोला रे-तुससी पुरुष जिसका तीसरा व्याह हो रहा हो। (शम्द०)। तिभाहर-संक्षा पुं० [सं. त्रि+पक्ष] वह श्राद्ध जो किसी की मृत्यु तिकोन-सहा पुं० दे० त्रिकोण'। के पतालीसवें दिन किया जाता है। तिकोना-वि० [सं० त्रिकोण ] [वि.सौ. तिकोनी ] जिसमें तीन विठरा-संश० [ देश० ] खेसारी नाम का कदन्न । कैसारी। कोने हों। तीन कोनों का । जैसे, तिकोना टुकड़ा। तिउरा-सदा पुं० [ देश ] एक पौधा जिसके बीजों से तेल निकाला तिकोना--समा पु०१. एक प्रकार का नमकीन पकवान । समोसा । जाता है जो जलाने के काम प्रोता है । २ तिकोनी नक्काशी बनाने की छेनी । तिउरी-सका नौ [ देश० ] केसारी। खेसारी। तिकोना-सा स्त्री॰ [हिं॰] दे० 'त्योरी'। तिमी- [ हि० दे० 'त्योरी'। उ०-तिरछी तिउरी देख तिकोनिया'-वि० [हिं० तिकोन+इया (प्रत्य॰) । दे० तिकोना'। तुम्हारी। प्रेमघन॰, भा॰ १.५० १६१ तिकोनिया--सभी तीन कोनोंवाला स्थान । विउहारी-समा पुं० [हिं०] दे० 'त्यौहार'। उ०-सखि माने विशेष-यह स्थान प्राय दो दीवालों के बीच कोने में तिकोना तिउहार सनु, गार देवारी खेलि । हाका गायों कत बिनु, पत्पर या लकड़ी गढ़कर बनाया जाता है जिसपर बोठे रही द्वार सिर मेलि । —जायसी (शब्द॰) । मोटे सामान रखे जाते हैं। तिए-क्रि० विहि .] दे० 'तितना। 10-पियो प्रल्हन मग तिक्का-संज्ञा पुं० [फा०तिकह ] मांस की नोटी। मोष। तो प्रकार। विए तात के नग्ग लिन्ने सुधार -पृ० रा०, महा०—तिका बोटी करना= टकडे कोकरना । अज्जी पज्जी २१ । ११६ अलग करना। विकट-संशा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'टिकठों। उ.-जाय उन विक्की-सी• [सं०] १ तास का वह पत्ता जिसपर तीन तिकट पर गरा। वदन बन बीप ले मारा।-सत सुरसी०, दूटियाँ पनी हो। २. गजीफे का वह पत्ता जिसपर तीन पु०४८। बूटियाँ हो। तिकड़म-संशा स्त्री० [सं० विक्रम ] १ पाल। षड्यंत्र । उ.- सिक्ख-वि० [सं०ठीण, प्रा० तिक्स] १ तीसा। पोसा। मानों श्री सल्लूलाल जी को इसी तिकड़म हेतु फोर्ट तेज। २. तीव्रबुद्धि । तेज । पालाक। विलियम कालेज में चाफरी मिली थी।-पोद्दार ममि०प्र०, तिक्खा -वि० [हिं.] तिरछा । टेढ़ा। पु०८५। २. तरकीब 1 उपाय ! विक्रो-कि० वि० [हिं० ] तिरछे। तिकड़मबाज-वि० [हिं० तिकड़म का.बाज ] दे॰ 'तिकड़मी'। तिक्त--वि० [सं० 1 जीता। कह मा। जिसका स्वाय नीम, गुरुष, विकदमी-वि० [हि. तिकड़म ] १ तिकड़मबाज । पालाक। चिरायते मादि के समान हो। होशियार । २ पोखेबाज । पूर्त। वितर-सबा पुं० १. पिरापापडा । २. सुगंध। ३.कुटज । ४ वरुण विकही-संबानी-[हिं० तीन+कही ] १. जिसमे तीन कड़ियाँ वृक्ष । ५. छह रसों में से एक। हो।२ पारपाई मादि की वह बुनावट जिसमें तीन रस्सियाँ विशेष-तिक्त यह रसों में से एक है। तिक्त मौर टु में भेर यह एक साथ हों। कि तिक्त स्वाद मरुचिकर होता है। पैसे, नीम, चिरायते । विनी'-वि० तीन कड़ी या सड़ीवानी । भारिका पर कटु स्वायरपरा और इविकर होता है।