पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३२

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सिगना' २०७८ विण तिना-कि० स. [देश॰] देखना। नजर शलना। मापना । विचिया-सचा पु० दिश०] पहाज पर वे प्रावमी जो प्राकार में (दलाली)। नक्षत्रो को देखते हैं (लथ०)। तिगना-वि० [हिं०] ३० तिगुना' । विच्छ-वि• [ से तीक्षण ] दे॰ 'तीक्ष्ण, विगना--वि० [सं० त्रिगुण] [ वि० श्री तिगुनी] तीन बार अधिक। विच्छन-वि० [सं० तीक्ष्ण ] दे० 'तीक्ष्या' । सीन गुना । विच्छना-वि० [हिं०] दे० 'तीक्ष्ण' । उ--कनक कापना विगुचना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'तिगना'। भेद ज्ञान में सिच्छना। परे हो रे पक्ष कषो से हरि सत विगून-सचा पुं० [हिं० तिगुना] १ तिगुना होने का भाव । २ के लच्छना [----पलदु०, भा०२, ५०७७। । पारम में जितना समय किसी चीज गाने या बनाने में , विजरा-सा पु[सं० त्रि+ ज्वर वीसरे दिन मानेवासा ज्वर। लगाया जाय, मागे चलकर वह चीज उसफे तिहाई समय में तिवारी। गाना । साधारण से तिगुना। बल्दी पाना या बजाना । मि० दे० 'चौगून'। विजवासा-सका पुं० [हिं० वीजा (= तीसरा)+मास(=महीना)] सिग्मंस-सपा सं० [हिं०] दे० 'तिग्मांशु'। १०-मिहिर तिमिरहर यह उत्सव जो किसी बी को दीन महीने का गर्म होने पर प्रभाकर उस्नरस्मि तिग्मस-पनेकार्थः, पृ.१०२1 उसके फूटुब लोग करते हैं। विग्म-वि० [सं०] १. तोवरण । खरा । तेष । प्रखर 13.-खोन विजहरी- पु. [ हि. तोपरा पहर। गए ससार नया सुम मेरे मन में, क्षण भर । बन सस्कृति का विजहरिया- ० [हितीवा (तीसरा+पहर तीसरा तिग्म स्फीत सौंवयं स्वप्न दिखलाकर ।-ग्राम्या, पृ० ४७ । पहर । अपराह। २ ता I सस करनेवासा (को०)। विजहरी- साहि० वीषा ( = तीसरा)+मार (= महीना)] यौ०-विम्मकर। सिग्मदीधिति। तिग्ममन्यू। तिग्मररिम । तीसरा पहर । अपराल। तिग्मांशु। तिजारा-संज्ञा पुं० [सं०नि+ज्वर ] तीसरे दिन प्रानेवासा स्वर। ३. प्रचं। उप (को०)। विजारत- सी. 14.] वाणिग्य। बानेज। म्यापार तिग्म- १ घन। २ पिप्पली ।-(मनेकार्थ) ३ पुरुवशीय रोजगार । सौदागरी। एक क्षत्रिया-(मस्स्य)। ४. ताप (को०)। ५. तीषणता। तिजरी-सका सौ. हि तिजार] तीसरे दिन जारा देकर तौलापन (को०)। पानेवाला ज्वर। सिग्मकर-सा पुं० [सं०] सूर्य । सिजिया--सपुं० fgo तीषा (-तीसरा) यह मनुष्य विसका विग्मकेतुमा पु० [सं०] ध्रुनयंपीय एक राजा जो वत्सर भौर तीसरा विवाह हो। सुवोधी पुत्र थे। (भापवत)। तिजिन-सा पुं० [सं०] १ चंद्रमा । २ राक्षस (को०] । सिग्मभ-सका [.सिग्मवम्म ] पग्पि (को०। तिग्मवा-सा मी० [सं०] तीक्ष्णता वैष। उग्रता । प्रचंडला। विजाना-कि... त्यषन] जना । छोड़ना । उपर १०-परतंत्रता ने साधारणों को निल पोर दरिद्र पना महारह हीरा पपहइ, नहीं तो गोरी । तिष पराण-बी. दिया है इनमें वह तिग्मता, वो विषयी जाति में होती है, रासो, पृ० ३३।। कमी प्रा ही नहीं सकती।-प्रेमधन, भा॰ २, पु० २८१ तिजोरी-सोपं. बरी] लोहे की मजबूत छोटी मालमारी, तिम्मतेज'–वि.सं. तिग्मतेजस् 11. ठीक्षण तीखा । २.4ठने- जिसमें रुपप, गहने पादि सुरक्षित रखे पाते हैं। __ वाला । प्रविष्ट होचेवापा। ३. उन। प्रचर । ४ तेजस्फ। विड़ो-सा श्री० [सं०वि (तीन)] वाच का वह पत्ता जिसमें देवस्वी किो०] 1 तीन वृटिया हो। तिग्मतेजा ० सूर्य [को०) मुहा०विको करना=गायष फरमा। बा ले जाना। विको तिग्मदोषिति- पुं० { • 1 सूर्य । होना-(1) घुप से चले जाना। मायर होना । (२) विग्मद्यति, तिग्मभास-सा ० [सं०] सूर्य [को०] । भामबाना। तिग्ममन्यु-सका पु० [सं०] महादेव । थिय । विडीबिड़ी-वि० [देश॰] तितर वितर। छितराया हुभा । पस्त- तिग्ममयूखमालो- ० [ से० तिग्ममयूबमालिन् ] सूर्य हो । स्पस्त। विग्मयातना-सक्षा बी० [सं०] प्रचड या असह्य पीड़ा (को०]। सिह - वि० [हिं०] देटिडो'। 3- पालक पदर- सिंह - वि० [हि विम्मरश्मिपा पुं० [सं०] सूर्य । सणउ का फाकउ कर तिङ्क !-ढोला... ६६० । तिग्माशु-समापुं० [सं०] सूर्य। तिण+--सर्व० [हिं० दे० 'सिन'। उ.--पई दिसि दामिनि विघरा-सधा पुं० [ से. त्रिघट ] मिट्टी का चौडे मुंह का बरतन सघन धन, पीउ तजो तिण वार-ढोलापू. ३७ ॥ पिसमें दूध दही रखा जाता है। मटकी। तिण - पुं० [सं० तृण] तृण । तिनका ।