पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४३३

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वितलौकी-सशौ• [ हि होता+सोना] एगी। एक बाजा विसमें तीन बार हो रहे हैं। 16-मई नगारा, दोन, बांसुरी सितारा परिवारात लावता निसक हैं।-रपुराम (A) तितारा-दि० तीन तारवामा । बिसमें तीन बार पततिम्मह] १. कोहना। २. लेख का वह माम जो प्रत में उसी पुस्तक देते हैं। परिशिष्ट । उपमहार। ' .

०१ सरदी . गरमी बारियो क्षिणा २०७४ विणा-मम पु० [हिं०] दे० 'तिनका' । ३०-देत विणा सीमे २ एक पास को सूं बादि केलों में भवती है। कहै रे पिय माप विस्खाइ।-सुंदर म.मा० २, पृ० ६८२ विशेष-इसका पौधा हाल बसा हाल तब प्रमा पतनी पतनी होती हैं। इसकी पलिया और सित'-कि. वि० [सं० त] १ वहाँ । वहाँ। उ०-श्रीनिवास काम में पाते हैं। को निम निवास छपि का कहिय तित । नद० ग्र., पृ० २०२॥ २ उघर । उछ पोर। --जित देखी तित तिवलोमा- . [हि. श्याममयी है।-पुर (शब्द०)। तिव-वि० [हिं० तीत का समासगत रूप ] तिक्त। तीता। वैसे, कद । तिखोकी। तितारा'—सजा पुं० [सं त्रि+ft. कार पर वितर-सबा पुं० [सं०] १ बलनी । २ छन । छाता [को॰] । तितना-कि. वि० [सं० तति, ततीनि] उतना। उसके बराबर । उ.-तब वाकी सास एक ही देर बाकी पातरि में परोसे । तितनो ही वह मरिकिनी परनामृत मिलाय के साँहि।- तीसरी बार को सिंचाई। दो सौ वावन०, पा० २, पृ०१८। विशेष-"तना' साय पाए हए वाक्य का संबंध पूरा करने तितिवा-सहा .. लिये इस चन्द का प्रयोग होता है। पर प्रब गद्य में इसका प्रचार नहीं है। तितर -सहा पु० [हिं०] दे॰ 'वीतर'। उ०-कुम स्वामि छट्टर तितिक्ष-वि० [सं०] सरलती सम, मनों तितर पर वाव ।-पु. रा., १४ तितक्ष-सा पुं० एक ऋषि का नाम तितर वितर-वि० [हितिषर+ मनु• वितर] | जो इधर उधर सिर हो गया हो । छितराया हमा। विसरा हमा। जो पत्र न हो। पैसे,--तोप की मावाज सुनते ही सय सिपाही तितर पितर हो गए। २. जो क्रम से जगान हो। पश्यवस्पित। अस्त व्यस्त । जैसे,—तुमने सब पुस्तकें वितर वितर कर दी। विवरात-पापु० [देश॰] एक प्रकार का पौधा जिसकी पर मौषष । देशात एक प्रकार का पौधा जिसकी पा माषष, इन्यावाला (को०)। काम में माती है। तितरोस्त्री-सहा श्री० [हिं० तीतर] एक प्रकार की छोटी चिड़िया। तिवली-सका औ० [हिं० तीतर, पू०हि तितिल (चित्रित डैनी के तितिम्मा-सहा पुं० [म. तिम्मह से कारण)] 1.एक उड़नेवाला सुदर कीड़ा या फतिंगा को माप बगीचों में फूलों से पराग पोर रस मादि पर निर्वाह प्रकरण । परिपि करता है। तितिर, तितिरि-सरा पं० [सं०] वीतर पक्षी विशेष-तितली के छह पैर होते हैं और मुंह से दाल के ऐसी तितिल-सबा पुं० [सं०] १ ज्योतिष में मात दो संपिया निरसी होती है जिनसे यह फूलों का रस घुसती है। दोनों मोर दो दो हिसाब से पार बडे पख होते हैं। की खली (को०)। भिन्न भिन्न वितलियों पच भिन्न भिन्न रग के होते है पौर किसी किसी मेंबईट सुपर टिया रहती। पखपतिरिक्त तर हरि वह माया जिती। भतरध्यान इसका पौर शरीर इसना सूक्ष्म या पतला होता है कि दूर से दिखाईमही देवा । पुवरे, रेशम के को मादि फतिंगों ०, पृ. २६७ । के समान तितली शरीर का भी रूपांतर होता है। प्रठे वितीषों-सक्षा सौ. [सं०111 से निकलने परत यह फूध दिनो तक गांठदार ढोले या तर जाने की इच्छा। स में रहती है। ऐसे ढोले प्राय पोपों की पत्तियों तिती-वि० [सं०] १ तैरने की .. पर विपके उप मिबते। इन डोलों का मुह कुतरने योग्य होता है और ये पौधों को कभी भी बड़ी हानि पहुंचाते है। छह पससी परों से पतिरिक्त इन्हे कई पौर पर होते है। ये __ का प्रमिलायो। ही ढोले स्पांतरित होते होते तितली के रूप में हो पाते हैं तितुला-संशा पुं० [देश॰] गारी पौर ने उपठे है। सामथ्र्य । सहिष्णुता । २.दामा । शांति माज शत्रु भी ऐसी शिक्षा, जिसकामा दया तितिक्षा-वाकत, पू. ४२२। । तितिच-वि० [सं०] क्षमामीला शोत । सहिष्णू । का मा. जिसका प्रमहोदा चोर। तितितु-सहा पुं० पुरुषसीय एक राजा को महामना तितिम-सक्ष पुं० [सं०] १ जुगनू । २ गौरबहटोली पावसीय एक राजा को महामनाका पुरवा 1.तिम्मामा पाप अवशिष्ट मा। २ किसी प्रप के अंत पद के घेत में लगाया था 1बीतर पक्षी [] ज्योतिष में सात करों में से एक। काम का मिट्टी का बरतन। ३वि: दे० 'तेतिख'। २ नौद नाम का मिट्रीका ९ तिती-कि० वि० [सं० तति, पतीनि ] उनी। तीनि उनी। 3.-उब भी प्रतरध्यानकरी व तिवी-नर हिती तैरने या पार करने की मार जाने की १ ले को स्तर पपाराले ने की इमारनेवासा 13-कार adminimalitimes पलप. उप मति, मव तितोपु दुस्तर पपारा भावी द्रष्टा निराधार । -ग्राम्या, पृ. ५० am. निराधार । म्या , ० ८ देश २ वरने गारो पहिए का मारा। तितेल-वि• [४० तति उत्तते (संस्यावा स्याबा ) | 3-वर