पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४४७

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विबाट २०११ विनपुष्प विचित्र प्रयवा कान्हा कामोद पोर पड्योग से मिलकर तिलावरीg--सशास्त्री० [सं० तिल + हिचावरी]दे० 'तिसचावलो'। बनी है। सिलचावली-भवा श्री० [हिं० तिल चावल] विल और पास तिलकुट-संक्षा पुं० [सं०] १. तिल का तुणं। २ एक मिठाई जो को खिचडी। तिसके चूर्ण योग से बनती है। तिलचावलो-वि० श्री. जिसका कुछ अंश सफेद और कुछ तिनस्यारी-मा पु० [हिं० तिलक घारी] तिलक लगानेवाला। काला हो। जैसे, तिलचावली दादी । 30-दास पलटू कहे तिलकधारी सोई, उदित तिहु लोक "" तिलाचत्रपत्रक-सा० [सं०] वैलकंद। रजपूत सोई।-पलटू०, भा॰ २, पृ. १६ । दिलचूर्ण-सचा पुं० [सं०] तिलफल्क | तिलकुट । विज कना-क्रि०[ हि तडकना ] गीली मिट्टी का सूखकर तिलछना-कि० प० [मनु०] विकल रहना। छटपटाना । देवेन स्थान स्थान पर दरकना या फटना। ताल मादि की मिट्टी रहना। का सूखकर दरार के साथ फटना । तिलडा'-वि० [हिं० ती<सं० त्रि+हिं. लड़ ] [वि०० तिनड़ी] तिलकनारे-कि. म. [हिं० ] बिछलना । फिसलना । 30-- करहर कादिम तिलकस्य पंपी पूगल दूर -ढोला०, जिसमें तीन लड़े हो । तीन लडो का । ९.२५६ तिलड़ा-सचा पुं० [देश०] पत्पर गढ़नेवालो को एक छेनी जिसने तिबक मुद्रा-संधा स्त्री० [सं० 1 चदन मादि का टीका भौर शंख चक्र टेढ़ी लकीर या लहरदार नरफाशी बनाई जाती है। माविका छापा जिसे भक्त लोग लगाते हैं। तिलड़ी-मा श्री० [हिं० तीन+लड तीन लड़ों की माला जिसण तिलकल्का-संज्ञा पुं० [सं०] तिल का चूर्ण । तिलकुट । यीच में एक जुगनी सटकती है। विलकहरू-सझा पुं० [सं० तिलक + हि० हरू (प्रत्य० ) ! ६० तिलतडल-सवा पु० [सं० तिज एडल] १ तिल पौर चायख। तिलकहार। २ ऐसा मेल जिसमें मिलनेवालों का पस्तित्व स्पप्त विलकहार--सबा पुं० [हिं० तिलक+हार (प्रत्य॰)] वह मनुष्य दिखाई दे। पो कन्या के पिता के यहां से दर को तिलक चढ़ाने के लिये यौ०-तिलतंडुल न्याय = दे० 'न्याय'। भेजा पाता है। तिलतुडुलक-सद्धा पुं० [सं० तिलतण्डुलक ] १ भेट । मिलन । तिनका-सा पु. [सं०] एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण २ भालिंगन । गले से लगाना [को०] 1 में दो सगण (IIS ) होते हैं। इसे 'तिल्ला', तिल्लाना' और 'रिल्ला' भी कहते हैं। २ कठ में पहनने का एक तिलतैल-सश० [स०] तिल का तेल [को०] तिलदानी-सशास्त्री० [हिं० तिल्ला+सं० प्राधीन] कपड़े की यह ग्राभूषण । थली जिसमें दरखी सूई, तागा, अगुप्ताना पादि पोजार तिलकार्षिक-समा [सं०] तिल की खेती करनेवाला व्यक्ति [को०) । रखते है। तिलकालक-सा. [सं०] देह पर का तिल के प्राकार का काला पित। तिल । २ सधत के प्रनसार एक व्याधि जिसमे तिलद्वादशा-सबा खी० [सं०] किसी विशेष मास की शादी तिर (जो उस्मन के लिये निश्चित हो)। पुरुष की द्रिय पक जाती है और उसपर काले काले दाग से पर जाते है। तिलवेनु-समा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का दान जिसमें तिलों की गाय बनाकर दान करते है। विश्वकावल–वि० [सं० ] चिह्नों से मुक्त । चिह्नोंवाला [को०] । तिलपट्री-समानी [हिं. तिल+पट्टी] खाड़ या गुरु में पगे हप तिलकाश्रय-सपा पुं० [सं०] माया ! लन्नाट [को०] । निलो का जमाया हुमा कतरा। तितकिट~-पुं० [सं०] तिल की खली। पीना। तिलपपड़ी-सथा श्री० [हिं० तिल+पपडी] तिलपट्टी। विलकित-वि० [सं०] १ तिलक लगाए हुए । २ जिसको तिलक तिलपर्ण-सा पुं० [सं०] १ चदन । २ सरल का गोंद। ३ तिल लगाया गया हो। जैसे, सिंदूर तिलकित भाल 1 ३ चित्ती- दार। विदीवाला को। ___का पत्ता [को०। दिलकुट-सम खी० [सं० तिलकट ] कुटे 3ए विल जो खाँड की निलपर्णिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] ३० "तिलपर्णी'। चाशनी में पगे हो। तिलपर्णी-सहा वी० [सं०] १ रक्त चदन । २ एफ नदी [फोग। तिलखली-सधा बी० तिल+ खली ] तिल की खली [को०। तिलपिज-राश पुं० [सं० तिसपिज्ज] तिल का वह पौधा जिसमें तिलखा-सका पु.[देश॰] एक प्रकार की चिड़िया । फल नहीं लगते । बझा तिल वृक्ष । तिलचटा-एबा ० [हि. तिल+धाटना] एक प्रकार का झीगुर। तिलपिञ्चट-सहा पुं० [सं०] तिलो की पीठो। तिलकुटा । पडा। तिलपीड़-सका पुं० [स० तिलपोह] तिल पेरनेवाला, वेली। तिलचतुर्थी-सहा सी० [सं० ] माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिलपुष्प-सभा पु. [सं०] १ विल का फूल । २. व्याघ्रनस । बध- नती। नाक [को०] ।