पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तिलपुष्पक २०१२ विनपुष्पक-सक्षा सौ. [सं०] १. बहेड़ा। २. तिल का फूल (को०)। वैद्यक ने तिखवन गरम और बात गुल्म पादिको ३. नाक (स्योंकि इसकी उपमा विष के फूल से दी जाती है। करनेवाली मानो जाती है। पीली तिलवन भाख । तिलपेज-सक [0] दे॰ 'तिलपिंज। में पडती है। तिलफरा-सक्षा पुं० दश०] एक प्रकार का छोटा सवर सदाबहार वृक्ष। पर्या-पजगवा । खरपुष्पा । सुगधिका । कावरी । तुगी। विशेष----यह वृक्ष हिमालय मे ५-६ हजार फुट की ऊँचाई तक तिलवा-सधा पुं० [हिं० तिल+वा (प्रत्य॰)] तिलो का लड़ । पाया जाता है। इसकी पत्तियां गहरे हरे रग की ओर विलशकरो-सका स्त्री० [हिं० तिव+कर ] तिल पौर से चमकीली होती है। की बनाई हुई मिठाई । तिलपपहो। तिलबदा-सा पु. [ देश० ] चौपायो का एक रोग जिसमें गले के। तिलशिखो-सचा पुं० [सं० तिलशिखिन् ] तिलमयूर [को०] । भीतर के मांस के चढ़ पाने से वे कुछ खा पी नहीं सकते। तिलघर-सक्षा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का पक्षी। विलशैल-~समा पु० [सं० ] तिल का पर्वताकार देर जो दिया जाता है। तिखभार--सका पुं० [सं०] एक देश का नाम । -(महामारस)। तिलभाविनी-मंशा श्री० [सं०] मल्लिका [को०]। तिलपिवक-सधा पुं० [?] तेली। उ०-लो को । कहा जाता था.-माय. भा०, पृ० २९२ । तिलभुग्गा-सका पं० [हिं. तिल+० मुक्त ] खाद मिले हुए भुने तिल को साए जाते है। तिलकुठ । तिलसुषमा-सा पुं० [सं० तिल+सुषमा ] सृष्टि के सभी दिल्लमृष्ट-वि० [सं०] तिल के साथ सुना या पकाया हुमा । पदार्थों से पोड़ा थोड़ा करके एकत्र किया गया . . विशेष-महाभारत मे तिस के साथ भुनी हुई वस्तु खाने का 30---निर्मित सबकी तिलसुषमा से, तुम निखिल सृष्टि चिर निरुपम ।-युगात, पृ० ४६। निषेध है। स्मृतियों में तिल मिला हुपा पदार्य बिना देवार्पित किए खाना पर्षित है। विशेष-तिलोत्तमा नामक प्रप्सरा को सृष्टि ब्रह्मा ने तिलभेष-सका ० [सं०] पोस्ते का दाना । प्रकार की थी । सुदौर उपसुद नाम के दो मसुर भाई दिलमनिया-सा खी० [सं० तिल+हिं. मनिया ] गले मे तिलोत्तमा के लिये मापस मे हो उहकर मर गए। पाहुना जानेवाला एक प्राभूषण। उ.-गवे तिसमनिया तिलस्नेह-सक्षा पुं० [H] तिल का तेल [को०] । पहुँषि विराजित बाजुबन फुदन सुघारी रो।स. दरिया, तिलस्म-सया [म. तिलिस्म] १. जादू । इद्रजाल । २ ५ पु. १७.1 पा प्रलौकिक व्यापार । फरामात । चमत्कार। ३.-. (को०) ४. वह मायारचित विचित्र स्थान जहाँ मजीवो तिलमयूर-संशा गुं० [सं०] एक प्रकार का पक्षी जिसकी देह पर व्यक्ति मौर चीजें दिखलाई पड़ें और जहां जाकर पादमी तिष के समान काले चिह्न होते हैं। पाय पोर उसे घर पहुंचने का रास्ता न मिले । तिलमापट्री-सक्षा खी० [ देश०] दक्षिण में विचारी और करमूल में मुहा०--तिलस्म तोड़ना - किसी ऐसे स्थान के रहस्य का होनेवाची एक कपास। __ लगा देना जहाँ जादू के कारण किसी की गति न हो। विनमिल-सक्षा श्री [हि.तिरमिर ] चकापौष । सिरमिराहट । तितमिलाना-क्रि..[हिं० दे० 'तिरमिराना। यौ०-तिलस्म य% तिलस्म और पादू पसर मे माया। मावारस्ता। विवस्म यदी- जादू के पसर में या जाना। तिक्षमिलाहट-सबा बी० [हिं० तिलमिलाना+भाहट (प्रत्य॰)] तिलमिलाने की झिया या भाव। व्याकुलता । वेचैनी। तिलस्मात सहा पुं० [प• तिलिस्म का वह व.] मायारपित स्थान । मायाजाल [को०] 1 दिलमिली-सहा श्री [हि. तिलमिलाना ] तिलमिलाहट । तिलस्माती-वि० [म.तिलिस्मात+फ्राई (प्रत्य॰)] 1. माया- वितरस-सच पुं० [सं०] तिल का तेल [को०)। पुणं । तिलस्मी। २. मायावी। पादुगर (को०)। तिलरा-सा पु० [देश० ] टेढ़ी लकीर बनाने की छेनी पिसेकसेरे काम में लाते है। तिलस्मी-वि० [५० तिलिस्म +फा• ई० (प्रत्य॰)] १. तिसस्म संबंषी। जादू का । २ मायानिर्मित । माया संबंधी (को०)। तिलरा--वि०, सपा पु० [हिं०] [विल्सी• तिलरी] दे० विलड़ा'। तिलहन-सभा पुहि तेल+घान्य फसल के रूप में बोए जानेवाले विलरी--सबा श्री.[हिं०] दे० 'चिलड़ी। पौधे जिनके बीजो से तेल निकलता है। जैसे, तिल, सरसों, तिलवट-म ([हिं० तिस ] तिलपट्टी। तिलपपडी। तीसी इत्यादि। तिलवन-सका श्री० [देश॰] एक पौधा जो जगलो पोर बगीचों में होता है। तिलांकित दल-सबा ० [सं०] तेलकद । विशेष---यह दो प्रकार का होता है--एफ सफेद फूल का, तिलाजाल-साबा तिलाञ्जाव द° पतलाजला " दुसरा नीलापन लिए पीले फूल का। इसमे सबी फलिया तिक्षांजलो-सक्ष स्त्री. [सं० तिलाञ्जली] मृतक पस्कार का सगती है। इसके बीज, फूल मादि दवा के काम में भाते हैं। एक भग।