पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४५५

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२०६६ [वित्त दे० 'तीता'। उ०-करिम वितति सौ तीतुला-साहि]ो० वीतुप्ली]. 'तीर'। हिदिन विहान तीत ।-विद्यापति, पृ० १९९I दीन-वि० [से. त्रीणि 1 वो दो पौर एकहो। को गिनती होसaet-कि. प्र.[हिं० ] भीगना । गीला होना। ३०- पार से एक कम हो। माहितीतल तहि पति सोमा। अलिकूल कमल दल मुख तीन-सा ०१दो पौर चार के रोचकी सस्या। दो पोर. मोगा।-विद्यापति, १० ३१६ फा जोड। २ रक्त सल्यासूप पक जो इस प्रकार रि. जीवर-पा० सं० तित्तिर ] एक प्रसिद्ध पक्षी जो समस्त पशिया बाता है-३। और यूरोप में पाया जाता है और पिसको एक जाति ममेरिका यो०-तीन ताग जनेऊ । यज्ञोपवीत। प.-नामे : भी होती है। गधि नऊ। ना मैं सुनत करि पोराऊँ।-सुपर० 10, विशेष-पह दो प्रकार का होता है और केवल सोने के समय भा. (म०), पु. ४८। को छोडकर बराबर इधर उधर चलता रहता है। यह बहुत मुहा०-तीन पांच फरमाइपर उपर करना। घुमाव फिरार तेज पौड़ता है पौर यारत में प्राय कपास, गेहूँ या पावध या इश्वत की बात करना। रोगों में चार में फंसाकर पकड़ा जाता है। इसका घोसा वीन:--सहा. सरयूपारी बाह्मणों में तीन गोत्रों का एक वर्ग। घमौन पर ही होता है और इस परे चिकने पोर घम्वेदार होमोम डोसा पिये पायवे, इसका शिकार करते बिशेष-सरपारी हागों में पोम पोत्र होते हैं दिन में वीन गोषवारों का सम वर्ग और टैरह गोत्रपाका प्रौर मांस बाते बंधन में इस मास को रुचिकारा, अधू, वीर्य-पर-वर्ष कषाय, मपुर, ठंडा और श्वास, कास जर या त्रिदोषनायक माना है। भावप्रकाश अनुसार मुहा०-ठौर तेपरवा-शिखर बितर करना। पर इधर कारे सौतर माप की अपेक्षा चितकबरे तीतर फा मास चितरामा पा पग पग करता।.-रियो वीर रस पषिक सराम होता है। पोका पोका पाय।-हरिपत्र (चम्ब०)ीर में, सीता--वि० [स•वित्त] सिला स्वावटीसा पोर चरपरा र में वो किसी पिनवी में महो। बि को पृथतार हो। वित्त से, मि। । ४०-कुपवार बाम कहाँ ये मोदें पानराय नम विशेष-यवपि प्राचीनों तिक्त और क्टु में भेर माना है, पर पहरेनतेरार तीन में 1--नुमान (पन्द०)। पापकप साधारण बोलचाल में तीता' पौरपदा' दोनों तीन-चौ० [f] तिन्वी का पावर। 'को एकही पर्थ में व्यवहार होता है। कुछ प्रातों में तीनपानमा पु. [ देव.] एक प्रकार का बहुत मोटा रस्सा विसको वर 'मा' यय का व्यवहार होता है और उप तात्पर्य मोटाई म कम एक फुट होती है (लप.)। भी बहुधा एकही बस का होता है। जिन पातों मे 'तीता' तीनपाम-सबा पुं० .12. 'तोपान'। पौर 'फडमा पोषोपों का व्यवहार होता है, वहां पी दर तीनलारी-बाबो- ह. वीर पो] बजे में पहनने की दोनों गे कोई विशेष भेव नहीं माना जाता। प्रकार की माला जिसमे दोन सपियों होती है। तिखी। २ ममाटु। ... तीनिसमा पं० [हिं० 140 'तीन' सोवा--सा पु० [ देरा०] मोतने बोने की बमोन का गौलापन । ' तीनिहर- विहि .] दे॰ 'दीन' । 60-4र बरनी, दरुनी ३ ऊसर भूमि । ३ देको या रहट का अगला माम । रंग भीमी। दासी योनि तोनि सत पोनी ।-नव० ., मोरे झार का एक नाम ।' पृ० २२।। दावा--वि• [हिं०] भीगामा । गौमा । नम। तीनी- बी.[हिं. तिनौ ] तिनो का पावन । वाति-वि० [हित] विता-मान रसलि कादि। तोपड़ा-सा . [ रा ] रेखमी कपडा तुरनेवाचौका पम पोजार पर समितीति ति मधु पामिति ।-विद्यापति, जिसके नीचे ऊपर वो मबडियो सगी रहती है जिन्हें देसर पावरपु-सस कोमा दे तीहर तीतिरको पास्ते धुमाया करते ।।-प्रेमघन, भा० २, aiती-कितीता'। १०. सनव पौर सुनी है काभव, पाए स्याम वह कोऊ तीती!--120, पृ० ३५ । तातुरी- साहि तोता 120 'तोतर'। वातुरी - श्री. ] 'दरनी' ७.'-सा बी० [हि. तीतर 1 मावा तीतर । तीतरी। 3.--हमा हरेई यानि । तीरिय तामी साजि -ह. रासो, पृ० १२५॥ तीमार- -फा०] रोगी को देवमास । सेवा शुयपा कोग। तीमारदार-वि० फा०] परिषयो कानवाचा । -पपिएर बीमार तो कोई न हो तीमारवारपीर प्रगर मर जारपदो नौहास्वा कोई रहो!--कविता कोर, भा०४,१०४०१ तीमारदारो~सदा श्री• [फा०] रोगियों की सेवा सुश्रूषा का काम । तीय -सा मी. [ सं० श्री.] भी। पौरख । नारी। २०-पति देवता तोय जगधन धन गावत देव पुरान-भारतेंदु प्रक मा० १, पृ०६७६।। वीय -वि० [से तृवीय ] वीसरा।