पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४५४

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घोषणरश्मि २०१८ चौड़ी वीक्ष्यरश्मि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सूर्य । पानी में खूब धोकर कूटते हैं और इसका सत्त निकालते हैं तीक्ष्णारश्मि-वि०जिसकी किरणें बहुत वेष हो। पो बढ़िया मैदे की तरह होता है। यही सत बापारों में | वीक्ष्णरस-सा पुं० [सं०] १ यवक्षार । जवाखार । २ शोरा । तीखुर के नाम से विकता है और इसका व्यवहार कई सीक्ष्णरस-विरपरे रसवाषा किो०] । तरह की मिठाइयो, बङ्क, सेव, बलेवी पादि बनाने में होता है। हिंदु मोग इसको पाना 'फलाहार' मे करते है।। तीक्ष्णलौह-सका पु० [सं०] इस्पात । इसे पानी मे घोककर दूध में छोडने से दूध बहन गाढ़ा हो तीक्ष्णशूक-मश पुं० [सं०] यव । भो। पाता है, इसलिये लोग इसकी खीर भी बनाते हैं। मग वीक्ष्याशूकर-वि० जिसके टूर पैने हो [को०] 1 एक प्रकार का तीखुर विलायत से मी माता है जिसे मरास्ट तीक्ष्णशृंग-वि० [सं० तीवणशृङ्ग ] जिसके सींग पने या नुकीले कहते हैं। वि० दे० 'पराष्ट। हो [को॰] । तोखुल- पुं० [हिं॰] दे॰ 'तीखुर'। तीक्ष्णसार- सबा पुं० [सं०] लोहा [को॰] । तीच्ान-वि० [] दे० 'तीक्ष्ण' 13०-उत्तमांग नहि सिंधु तीक्ष्णसारा-पका बी० [सं०] शीघम का पेड़ । बिय करत नीच्छन त ।-4. रासो, पृ०२ । तीक्ष्ांशु-सा पुं० [सं०] सूर्य । वीछनg+--वि० [हिं०] दे० 'तीक्ष्ण'। उ०—कन कामिनी री | तीक्ष्णा -समाज-[सं०] १. । २ कांच। ३. सर्पककापी दोक है तीन वारा। तब पषिद तरतुब रहे तुरी से , पुष । ४. बड़ी मानकंगनौ। ५ पत्यम्बपी बता । ६. न्यारा।-पलटूक, मा०, पृ०५३ । मिर्च। ७.बोका तारा देवी का एक नाम । तीछनता--संशा स्त्री॰ [स० तीपणता दे॰ 'तीक्ष्णता'। तीक्ष्णाग्नि-संस पुं० [सं०] १ प्रवल जठराग्नि । २ पमीणं रोग। तीछे -वि० [हिं. . तिरछाउ०-रि तें दूर नजीक । तीक्ष्णाम-वि० [सं०] जिसका अगवा माग तेज या नुकीला हो।। ते नोरे विमाडे हें पानी है तीचे तें तीछौ ।-सुर० प्र०, पनी नोकवाया। भा०२, पृ०१५७७ । तीक्ष्णायस-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] इस्पात पोहा । तीज-सक श्री. [सं० तृतीया ] १. प्रत्येक पक्ष की तीसरी तिथि। तीखg+-वि० ह] दे तोला।०- अनिल परख वन मलयज २. हरतालिका तृतीया । भादो मुदी तीषा नि० दे० 'हरता- | बोल । बेहु छल सीतल हु भेल तीख !-विद्यापति, पृ० १६८ लिका'। उ.-इद्रावति मन प्रेम पियारा । पहुँचा मारतीय तीखनg -वि.सं.दीय दे० 'तीक्षण'। वेवहारा । इद्रा०, पृ. ६० । तीखर-पपु० [हिं०] दे० 'तीर'। तीजना...-किस.हि.] दे० 'सजना'। उ०-भूरिख राजा भपढ़ । वोखब-सबा • [हिं॰] दे॰ 'दीपुर। पयार किम चालू एकलोमा गह गोरी तीजह परीण।- । सीखा'--वि० [सं०तीण] [विजोतीसी] १ घिसको धार या नोक बी. राम्रो, पृ०८१। बहुत तेज हो। दोक्षण। २ वेत्रातील प्रखर उप। तीजा-सा०हितीज] मुसलमानों में किसी के मरने। प्रचणसे, तीसा स्वभाव। ४. जिसका स्वधार बहुत उप दिन से तीसरा दिव। हो । जैसे,—(क) तुम तो बडे तीखे दिखाई पड़ते हो। विशेष-इस दिन पतक के सरधी गरीबो को रोटियां बांटते (ब) यह लड़का बहुत तीक्षा होगा। जिसका स्वाद बहुत पौर कुछ पाठ करते हैं। जया परपरा हो । जो वाक्य या बात सुनने में प्रप्रिय हो। ७. चोखा। बदिया। अच्छा । जैसे,--यह कपड़ा उससे तोखा र तीजा-वि• दिली. तीबी] तीसरा। तृतीय । उ.-के दिन पड़ता है। सिरजै सो सही, तोजा मोई हिरवब०, पृ.३ । तीखारे-सहा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की पिडिया। तोजापन- स० [हितीजा+पच (प्रत्य॰)] तीसरी सोखापन-सा पुं० [हिं० तीखापन पनापन । तीक्ष्पा चि०] । भवस्या । ०-तीजापन मैं कुछ भयो तब प्रति अभिमान बदायो रे । सदर०प्र०, भा०२, पू०६६। सीखी-सका बी० [हिं. तीखा] रेशम करनेवाओं का काठ का एक पोबार जिसके बार में गज डालकर उसपर रेशम फैरते हैं। तीजी--वि० बी० [हिं० 120 'तीजा"130-ताजी रानी है वा धीखुर-सका पु. [सं० सबक्षीर ] हपदी की जाति का एक प्रकार का मनोई। सल्या कारण न मानै कोई।-कबीर सा, पृ.१५." पौधा पो पूर्व, मध्य तथा दक्षिण भारत में अधिकता से होता है। सीड़ा-सदा जी० [ हिं० दिहो। 30-नीमा करमण विशेष-मच्छी तरह जोती हुई जमीन में बाई के मारम में सूपियों, पानरहा नू बाग |-- की.40, मा. २, इसके कंद मारे जाते है पौर मीच बीष में पराबर सिपाई की जाती है। पुस माघ में इसके पछे मारने लगते हैं मोर तब तीडी सा सी० [हिं० २० टिडो'। उ०-मंत्र सकती मत्र पदपकका समझा जाता है। इस समय इसकी पर खोदकर , ज्यो तीकी से जाय ।-रा००, ५० १०६ ।