पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४६१

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२१०५ तुक तखिोकरण-सका पुं० [सं० सुन्दिरीकरण ] फुलाना । वड़ा करना एक गर्व को चैत के महीने में सूर्य के रय पर रहते हैं। ०1 विशेष-ये विष्णसे एक प्रिय पार्वधर पौर संगीत विद्या में पवि तुदी-कभी• [सं० तुन्दो] नाभि । निपुण है। नुदा--वि० [सं० तुन्दिन् ] ३० 'तु'दिक' [को०] । ४. एक दिन उपासक का नाम । ५. तानपुरा (को॰) । -सकली. [फा०] १ तोव्रता जी । २ पावेग । जोग ! दियाना-कि.प्र. [हिं. वोद से नामिक धातु] तोंद का बढ़ना। ३ स्वभाव की तीव्रता । वदमित्राजी । ४ लिंग का उत्थान । देखा-वि० [हिं० तोदे ऐला (प्रत्य॰) पेटवाला दियल। ५. कोप । गुस्सा [को०] । —सचा स्त्रो० [हिं०] दे० 'तूपही। हुँदैन-वि० [हिं० + ऐल (प्रत्य॰)] दे० 'तु दैला'। घड़ी-सपा स्त्री० [दरा०] एक छोटा पैर जिसकी लकड़ी मदर तुला--वि० [सं० तुन्द + हिं. ऐला (प्रत्य॰)] तोदयाला । नई से सफेद, नौ पौर चिकनी निकलती है। पेटवाला । लबोदर। विशेष—इस पेटको लकही मकानों में लगती है। इसकी पत्तियाँ हुंध-पहा पुं० [सं० तुम्ब] १. लौकी। लोवा। घोया। २ लीव पारे के काम में पाती है। का मूसा फल। तुंचा। ३. प्रावला (को०)। तुयर -सझा पुं० [हिं०] एक गधर्व दुरु। उ०-बोगनी जोगमाया तुंबर--सा • [सं० तुम्बर] १.३० 'तुबरु' । २. एक वाद्ययत्र । जगी नारद तुघर निहस्सिया। दक्ष एक रुद्र दारिद्र गत दानव तानपूरा । उ.-विसद जत सुर सुद्ध तत्र तुबर जुत सो है। तामर इस्सिया !-१० रा., २ । १३० । ६. रासो, पृ० १. तंबरोg+-संज्ञा [सं० तुम्ब+हि० रो. (प्रत्य॰)] दे॰ 'तूवरी'। तुवर-मक्ष पुं० [सं० तुम्बन] एक गधवं । व बरो'-माससम्बरी एक प्रकार का अन्न [को० 1 तुथल -स० [हिं०] दे० 'तुव' । उसज्ञा पावै गोत्र पुनि, छेम घाम सुम नाम ।-नद००, पु०६६ । तुबरो:- डी० [हिं० दे० 'वी' । तुचना --क्रि० प्र० [हिं० भूचा, धुवना] १ चूना । टपकना। तुववन-मध पुं० [सं०] वृहरसंहिता के अनुसार एक देश जो दक्षिण २.गिर पड़ना ! खड़ा न रह सकना । ठहरा न रहना । उ.-- दिशा में है। निफरे सी निकाई निहारे नई रति रूप लुभाई तुई सी परे। तु-संगा पु० [सं० तुम्बा] [ो मल्पा० तु वो] १. का.मा कद्द । -सु रीसर्वस्व (शब्द०)। ३ गर्मपात होना । बच्चा गोल करमा घीया।२ करए कद्दू की खोपसी का पात्र । गिर पड़ना। ३. एक प्रकार का जगली धान जो नदियों या तालों के संयो कि०-पड़ना। किनारे पापसे पाप होता है। ४ दुधार गाय (को०)।५ तभरी-सज्ञा पुं० [सं० तुवरी] भरहर । मादकी। १०-मोर पावर, दूध का बर्तन (को०)। सीधो, नए वासन मे पूरा तुपर मादि सर्व सामान घर मे तुबार-सा ० [सं० तुम्बार] तू को [को०] । द्वतो सो हरिवस जी को सर्व वस्तू दिरगई।दो सौ वावन०, तुदि-मन मो० [सं० तुम्बि] पोको (को०) । भा० १, पु. ७५। तुविका-सधा भी संतुम्हिका दे० 'तुची' । उ०-पानी मादि तुआर-सर्व [हिं०] दे० 'तुम्हारे'। उ०-नाय तमारे कुशल फुचट ताविका बूढ़ी पाहन तिरतन पागो और 1-सुवर. १०, प्रब लेसिहि -पकवरी., पृ० ३३७ । पा० २, पृ. ५१३। तुइ -सर्व [ft.] दे० 'तू' 13.-भवहिं वारि तूर पेम न खेला। तुवा-समसौ.सं. तुम्बी..छोटा कडवा कद छोटा करवा का वानसि कस हो। दुहेला,-जायसी ०, पृ०७४। पीया। तितखोकी । २. पोल कद्र का खोपड़ा! पोल पोए तुइ-सर्व० [हिं०] दे० 'तू'। का बना हुमा पात्र । तुइ -सवं० [हिं० तू] तुझे। तुझको । ००-भूलि कुरगिनी तुंयुक-सका पुं० [से० तुम्बुक] कद्दु फा फस । घीया । फसि भई मन सिंघ सुर डीठ। -जायसी (गुप्त), तुदुरी-सका स्त्री० [स. तुम्बुरी] १ धनिया। २ कुतिया। पृ. २३४। तुरु---सका ० ० तुम्बर १ धनिया। २ एक प्रकार के पौधे का तुइ --संज्ञा श्री [?] कपडे पर बुनी हुई एक प्रकार की वेल जिसे दुष्ट बीरो धनियासेमाकारका पर कुछ कुथ फटा हुमा स्त्रियाँ दुपट्टो पर लगाती हैं। होता है। तुई.-सर्व० [हिं०] दे० '। १०५-इसमी महाल होती है। म्ह में रखने से एक प्रकार तुक'- दुन्दु हा) .कसा पद्य पा गात का को घुनघुनाहट होती है और लार गिरती है। दांत के दर्द कोई खड15डी। २. पद्य के परए फा भविम अक्षरों का में इस वीज को लोग दांत के नीचे दवाते हैं। वैद्यक में यह परस्पर मेल । पदारमैत्री प्रत्यानुप्रास । काफिया। परन, कावा, परपरा, भग्निदीपक तथा कफ, वात, माल मादि यो०-तुकबंदी। को दूर करनेवाला माना जाता है। इसे बगान में नेपाली मुहा०--तुक जोडना = (१) वाक्यों को जोड़कर और चरणों पनिया कहते है। के प्रतिम मक्षरों का मेल मिसाकर पद्य बड़ा फरना । (२)