पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/४६२

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कर भद्दा पद्य बनाना। भद्दी कविता करना। तुक वैठाना = दे० तुक्खार-सहा पुं० [सं०] दे० 'तुम्खार' को। 'तुक जोड़ना। तुख-शा पुं० [सं० तुप] भूसी । छिलका। उ०--भटकत पट तुफ-सज्ञा पुं० [सं० सक] मेघ । सामजस्य । वैसे,-पापकी पात का मतता अटकत ज्ञान गुमान ! सटफत वितरन तें मिहरि कोई तुक नहीं है। फटकत तुख पमिमान !-सुलसी (शब्द०)।२ पडेपर तुफना-क्रि० स० [मु.] पक पनुकरण पन्य वो 'दमा' सन्द का छिलका। उ०-प्रड फोरि किय -टुमा दुख पर नौर साप बोलचाल में पाता है।०-तक के तुकि के हर पावनि मिहारि। पहिचंगुल पातक पर डारेत बाहर पारि।- को लखि + द्विज देवन शापनि को।-रघुराज (न्य.)। तुलसी (शब्द०)। तुकतुकाना-क्रि० स० [हिं०] तुम जोड़ते हुए कविता का प्रयास सखार'-शा.[४०] १ एक देश का प्राचीन नाम जिसका उल्लेख करना । भद्दी सुके जोड़ना । अथर्वव परिशिद, रामायण, महाभारत इत्यादि में है। तुकबंद- पुं० [हितुक + (-बोधना) तुकबोषनेवाला । विशेष-मधिकांध । यो मत से इसकी स्थिति हिमालय के तुमक। स०-बहुत तुकबंद प्रत्येक युग में रहते हैं पौर उत्तरपश्चिम मेंनी पाहिए । यहाँ घो) प्राचीन काल में जीवन पर्यंत इसी भ्रम में बने रहते है कि वे कवि- बहुत मनछेमाने जाते थे। काव्यशाल, पु० ॥ २. बारदेश का निवासी। कबंदी-भाको [हिक+फा०वी १ तुक जोडने का विशेष-हरिश अनुसार जप महषियों ने बेणु का मन काम । मद्दी कविता करने की क्रिया । २ मा पद्य । भद्दी किपा पा, तब इस अधमरत असभ्य पाठि की स्पति हो कविता। ऐसा पद्य मिसमें झाग्य गुण नहों। उ.- थी, परत प्रप में इस जाति का निवासस्थान विध्य पर्वत बहुत दिनों के बाद माज मेरी पद पुरानी तकदियो सग्रह लिखा है जो पौर प्रपौविषद्ध परता है। के रूप में सामने भा रही है। ३ तुषार देव का पोड़ा। ४. घोड़ा। उ०-(5) तीस तुसार तुकमा-सपु[फा० तुपमह, ] घुडो फंसाने का फदा । मुदी। चौक मौदा। तरपहि तबहि तापन बिनु हो।-जायसी तुकांत--सा पुं० [हिं० तुक+• पन्त ] पद्य के दो परणों के प्र० (गुप्त), पृ० १५० । (स) प्राना काटर एक तुसारू। प्रतिम अक्षरों का मेल । पत्यानुप्रास । काफिया । कहा सो फेरी भा प्रसवारू।-जायसी (शब्द०)। तुका-सहा पुं० [फा. तुकहू ] वह वीर जिसमें गोसीन हो। बह । झा• कहू । वह बार जिसम पासा नहा। बह खार'—सबा [सं०] दे० 'तुषार'। तौर जिसमें सीसे स्पान पर घुटी सी बनी हो । उ.- तुपम-सका पुं० [फा० तुस्म] 1 बीज । दाना। २ गुठली (को०)। कामतका फुव गेलि होलि गरे मन मोरे किये भर ५ ..मंग (को०)। ४ सतान । मौलाद (को०)। ५ वीर्य (को०) : ये कवंबन की हाररी।--कविंद (शब्द०)। यौ०-तुमपाथी बीवारोपण। खेत मे बीज बोना। तुरूम- तकार-सबा पुं० [हिं० +० कार] पणिष्ट सपोवन । मन्धम रेजी बीब दोका। पुरुष वाचक प्रथिष्ट प्र० का मपोग। 'तू' का प्रयोग जो अपमानवाह समझा जाता है। तस्मी-वि० [फा० रुमो] १ जो गौर योकर उत्पन्न किया गया मुहा०-४तकार करना प्रशिष्ट बन्द संबोधन करना। हो।२ देगी पाम जो कलमी न हो [को०)। 'तू' मावि अपमानजनक शब्दों का प्रपोप करवा। तुगा-समस्यी० [सं०] वंशवोपन । तुकारना-क्रि० स० [हिं० तुकार] तु तु करने संबोधन करता। तुगाचोरी-सका स्त्री० [सं०] वशलोचन । पशिष्ठ संवोधन करना। -वारौं हौं फर पित हरि को तुम–स [सं०] वैदिक काल पक राषि का नाम को मश्विनी वयन, छुवारी। वारौं वह रसना पिर बोल्यो तुकारी।- कुमारौ उपासक पे। सूर (शब्द॰) । विशेष-इन्होंने वीपतिरौं शत्रुओं को परास्त करने के लिये तुक्कड़-पंक्षा पुं० [ff. तुम+पककर (प्रत्य॰)] तुक वोदनेवाला। अपने पुत्र भुज्यु को बहाब पर पढ़ाकर समुद्रपध से भेजा था । कबंदी करनेवाला । भद्दी कविता बनानेवाला। मार्ग मे जव एक बड़ा तुफान पाया पौर वायु नौका को तुक्कल-समबी• [ फा. तुमकह ] एक प्रकार की पड़ी पतग पो उपटने लगी, वब मुग्यु ने पिवनीकुमारों की स्तुति की। मोटी डोर पर समाई पाती है। पश्विनीकुमारों ने संतुष्ट होकर मुज्यु को पना सहित अपनी तुक्का-घशा ० [फा० तुक्कह ] १ वह गौर जिसमें गांसी, पोका पर सेकर तीन दिनों में उसके पिता के पास पहुंचा दिया। स्पान पर गेसो बनी होती है।२ टोला । छोटो पहाड़ी। तुम्य-सका सिं०] १ तुम के वश का पुरुष। तुम वराय । २० टेकरी। सोषी पड़ी वस्तु । तुपपुर मुज्यु। मुहा०-मुस्का सा-सीधा उठा हुपा। पर उठा हुमा। जैसे, तुम्या-सं स्त्री० [सं०] पानी । बल [को॰] । -बब देखो तब रास्ते में तुकका सी पैठी रहती है। तुच+- ० [सं० व चमड़ा। छाल। उ०-बह पील तुक्ख - पुं० [हि.] 'शुन्छ' । उ-ज्ञान कथे बहुभेष नोचि ले जात तुप मोद मढ़यो सबको हियो ।-भारतेंदु प्र., पनावं दही पाठ सब तुमच।-पटू, मा० ३, पृ०११ मा० १, पृ० २६५ --