पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५२९

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बाल थरुहटी यहणं थरुहटी-सशास्त्री० देश० यारू] पारु जाति की बोली। उ०- झूल अनफर हिलना । जैसे,-चलने में उसका पेट पसथल भीतरी मधेश की निचली तलहटी में 'थरुहटी' बोली है, जिसे करता है। थारू लोग बोलते हैं ।-नेपाल, पृ०६८। थलथलाना--क्रि० [हिं० थूला] मोटाई के कारण शरीर के मास थर्ड-वि० [मं० ] तृतीय । तीसरा । का झूलकर हिलना। थर्मामीटर-ससा पुं० [अं॰] सरदी गरमी नापने का यत्र । दे० थलपति-सज्ञा पुं० [सं० स्थल+ पति ] राजा । 30-सवन नमन तापमान' । मन लगे सब पलपति तायो।-तुलसी (शब्द०)। रीना--कि०म० [अनु० थरयर ] डर के मारे कांपना। दहलना। शलवेड़ा--सज्ञा पुं० [हिं० पल+बेता] नाव दा जहाज ठहरने की से, वह शेर को देखते ही यर्रा उठा। ___ जगह । नाव लगने का घाट। संयो०क्रि०-उठना-जाना। मुहा०-थलबेडा लगना = ठिकाना लगना । पाश्रय मिलना । थल-ममा पु० ० स्यल] १ स्थान । जगह । ठिकाना । उ.- थल वेडा लगाना-ठिकाना लगाना । माश्रय ढढ़ना । सुमति भूमि यल हृदय प्रगाधू । वेद पुरान सदधि धन साधू । सहारा देना। —मानस, १1३६ । शलभारी-सहा पुं० [हिं० थल+भारी] पालकी के फहारों की एफ मुहा०---थल वैठना या चल से वैठना -(१) माराम से बैठना। बोली जिससे वे पिछले कहारों को आगे रेतीले मैवान का होता (२) स्थिर होकर बैठना । शात भाव से बैठना । जमकर सूचित करते हैं। वैठना । मासन जमाकर बैठना। थलराना-क्रि० स० [हिं० दुल राना] प्रसन्न करना । अनुकूल बनाना । २ सूखी घरती। वह जमीन जिसपर पानी न हो । जल का उ.--नेह नवोदा नारि को पारि बारु का न्याय। पलराप उलटा । जैसे,—(क) नाव पर से उतर कर थल पर पाना । पै पाइए, नीपीडे न रसाय।-नद० प्र०, पु० १४१ । (ख) दुर्योधन को जल का यल और थल का जल दिखाई थलरह -वि० [सं० स्थलरुह] धरती पर नत्पन्न होनेवाले जतु युक्ष पठा। ३ चल का मार्ग । पाधि। उ०-जल थलरुह फल फूल सलिल सब फरत पेम यौ०-थलचर । थलवेडा जलपल । पहनाई।-तुलसी (शब्द॰) । ४ ऊँच. धरता या टीला जिसपर बाढ़ का पानी न पहुंच सके। थलिया-सदा स्त्री॰ [ से० स्थालिका ] थाली । टाठी। ५ वह स्थान जहाँ बहुत सी रेत पड़ गई हो । मुड़। थली। थली-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० स्थली] १.स्थान | जगह । जैसे, पर्वतथली, रेगिस्तान । जैसे, थर परखर । ६ वाघ की माद । चुर । बनथली। २. जल के नीचे का वल । ३ ठहरने या बैठने की ७ बादले का एक प्रकार का गोल (चवन्नी के बराबर का) जगह । वैठक। उ०-थली में कोई सरदार था, उसके पास साज जिसे बच्चो की टोपी आदि पर जब चाहे तव टाक एक वैष्णव साधु मा गया !--कवीर सा०, पृ. ६७२। ४ सकते हैं। फोठे का बाल भोर सूजा हुमा घेरा। एमडल । परती जमीन । ५ बालू का मैदान । रेतीली बमीन । ६ ऊंची जैसे, फोड़े का पल चाँधना । जमीन या टोला। क्रि० प्र०-वाचना। थवई संज्ञा पुं० [सं० स्थपति, प्रा. थवा ] मकान बनानेवाला कारीगर । ईंट पत्यर की जोडाई करनेवाला शिल्पी। राज । थलफना-~क्रि० स० स्यूल, हिं० धूला, युलथुला] १ फसा या मेमार। तना न रहने के कारण झोल खाकर हिलना या फूलना पच- फना। झोल पढने के कारण ऊपर नीचे हिलना। उ०-थोद थवन-सज्ञा पुं॰ [ देश०, या स० स्थापन ] दुलहिन की तीसरी बार थलकि वर पाल, मनों मृदग मिलावनो।-नव० प्र०, १० मपने पति के घर की यात्रा। ३३४ । २. मोटाई के कारण शरीर के मांस का हिलने डोलने थसकना-कि०म० [देश॰] नीचे की भोर दवना । धसकना। में हिलना 1 थलयत्न करना । थवना---उज्ञा पुं० [स० स्थापन, हि० थपना 1 जुलाहो के उपयोग थलचर-सज्ञा पुं० [स. म्पलचर ] पृथ्वी पर रहनेवाले जीव । में अानेवाला कच्ची मिट्टी का एक गोला जिसमे लगी हुई उ०--जलचर थलघर नभचर नाना । जे जह चेतन जीव लकडी के छेद में चरखो की लकडी पड़ी रहती है। इस चरखी जहाना -मानस, १४३।। के घूमने से नारी भरी जाती है (जुलाहे) । थलचारी-वि० [सं० स्थलचारिन] भूमि पर चलनेवाले । थह-सज्ञा पुं० [देशी] निवास । निलय । स्थान । गुफा । माद। उ०-(क) कानन सद्दन सभ रत कूह कलह मापेठ । थह सूतो थमज-वि० [स० स्थल+ज] स्थल पर उत्पन्न । उ०-थलज वर जग्गयो सिसु दंपति घटि पेट 1-पृ० रा०, १७४ । (ख) जलज झलमलत ललित बहु भंवर उडावै । उडि उडि परत जार्ग नह यह मे जिते सम हाथल सादुल । चौकी० प्र०, पराग क्लू घधि कहत न मावै। नद० प्र०, पृ. २६ । भा०१, पृ० १३॥ थलथन-वि० [सं० स्यूल, हिं. थूला] मोटाई के कारण झूलता या थहणज-सज्ञा पुं० [स० स्थल, प्रा. थल, अथवा देवी पह] हिलता एमा। स्थान । उ०—कमठ पीठ फलमलिय थहण तुलमलिय सुचर मुहा०-पलपल करना-मोटाई के कारण किसी भंग का थिर। -रघु०६०, पृ. ४२ ॥