पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५३१

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थाकि थाप थाकिसका खौ० [हिं० थकना ] थकावट । शैथिल्य । मारकीन का थान, गोटे का थान । ७. संख्या। पदय । जैसे, था -सका दु [देश॰] दे॰ 'थाक' । एक थान अशरफी, चार थान गहने, एक थान कलेजी। थागना-कि. म. [ देश० ] रुकना । थाकना। उ०-मपणे घर ८ लिगेंद्रिय (बाजारू)। की गम नही पर घर यागे काय। हस हस को गम पले कागा थानक-सज्ञा पुं० [सं० स्थानक] १. स्थान । जगह। २ नगर।३. काग की पाय । राम० धर्म०, पृ०७२ । थाला। थाला। पाल बाल । ४ फेन । बवूला । झाग । ५ देवस्थान | देवल । ०-राजन मन चक्रित भयो सुनि याट'--सबा पुं०-[ हिं.] स गीत में रागों का भाधार । दे० 'ठाट'। यानक की विद्धि ।--. रा०, १४०१ । था -सक्ष पुं० [ देश० ] कामना। मनोरथ । उ०—रिरूपा बाट थानपती -सहा पु० [सं० स्थानपति स्थान का अधिकारी। कर वो राघव थाट सपूरण थावे-रघु००पू०६५ । स्वामी। 10-तह मिले पीतम फिर नही विछोहा। तह थाटनहार--वि० [हिं० ठाटना (-बनाना) 1 ठाठने (बनार्ग थानपती निज महली सोहा ।-प्राण०, पृ. १६० । सँवारने) वाला। उ०—याटनदारा एको सोई एक ही रीति थाना-सा पुं० [स० स्थानक, प्रा. थाण, हिं० थान ] १. मट्ठा। एक ते पाई।-प्राण०, ५०४६ । थात--वि०सं० स्थात, स्थाता 1 जो ठा या ठहरा हो । स्थित । टिकने या बैठने का स्थान । उ०-पुण्यभूमि पर रहे पापियों का थाना क्यों ? –साकत, १०४१६ । २. वह स्थान वहाँ १०- पिक दिन घतीस वचकन एक जलज पर थात! मपराघों की सूचना दी जाती है और कुछ सरकारी सिपाही सूर (पान्द०)। रहते हैं। पुलिस की बड़ी चौकी। थाति--संक खी [हिं० यात ] १. स्थिरता। ठहराव । टिकान । मुहा०-याने चढ़ना= थाने में किसी के विरुद्ध सूचना देना। रहन । उ०----सगुन ज्ञान विराग भक्ति सुसाधनन की पाति । थाने में इत्तला करना। याना बिठाना = पहरा बिठाना। माजि विकल विलोकि कलि मघ ऐगुनन की याति । तुलसी चौकी बिठाना। (शब्द०)। २ दे० 'याती। ३ वासो का समूह । बांस की कोठी । यावी-बा सी-हि. थात] समय पर काम भाने के लिये रखी हुई वस्तु । २ वह वस्तु जो किसी के पास इस विश्वास थानापति-सचा पुं० [सं० स्थानपति ] ग्रामदेवता । स्थानरक्षक । पर छोड़ दी गई हो कि वह मांगने पर दे देगा। घरोहर । देवता। उ०-दुइ परदान भूप सन थाती। मांगहु प्राज जुड़ावहु थानो'-- सपा पुं० [सं० स्यानिन्] १ स्थान का स्वामी। वह जिसका छाती ।--- तुलसी (शब्द०)। ३ सचित धन । इकट्ठा किया स्थान हो। २. दिपाल । लोकपाल । ३ घरवाला । स्वामी। हुना धन । रक्षित द्रव्य । जमा। पूजी । गथ । ४ दूसरे का पति । उ-तेरा यानी क्यों मुधा गह क्यो न राखा वाहि । धन जो किसी पास इस विचार से रखा हो कि वह मांगने सहजो बहुतक मिल छुदै चौरासी के माहि। -सहमो०, पर दे देगा। धरोहर । ममानत । उ.-पारहि घार घलायत पृ०२३॥ हाय सो का मेरी छाती में थाती घरी है।-(शब्द०)। थानी-वि• सपन्न । पूर्ण। थाथो-सखी [हिं०] दे० 'याती' । २०-कहै कबीर जतन करो थानुहु-सज्ञा पुं० [सं० स्यागु] शिव । साधो, सत्तगुरू की थायी:-कवीर श०, मा. १.पू. ४८। थानुसुत-सी पुं० [सं० स्थाणु+सुत, प्रा० थारगु+सं० सुत] शिव थान-सपा [सं० स्थान ] १. जगह । ठौर । ठिकाना।२ रहने जी के पुत्र गणेश । गजानन । उ०-थोरे पोरे मदनि कपोल या ठहरने की जगह । डेरा। निवासस्थान । ३ किसी देवी फूले यूले थूले, डोले जल थल बल थानुसुत नाखे । केशव देवता का स्थान । देवल । बैसे, माई फा थान । उ०-इह म०, भा०१.पु.१३१ 1 गोपेसर यान पूरव । नित प्रति निसा कतरे सौरभ ।-१० थानेत-सा पुं० [हिं० थान] दे० 'यानैत'।। रा०, १ । ३६८।४ वह स्थान जहां धार या चापाए वा थानेदार-समा.हि. याना+फादार पाने का वह पसर जायें। या प्रधान जो किसी स्थान में शाति बनाए रखने पौर मुहा०-यान का टर्रा=(१) वह धोड़ा जो सूटे से वंषा बंधा अपराधो की छानबीन करने के लिये नियुक्त रहता है। नटखटी करे। घुसाल में उपद्रव करनेवाला। (२) वह जो घर पर ही या पड़ोस में ही अपना जोर दिखाया करे, बाहर थानेदारी-सहा खौ० [हिं० थाना+फा. दारी ] थानेदार का कुछ न बोले। अपनी गली में ही शेर बननेवाला। थान का पद या कार्य। सच्चा = सीधा घोक्षा। वह घोड़ा जो कही से छुटकर फिर थानैत-सा पुं० [हिं० थान+ऐत (प्रत्य॰)] १ किसी स्थान का अपने खुटे पर मा जाय । धान मे पाना = (घोड़े का) धूल अधिपति । किसी चौकी या भड़ो का मालिक । २. किसी में लोटना । अच्छे थान का घोड़ा = मच्छो जाति का घोडा। स्थान का देवता । ग्रामदेवता। प्रसिद्ध स्थान का घोड़ा। थाप-सहा स्त्री० [सं० स्थापन] १. तबले, मृदग मादि पर पूरे पजे ५. वह घास जो वोड़े के नीचे विछाई जाती है। ६ कपड़े गोटे का मापात । थपकी। ठोक । उ०-सुङ मार्ग पर भो मादि का पूरा टुकड़ा जिसकी लवाई बंधी हुई होती है। जैसे, द्रुत लय में यथा मुरज की या है।-साफेत, पृ० ३७२ ।