पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५७२

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१२२० - - न। परवी - - दहाल ', राग बिसचे शुख श्रषभ के अतिरिक्त बाकी सब कोमल स्वर दरवो-सा स्त्री॰ [सं० दवा ], १. साप का फन । लगते हैं। यौ०-दरवीकर = साँए । फनवाला साँप ।। घरवी-संभ सी० [सं० दीं ] करछी । काछी । करछुल ! . ___ २ फरछुल । पोना । ३ सबसी । दस्तपना | दस्पना । ' दरभ-सका पं० [सं० दर्भ ] दे॰ 'दम'। दरवेश- सज्ञा पुं० [फा०],[ श्री दरवेसी ] फकीर । साधु । - - दरभर-सका पु० [7] वर । उ०—कपि शाखामृग बलीमुख कीश दरवेशी--सहा श्री० [फा०.] फकीरी । साधुता [को०)। दरभ लंगूर । धानर मठ : प्लवंग हरि तिन कहें भजु मन- दरश-मया पुं० [सं०दर्श ] दे० 'दर्श'।' .. कूर ।-नंददास ( शब्द०)। दरशन-संघा पुं० [सं० दर्शन ] दे० 'दर्शन' 1. दरमंद-वि० [फा० दरमादह पाजिज । दुस्खी। निसहाय । बेकस। दरशना-क्रि० म०, नि० स० [सं० दर्शन 1 दे० 'दरसना'। १०-सालिक तौ दरमंद जगाया बहुत उमेद जवाब न पाया। दरशाना -कि.म , क्रि० स० [सं० दर्शन ] दे दरसाना। -रे० पानी, पु०.५५ । दरस-सघा पुं० [सं० ] १ देखादेखी। दर्शन दीदार । उ.दरमन-संह पुं० [फा०] इलाजा पोषष । दरस परस मज्जन मरु पाना । -तुलसी। (शन्द०)। ' यौ०-दवादरमम= उपचार । यौ०-दरस परस । दरौदा-वि० [फा० दरमान्दह ] लाचार । मसहाय । संकटग्रस्त । २ भेट । मुलाकात 1 ३ रूपयदि 1 सुदरता। ? १०-दरमादा ठाढो तुम दरबार । तुम बिन सुरत करे को , दरसन-सका ई० [सं० दर्शन ] दे॰ 'दर्शन'। मेरी दरसन दीवै खोन किवार। कबीर श०, भा० २, दरसना -कि. प. [सं० दर्शन] दिखाई पड़ना। देख पड़ना । देखने में माना। दृष्टिगोचर होना। उ०-यो नार दरमा-संशा स्त्री॰ [देश॰] वास की वह घटाई जो बंगाल में की दरसे मति सी। लोपे तमता अपकीरति सो।झोपड़ियों की दीवार बनाने में काम पाती है। केशव (शब्द०)। दरमा -संशा पुं० [सं० दाडिम ] अनार । दरसना-क्रि० स० [सं० दर्शन न देखना । पखना। उ०-(क) दरमाहा-सहा पुं० [फा० दरमाह. ] मासिक वेतन । बन राम शिला दरसी जबही-केशव । (शब्द॰) । (ख) दरमियान-सा पु० [फा०] मध्य । बीच । नर मध भए दरसे ठरु मोरे ।-केशव । (धन्द०)" . दरमियान'-कि० वि० बीच में । मध्य में। दरसनिया -सधा श्री० [सं० दर्शन ] विस्फोटक, महामारी मादि दरमियानी'-वि० [फा०] बीच का । मध्य का। वोमारियों की शाति के लिये पूजा मादि करनेवाला । झार दरमियानी-संभ [ फ्रा. ] १ मध्यस्थ । बीच में पड़नेवाला फूक प्रादि करनेवाला। व्यक्ति । यो प्रादमियों के बीच में झगड़े का निबटेरा करने. दरसनी -सहा सो [सं० दर्शन] दर्पण । शीशा । माईना। 3.वाला मनुष्य । २ दलाल । नकुल सुदरसन दरसनी छमकरी चचाप । दस दिसि देखत दरम्यान--संह पुं० [फा० दरमियान ] ३० 'दरमियान' । उ० सगुन सुभ पूजहि मन ममिलाप !-तुलसी (शब्द०)। प्रवल देखो ये कया, उसे नाम न था, नाम दरम्याने पैदा हुमा दरसनीय -वि० [सं० दर्शनीय ] दे० 'दर्शनीय'। चल, चल, पल ।-दक्खिनी० पु. ५७ । दरसनी हुडी–सना बी० [सं० दर्शन ] १. वह हुंड़ी जिसके भुगतान दरया-संज्ञा पुं० [फा. दर्या ] दे० 'दरिया। को मिति को दस दिन या उससे कम दिन बाकी हो। ( इस दरयाव-सबा पुं० [फा० दरयाव 1 २० 'दरियाव'। उ.----ऐसे सब प्रकार की हु हो बाजार में दरसनी हुडी के नाम से विस्ती खलक ते सकल सकिलि रही, राव में सरम जैसे सलिल दरयाव थी। २ कोई ऐसी वस्तु जिसे दिखाते ही कोई वस्तु प्राप्त में !-मति. ०, पृ. ३६८। हो जाय। दररना'-क्रि० स० [देश॰] दे० 'दरना'।। दरसाना-क्रि० स० [सं०-दर्शन] १. दिखलाना ।ष्टिगोचर करना । उ.-चकित जानि जननी जिय रघुपति यपु विराट दरसायो। दररना-कि० स० [हिं० दरेर ] दे० 'दरेरना' । -रघुराज (शब्द०)। २ प्रकट करना । स्पष्ट करना । समदरराना'-क्रि० स.[ मनु.] हड़बड़ी या तेजी से माना। झाना। उ०-रामायन भागवत सुनाई। दोन्ही भक्ति राह दरराना-कि० स० [हिं०] दे० 'दरदराना' । दरसाई।-रघुराज (शब्द०)। दरवाजा-समपुं० [फा० दरवाजह ] १.द्वार। मुहाना । दरसाना२-कि० म० दिखाई पडना । देखने में माना । दृष्टिगोचर मुहा०—दरवाजे की मिट्टी खोद डालना या ले डालना वार होना । उ॰—(क) डाढ़ी में प्ररु वदन मे सेत बार दरसाहिं । वार दरवाजे पर माना। दरवाजे पर इतनी वार जाना माना रघुराज (शब्द०)। (ख) प्रमुदित करहिं परस्पर गता। कि उसकी मिट्टी खुद जाय । सधि तब अघर स्याम दरसाता ।-रघुराज (शन्द०)। २. किवार। कपाट। दरसावना-क्रि० स० [हिं० दरसाना ] दे० 'दरसाना' । कि०प्र०—खटखटाना। खोलना ।-बंद करना । भेढ़ना। दरहाल-कि० वि० [फा०दर+म. हाल] मधी। इसी समय ।