पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५७४

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दरियाई नारियल २२९५ दरती कभी कभी लोग इसका शिकार गड्ढे खोदकर करते हैं। रात या नीचा स्थान जहाँ कोई नदी बहती या गिरती हो। को जब यह जतु गड्ढों मे गिरफर फंस जाता है तब लोग यो०-दरीभृत् । दरीमुख । इसे मार डालते हैं। इसके एमडे से एक प्रकार का लघीला दरी–समा श्री० [सं० स्तर, स्तरी ( = फैलाने की वस्तु)] मोटे सूत्रों और मजबूत चावुक बनता है जिसे 'फरवस' कहते हैं। मिन का बुना हुमा मोटे दल का विछौना । पातरंजी। देश मे इस चावुक का प्रचार है। वहां की प्रजा इसकी मार , दरी-वि० [सं० दरिन्] १. फाइनेवाला । विदीर्ण करनेवाला। २ से बहुत डरती है। पहले नील नदी के किनारे परियाई डरनेवाला । डरपोक । फादर।। घोड़े बहुत मिलते ये, पर अब शिकार होने के कारण वहत " दरी-सहा मी [फा०] फारसी भाषा की एक पासा का नाम को०)। ___ कम हो चले हैं। दरीखाना-सदा ई० [फ'. दर+खाना] वह घर जिसमे बहुत से दरियाई नारियल-सशा पुं० [फा०दरियाई+हि० नारियल] एक द्वार हो । वारदरी । उ०-दर दर देखो दरोगानन में दोरि प्रकार का नारियल जो ममीका, अमेरिका मादि में समुद्र के दौरि दुरि दुरि दामिनी सी दमकि दमकि 31-पद्माकर किनारे फिनारे होता है। (पान्द०)। विशेष-इसकी गिरी और छिलका सूखने पर परपर की तरह दरीगृह-सहा पु० [सं०] दे० 'दरी' .-."ये मदिर पाराणसगे कडा हो जाता है। इसकी गिरी दवा के काम में माती है। को काट काटकर दरीगृहो के रूप में बने थे। -मा. भा., खोपड़े का पाम बनता है जिसे सन्यासी या फकीर अपने पास पृ० ५६३। रखते हैं। दरीचा---सपा पुं० [फा० दरीचह ] [ली. दरीची] १.खिड़की। दरिया -संवा पुं० [फा० दरियाव ] दे० 'दरिया' । झरोखा । २. छोटातार । पोर दरवाजा। उ०-दरीचातुं दरियादासी-सशा पुं० [हिदरियादास+ई ] निर्गुण उपासक इस वाव का मुज को खोल । मिल उस यार सूक्यू गहूँ मुज साघुओं का एक सप्रदाय जिसे दरिया साहर नामक एक वोल । -विसनी, पृ००४ ३ सिटकी के पास बैठने व्यक्ति ने पलाया था। कहते हैं, इस संप्रदाय के लोग की जगह। प्राधे हिंदू माधे मुसलमान होते हैं। सत दरिया के संप्रदाय दरीची-सपा श्री० [फा० दरीचह. 1 १ झरोखा। खिडकी। २. फा अनुगामी। खिड़की के पास बैठने की जगह । -(क) मूदि दरीचिन दरियादिल-वि० [फा०] [सी दरियादिली] उदार। दानी। दै परदा सिदरीन करोखन रोकि पायो ।---गुमान (चन्द०)। फैयाज। (ख) से ई मरीचिका परीचिन के देवे ही में छपा को छबीली दरियादिली सहा सी० [फा०] उदारता । छविधहरति ततफाल ।-द्विजदेव (शब्द०)। दरियाफा-वि० [फा० दरियात ] दे० 'दरियाफ्त। उ मापुको दु दरीचा-सपा पुं० [?] १ पान दरीचा। पान को सट्टी। वह खूध दरियाफ कीजै ।-पलटू०, ०५६। जगह बहा बहन से तपोली वैचने के लिये पान लेकर बैठते दरियापत-वि० [फ० दरियाफ्त ] ज्ञात । मालूम । जिसका पता । हैं। २ बाजार। उ०-मासिफ मममी साध सब, अलख लगा हो। दररावे जाइ। साहेव दर दीदार मैं, सब मिलि बैठे माइ । - दादू.पु. १३१॥ क्रि० प्र०-फरना ।—होना । दरीमत-सशा ई० [सं० दरीभृत्] पर्वत । पहाड। दरियाय..-ससा पुं० [फा० दरियाव ] दे० 'दरियाव ।3-हिंद ते पेदि पठान पग वर दल दलमलि दरियाय वहाके। - दुरीमुख-सपा [सं०] १ गुफा का मुह । २ राम को सेना का एक बदर । ३. गुफा के समान मुखवाला (को०)। परुवरी, पृ० ६७ । दरूदा-सदा श्री० [फा० रुद] दुमा। शुभकामना । कृपा । दरियावरामद-सहा पुं० [फा०] दे० 'दरियापार। १०-वे बदे को पैदा किया दम का दिया दादा-कबीर दरियाघरार--सप्ता पुं० [फा०] व भूमि जो किसी नवी की धारा सा०,३०८८७ हट जाने से निकल पाती है पौर जिस में खेती होती है। दरून-सा पुं० [फा०] पात्मा। हृदय । चित्त । कल्व [को॰] । दरियापार-वि० [फा०] अत्यंत बरसनेवाला । सदार । बरसासू (को०)। दरूना-सा पुं० [फा० दरूना) वह फोड़ा या घाव जिसका मुह दरियाबुर्द-सया पुं० [फा०] वह भूमि जिसे कोई नदी काटकर भीतर हो। उ०-दादू हरदम माहि दिवान कहूँ दरूने खराप कर दे जिससे यह खेती के योग्य न रहे। दरद सौं। दरद दरून जाइ, जब देखो दीदार को।-दादु., दरियाष-सया पु० [फा० दरियार] १ दे० 'दरिया। उ---सन पृ० ५६ । समुद्र मन लहर है नैन कहर दरियाव । वेसर भुजा सिकदरी दरूनी-वि० [फा०] भीतरी । पातरिक । उ-चगेनी सब तमामा फहत न भाव, न भाव ।-(प्रचलित) १२ समुद्र । सिंधु। यह जो देखो। न जाने यह दरूनी खेल घट का 1- कबीर उ०---पक्का मतो करिके मलिच्छ मनसब घोषि मयका ही म., पु० ३७६ । . उतरत दरियाव हैं।-भूषण (शब्द०)। रती--मछात्री० [सं० दर+यन्त्र] मनाज दलने का नोटा ] १. गुफो । खोह । २. पहाड़ के वीच वह स्थड पना चक्की।