पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५७५

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२२२३ रेट-४ा. [सं० छरेन्द्र ] विष्णु का राख । पाचजन्य [को॰] । दरेक-सबा पुं० [सं० ट्रेक ] बकाइन का दूस। रेग-संथा पुं० [अ० दरेश ] कमी । कसर । कोर कसर । जैसे हा में इस काम के करने में दरेग न कलंगा । रेर-सा [है. दर ] दे० 'दरेरा'। उ०-दरिया वो कह दरियान दरेर में दोरि जजीर के तानतु है ।--80 दरिया, पृ.६५। दरेरना-क्रि० स० [सं० दरण] १. रगहना। पीसना । २. रमाते हुए पाका देना। दरेरा-संशपुं० [सं० दरण] १. रगड़ा। धक्का । 30--तापर सहिन जाय कपणानिधि मन को दुसह दरेरो।-तुलसी (शब्द॰) । २. मह का झाला । ३. बहाव का बोर । तोड़। परेससंग सी० [अ० ईस । एक प्रकार की छोट ! फूलदार छपा हमा एक महीन कपड़ा। दरेस-वि० [. ड्रेस ] तेयार बना बनाया। सजा सजाया। दरेस--सश, पुं० [सं० दर्शन ] दे० 'दरस' । उ० हुमा देस तहाँ जा पईचे देखो पुरुष दरेस ।-कवीर० १०, मा० ३, पु.४६। दरेसी-सावी.[ मंस ] दुरुस्ती तैयारी मरम्मत । रेया-श पुं० [सं० र दलनेवाला। वह जो दछे । २. घातक । विनायक। उ०-दशरस्य को नदन दुख दरेया । विचार से निश्चित स्थान । श्रेणी। कोटि । वर्ग। जैसे,-- वह प्रवल दर्जे का पाजी है । २. पढ़ाई के क्रम में ऊंचा नीचा स्थान । जैसे,—तुम किस दर्जे में पढ़ते हो। मुहा०-दर्जा उतारना = ऊंचे दर्जे से नीचे बजे मे कर देना । दी चढ़ना-नीचे दर्जे से कंचे दर्जे मे जाना । दर्जा चढ़ाना - नोचे दर्जे से ऊंचे दर्जे में करना। कि०प्र०-घटाना ।-बढ़ाना । ४ किसी वस्तु का विभाग जो ऊपर नीचे के क्रम से हो। खड। पैसे, पालमारी के दर्जे । मकान के दर्जे। दर्जार-कि- वि० गुरिणत । गुना। जैसे,—वह चीज उससे हजार दर्जे दर प्रच्छी है। दर्जिन-सम्रा बी० [फा० दर्जी+हि. इन (प्रत्य॰)] १ दर्जी जाति की स्त्री। २ दर्जी की स्ली। ३ सोने का व्यवसाय फरनेवाली स्त्री। दर्जी-सम पुं० [फा० दर्जी] १ कपड़ा सोनेवाला । वह जो कपड़े सीने का व्यवसाय करे। २. कपड़े सोनेवाली जाति का पुरुष । महा०-दर्जी की सूई- हर काम का भादमी । ऐसा भादमी जो कई प्रकार के काम कर सके, या कई बातो मे योग दे सके। दर्द सझा पुं० [फा०] १. पीड़ा। व्यथा। कि.ग्र.-होना। महा०-दर्द उठना-दर्द उत्पन्न होना। (किसी मग का) दर्द करना- ( किसी प्रग का) पीड़ित या व्यथित होना। ददं खाना=कट सहना । पीडा सहना । जैसे,—उसने दर्द खाकर नही जना ? ददं लगना-पीड़ा भारभ होना। २ दुख। तकलीफ । जैसे, दूसरे का दर्द समझना। महा-ददं मानातकलीफ मालूम होना। जैसे,—पया निकालते दर्द माता है। ३, सहानुभूति । करुणा । दया । तसं । रहम। क्रि० प्र०-माना । —लगना । मुहा०-दद खाना = तरस खाना । दया करना। ४ हानि का दुस्सा खो जाने या हाय से निकल जाने का कष्ट । जैसे,-उसे पैसे का दद नही। यौ०-दर्दनाक ! ददंमद । ददेंजिगर = दर्देदिन । दर्दे दिल = मनस्वाय । मनोव्यया। दर्देसर-(१) शिर पीड़ा (२) झमट का काम । दर्दोगम = पीडा मार दुख । कष्टसमूह। १०-मुझको शायर न कहो मीर कि साहब मैने । दर्दोगम कितने किए जमा तो दोवान किया। कविता कौ०, भा० ४, पु. १२२ । दर्दनाक-वि० [फा० ] कष्टजनक । दर्द पैदा करनेवाला [को०] । ददेमंद-वि० [फा०] [बचा ददमदी] १ जिसे दद हो।पाड़ित । दुखी। २ जो दुसर का दद समझे । जिसे सहानुभूति हो। दयावान् । दुदर'--वि० [सं०] टूटा हुमा । फटा हुमा। दर्दर-सा पुं० [ से० ] १ कुछ कुछ खडित कलश । २. एक वाघ। ददुर । ३ ददुर नामक पर्वत [को॰] । दरोग-सदा पु० [प्र. दरोग] झठ। असत्य । गसत । मिय्या। उ.-(क) हो दरोग को कहीं सूर उम्मै पच्छिम दिसि । हों दरोग जो कहीं ईद मामै कुहे मिसि!-पृ० रा०,६४ । १३६ । (स) मेरी बात जो कोई जाने दरोग। कमी फेर उसको न होवे फरोग :-कबीर म०, पृ० १३८ । यौ०-दरोग हलफो। दरोगहलफो-सबा श्री. प्र.दरोगहलो ] १ सच बोलने की कसम खाकर भी मूळ बोलना। २. झूठी गवाही देने का जुर्म। दरागा -सहा.[फा० दारोगह दे० 'दारोगा। उ.--सो या परगने में एक म्लेच्छ दरोगा रहे।-दो सौ पावन भा. १, पृ०२४२। दरोदर-सय पु० [सं० दे० 'दुरोदर' को ! दार-कि० वि० [फा. दरकार ] १० 'दरकार' । दगाह--सा पुं० [फा० दरगाह ] दे॰ 'दरगाह। दज-सा नी. [हिं० दरजतुल० फार दजें] दे० 'दरज'। पन--वि० [फा०] लिखा मा । कागज पर चढ़ा हुमा । मकित । कि०प्र०—करना । —होना । जन-संा पुं० [म. उजन । बारह का समह । इकटठी बारह वस्तुएं। ० [4. दह १. ऊँचाई निचाई क्रम के