पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५७९

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दर्शनप्रतिम् રરર૭ दलद र्शनप्रतिभ-सहा पुं० [सं०] वह प्रतिभू या जामिन जो किसी को नक्काशी साफ फो जाती है। यह घरी पाकार का होता है समय पर उपस्थित कर देने का भार अपने ऊपर ले। वह परंतु सिरे पर चिपटा होता है। भादमी को किसी को हाजिर कर देने का जिम्मा ले। दुलकर--सधा [हिं० दलफना] १ वह रूप को किसी प्रकार के दर्शनप्रतिभाव्य ऋण-संज्ञा पुं० [सं०] वह ऋण जो दर्शन प्रतिभू प्राघात से उत्पन्न हो मौर कुछ देर तक बना रहे। परकी साख पर लिया गया हो। यराहट । धमका। जैसे, ढोषक की दलक। २. रह रहकर दर्शनीय-~-वि० [सं०] १.देखने योग्य । देखने लायक । २ सुदर। उठनेवाला दर्द। टोस । चमक। - मनोहर । ३. न्यायालय में न्यायाधीसा के समक्ष उपस्थिति दरकन-सका प्री० [हिं० दलकना] १ दलकने की क्रिया या भाव। योग्य (को०)। दलक । २ झटका। पाघात । उ-मद बिलद ममेरा दलकन पाइय सुख झकझोरा रे ।—तुलसी (ग्रन्द०)।। दर्शन. हुदी-सका सी० [हिं० ] दे० 'दरसनी हुगे । दर्शयिता' वि० सं० दर्शयित १ दिखानेवाला। प्रदर्शक । ६. दलकना'-कि०म० [सं० दलन ] १ फट जान । दरार खाना। निर्देश करनेवाला । बतानेवाला । जैसे, पथदर्शयिता। चिर जाना । उ-तुलसी कुलिस को को ता हि दिन दलफि दली।—तुलसी (शब्द०)। २. थर्राना। कापना । दर्शयिता-समपुं० १द्वाररक्षक । द्वारपाल । २.निर्देशक [को०। उ.-महाबली बलि को दवतु दलकत भूमि तुलसी उपरि दर्शाना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'दरसाना' । सिंधु मेरु मसकत है। -तुलसी (धन्द०)। ३. पोंकना । दर्शित-वि० [सं०] १.दिखताया हमा। ३. प्रकाशित । प्रकटित । उद्विग्न हो उठना । उ०-(क) दलकि उठेउ सुनि वपन ३. प्रमाणित। कठोरू 1 जनु छुइ गयो पाक वरतो!-तुलसी (शब्द॰) । दर्शी-वि० [सं० दशम् १ देखनेवाला। २ विचार करनेवाला। (ख) कैकेई अपने करमन को सुमिरत हिय में दलकि उठो। -देवस्वामी (शब्द॰) । ३ अनुभूत करनेवाला ! दस-सका पुं० [म.] शिक्षा। नसीहत । उपदेश । उ०—जो पड़ते दलकनारे-क्रि० स० [सं० दलन ] डराना। भीत कर देना। दर्स जर ये खुदं माल, मस्जिद के दरमियान तस्ती फतें ले।-- भय से कंपा देना। १०-सूरजदास सिंह बलि अपनी लीन्ही पविखनी०, पृ०, १९५। दलकि शृगालहिं । -सूर (शब्द॰) । दनीय-वि० [सं० दर्शनीया देखने योग्य । दर्शनीय । उ०----रम्प दलकपाट–सद्या पुं० [सं०] हरी पखड़ियों का पह कोश जिसके सुपेसल भव्य पुनि दर्सनीय रमनीय ।—पनेकार्थ०, पृ०६६। भीतर कली रहती है। दलकोमल-सया पुं० [म० ] कमल । पकज (को०] । जो एक दूसरे से स्वभावत जूड़े हुए हो पर जरा सा दवाव दलकोश-सचा पुं० [सं०] कुद का पौधा । पड़ने से ममग हो जायें। जैसे 'चने, अरहर, मूग, उरद, मसूर, दलगजन'-वि० [सं० दलगञ्जन] श्रेष्ठ वीर । सेना को मारनेवाला। चिएँ इत्यादि के दो दल जो चक्की मे दलने से अलग हो जाते भारी वीर। हैं। २ पौधों का पत्ता । पत्र । जैसे, तु नसीदल । ३ तमाल- दलगंजन--सपा पुं० एक प्रकार का धान । पत्र । ४ फूल की पखडी। उ०---जय जय अमल कमलदल दलगंध-सझा पु० [९० दलगन्ध] सप्तपणं वृक्ष । चितवन । सतिवन । लोचन |-हरिपनद्र(शब्द०)। ५. समह । झड । गरोह । ६ दलगर्जन -वि० [सं० दलगञ्जन ] ० 'दलगंजन'। उ०मग गुट । चक्र । जैसे,---यह दूसरे के दल में है। ७ सेनः । फोज । अग लच्छन वसहि जे बरनौ बत्ती । दलगर्जन दुर्जन दलन बस, युदल । ८ मयूरपुच्छ। ह.-दन कहिए नृप को दलपति पति दिल्लीम |--रसरतन, १०८। पटक, दल पधन को नाम. दल परही के पद सिर घरे स्पाम मभिराम ।--मनेकार्य०, पृ० १३५४ पटरी के माकार की दलधुसरा-सा पु० । हि० दाल+घुसड़ना ] एक प्रकार की रोटी, जिसमे पिसी हुई दाल नमक मसाले के साप भरी किसी वस्तु की मोटाई। परत की तरह फैली हुई किसी चीज की मोटाई 18 प्रल के कपर का पाच्छादन | कोप। रहती है। म्यान। १० धन । ११. जल में होनेवाला एफ तण। ११ दलथंभण--वि० [सं० दल+स्तम्भन ] सेना को रोकनेवालावती अशा टुकड़ा। खंड (को०)। १२ किसी का भाषाप्रश। हुई सेना को रोक देनेवाला। दल का स्तंभन करनेवाला । मधील (को०)। १३ वृक्षविशेष (को०) । १४ इक्ष्वावशी उ.- दाद सूर सुमट दल यभण रोपि रह्यो रन माही रे। पशक्षित राजा के एक पुत्र जिनकी माता मडूकराज की कन्या जाकी सासि सफल जग बोले टेक टली फह नाहीं रे।-मुंदर यो (को०)। 40. भा० २. .८७६ पलक'-सहासी दलकमी०-बैठा है इस दल क दलभन-सपा पुं० [हिं० दल+यामना कमखाव बुननेवालों का बिच मा माप छिपाय । साहव जा तन लख परे प्रगट सिफात पोजार जो वास का होता है और जिसमें मकुना मोर दिखाय ।-रसनिधि (शब्द॰) । नक्शा वैषा रहता है। पु. [ हि. दसकनाराजगीरों का एक मौजार जिससे दलदOT---सभा पु०० [सदारिप] 'दारिद्धप।२०--दोषोधन