पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५८३

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५२३१ पशति दवात'—संशा स्त्री० [म. दावात] लिखने की स्याही रखने का बरतन। दशकंठजहा -- सपा पुं० [से• दशकण्ठजहा ] रावण के सहारक, श्री मसिपात्र ! मसिदानी। रामचंद्र । उ.--माजु विराजत राज है दशकंठजहा को।दवाव मा पुं० [फा० दवा 1 पौषध । उ०—रचिक साहिन तुलसी (शब्द०)। मावै, कह कहानी जेन । परम दवात कहे जेत, दुखद होइ तेहि दशकंठजित्-सा पु. [ स० दशकए जित् ] रावण को जीतनेवाले, तेत।इद्रा०, पृ.१३ । श्रीराम । दवादपन-सम K० [फा० दवा+० दर्पण ] मोषध । चिकित्सा । दशकंठारि--संज्ञा पुं॰ [सं० दशकएठारि ] ( रावण के शत्रु ) श्री उ०—विना दवा दर्पन से गृहनी स्वरग चली माखें प्रात्ती भर । रामचद्र। -ग्राम्या, पृ० २५॥ दशकंध-सका पुं० [सं० दश+स्कन्ध, हि. कध] रावण । दवादस -वि० [सं० द्वादश ] दे० 'वाद' 130-धमादन माद दशहंघर-सवा पुं० [सं० दधाकन्धर ] रावण । ददादस गाजिय कीस, समाजिय भीतरा-रघु० ६०, दशक-मा० [सं०1१ दस का समूह दस क. डेरी। २ दस पु. १५८ । वर्षों का समूह । दस साल का निर्धारित काल । दबान -संचा० [ देश ? या डि. ] एक प्रकार का मस्त्र । एक दशकर्म-सा पुं० [सं० दशमन ] गर्भाधान से लेकर विवाह तक प्रकार की उत्तम कोटि की तलवार। 30--(क) संज्जे हयद के दस सस्कार, जिनके नाम ये हैं-गर्मापान, पुसवन, जे भरे सान, गज्जे सुभट्ट ले ले दवान |-सुजान०, पृ. १७ ॥ सीमतोन्नयन, जातकरण, निष्कामण, नामकरण, अन्नप्राशन, (ख) ले ऋवान वान भासमान भू गरज्जियो । धवान दै चूडाकरन, उपनयन पौर विवाद । दवार की कृपान हीय सज्जियो ।-सुजान०, पृ. ३० । दशकुमारचरित- पु० [सं०] सस्कृत कवि दरी का शिक्षा दवाना--पा० [सं० ] दवाग्नि । एक गद्यात्मक काव्य । वाम-क्रि० वि० [म.] नित्य । हमेथा । सदा । उ०-एक शर्त , दशकुलवृक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] तंत्र के अनुसार कुर उस सषि में यह भी पो कि झांसी का राज्य रामचंद्र राव के जिनके नाम ये हैं-लिसोड़ा, करंज, बेल, पीपर कुटुब में दवाम के लिये रहेगा, चाहे वारिस भौर सतान हों, बरगद, गूलर, मावला भोर इमली।। पाहे गोत्रज हों पथवा गोद लिए हुए हों।-झांसी०, पृ०१०। दशकोपी--सुखा ली. सं०] स्वताल के ग्यारह में दवाम-सका पु० [प.] निस्मता । स्थायित्व । हमेघगी।। (संगीत)। दवामी-वि० [१०] जो चिरकाल तक के लिये हो । स्थायी । जो दशक्षीर-सह पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार इन र सदा बना रहे । वैसे, दवामी बंदोबस्त । दुष-गाय, बकरी, ऊँटनी, मेंह, भैस, घोड़ी, स्लो, दवामी बंदोबस्त मश पुं० [फा०] जमीन का वह बदोबस्त जिसमें हिरनी मोर गदहो। सरकारी मालगुजारी सब दिन के लिये मुकर्रर कर दी जाय । दशगात-घना [ सै० दशगात्र 10 'दशगात्र। भूमिकर का वह प्रबंध जिसमें कर सब दिन के लिये इस १ प्रकार नियत कर दिया जाय कि उसमें पीछे घटती बढ़तीन दश दशगात्र-सबा पुं० [सं०] १ शरीर के दस प्रधान अग। २ मृतक हो सके। सबवो एक कर्म जो उसके मरने के पीछे दस दिनों तक होता दवा -सहा पुं० [सं० र] दे॰ 'हार'। उ.-पधराषियो सुभ रहता है। प्रात। छल हूंत मुरषर छात। दल कमघ साह दवार। मन विशेष-इसमे प्रतिदिन पिडदान किया जाता है। पुराणों में रहे साम सार ।-रा. रू०, पृ० ३० ॥ लिखा है कि इसी पिंड के द्वारा क्रम कम से प्रेत का शरार बनता है और दावें दिन पूरा हो जाता है। वैसे, पहले दवार-सबा सौ• [हि.] ३. 'दवारि'। पिंड से सिर, दूसरे से मांख, कान, नाक इत्यादि । दधारिसधा बी० [सं० दवाग्नि, हि० दवागि] वनाग्नि । दावानल। उ.-हाय न कोक तलास करै ये पलासन पौने दवारि दशग्रामपवि-संपुं० [सं०] जो राजा की भोर से दस ग्रामों का लगाई1-मरेश (शब्द॰) । मषिपति या शासक बनाया गया हो । दवाबाल-संक्ष पुं० [सं० द्विदल, राजा द्वाला (-दो चरणों विशेष-मनुस्मृति में लिखा है कि राजा पहले प्रत्येक ग्राम का वाला)] छद। 30-विपम सम विषम सम दवाले वेद तुरू, एक मुखिया पा शासक नियुक्त करे, फिर उससे अधिक प्रतिष्ठा ठोक गुर मंत तुक वहस ठाला :--रघु..पू. ५० । और योग्यता के किसी मनुष्य को पस प्रामों का भधिपति दवार-सहा पुं० [सं दावाग्नि, हि० दवारि] [भाग की लपट ) नियत करे, इसी प्रकार बीस, शत, सहन मादि तक मागका पुज । उ.-मागे पग्नि का मार। उपती भाय ग्रामों के हाकिम नियुक्त करने का विधाम लिखा है। ताता सार।-राम. भम०, पु. १६८ । दशग्रामिक-संशा पु० [सं०] दे० 'दशग्रामपति' [को०] । दश-वि० [सं०] दे' 'दस'। दशग्रामी-मया पुं० [सं० दशवामिन् ] दे॰ 'दशग्रामपति' को। दयकंठ-मपु० [सं० दशकएठ ] रावण (जिसके दस कठवा दशग्रीव-सहा ५० [सं०] रावण । सिरये। दशति-सी [सं०] सौ। । दा