पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५८४

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दलया २५५० दवाग्नि यो०-दरले थप दलेपानी पीमो (हाथीवानों की बोली)। वनारे-क्रि० स० [सं० दव] जमाना। उ.-प्रीपम दवत देवरिया दलया-सा पुं० [हिं० दलना] १. दलने या पीसनेवाला।२ कुज कुटीर। तिमि तिमि तकत तकनिहि पाढ़ी पौर रहीम (शब्द०)। नाश करनेवाला। मारनेवाला। १०-मदर बिलद मंदगति के चोया, एक पल मैं दलैया, पर दल बलखानि के। --मति• दवनी--सपासी० [सं० दवन ] फसल के सूखे डठलों को बैलों से प्र०, पृ० ३११। रौदवाकर दाना झाड़ने का काम । देवरी। मिसाई । मॅडाई। दल्भ-सा पुं०1 १ प्रतारण । पोखा । २ पाप। ३ चक्र। दवरिया--सपा श्री. [म० दवाग्नि] दे० 'दवारि'। उ०-ग्रीषम दक्मि--सधा पु० [सं०] १. द्रका वज। पशनि । २ शिव का दवत दवरिया कुज कुटीर । तिमि तिमि तकत तरुनिहि एक नाम [को०)। बाढी पीर |--रहीम । (शब्द०)। दलाल-सा [प] दे० 'दलाल'11.-जिन्हें हम व्यापारी दवरी-सका श्री॰ [हिं० दवारि] भाग । अग्नि । ज्वाला। ताप। न कहकर दल्लाल कहेंगे।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ. २६३ । उ.--जो मन की दवरी बुझि प्रावे, तव घट में परचे कुछ पावै । दरिया सा०, पृ० ३५ ॥ दुल्लाक्षा-सका खौ- [प्र० दल्नालह. ] कुटनी । दूती। दवा रिसधा [सं० दावाग्नि] ३. 'दावानल'। उ०-प्रतिथि दलाली-सक्ष श्री० [40] दे० 'दलाली'! पूज्य प्रियतम पुराणि के। फामद धन दारिद दवारि - दवेंगरा-सा पु. [सं०दव+मजार] १ वर्षा ऋतु के मानस०, ११३२ । पारय में होनेवाली झड़ी। उ०-बिहरत हिया करह पिट दवा-सदा श्री.[फा०1१ वह वस्तु जिससे कोई रोग या व्यथा टेका । दीठि दवंगरा मेरबहु एका । -जायसी । (शब्द॰) । दूर हो । पौषध । मोखद । उ०-दरद दवा दोनों हैं पीतम २ वर्षा के प्रारंभ में पानी का फही कही एकत्र होकर धीरे पास तयार रसनिधि (धन्द०)। धीरे बहना । (बु देल०)। यो०-दवाखाना । दवादारू । दवादपंन । दवादरमन । दवरी-समा स्त्री० [हिं०] दे० 'देवरी' । महा.--दवा को न मिलना-थोड़ा सा भी न मिलना । मप्राप्य दव-सा पुं० [सं०] १. वन । जगल । २. दवाग्नि । वह माग होना । दुर्लभ होना। दवा देना = दवा पिलाना । षो धन में मापसे माप लग जाती है। दवारि । दाया। २ रोग दूर करने का उपाय । उपचार । चिकित्सा । जैसेउ०-गई सहमि सुनि पचन कठोरा। मृगी देखि जतु मच्छ वैद्य की दवा करो। दव पहुँ भोरा । --सुलसी (शब्द०)। ३ प्रन्ति । पाग। उ.-(क) प्राजु पयोध्या जल नहि भचों ना मुख देखौं कि०प्र० करना।—होना । भाई। सूरदास राघव के बिछरे मरों भवन दव नाई। ३ दूर करने की युक्ति। मिटाने का उपाय । जैसे,-शक की -सूर (शब्द॰) । (ख) राकापति षोडश उग तारागण कोई दवा नहीं। ४ अवरोष या प्रतिकार का उपाय । ठीक समुदाय । सकल गिरिन दव लाइए रवि विनु राति न जाय । रखने की युक्ति। दुरुस्त करने की तदवीर । जैसे,—उसकी -तुलसी (शब्द०)। दवा यही है कि उसे दो घार खरी खोटी सुना दो। यो०-दवदम्पक = एक तृण 1 एक घास का नाम । दवदहन - दवा -सबा बी. [सं० दध] १ वनाग्नि । वन मे लगनेवाली ___ दावाग्नि । वनाग्नि। माग । उ०-कानन अधर वारि बयारि महा विष व्याधि दवा ४ दे० 'क्वयु। अरि धेरे ।---तुलसी (शब्द०)। २ पग्नि । भाग | 10दक्थु-सपा पुं० [सं०] १. दाह। जलन। २. सताप। पग्तिाप । (क) चल्यो दवा सो तप्त दवा दुति भरिश्रवा भरा-गोपाल (शब्द०)। (ख) तवा सो तपत परामंडल मखडल पोर मारत मडल दवा सो होस भोर ।-बेनी (गन्द०)। दवद्ध-वि० [सं० दव+ दग्ध, मा० दावाग्नि मे जता हा । 30---तहाँ सुअवसर रिष इफ, ऋस तन मग सुरग । दवदद्धी दवाई-सक्षा श्री [फा० दवा हि० ई (प्रत्य॰)]. 'दवा"। बनु दु म कोइ के कोई भूत भुभग ।-पु० रा०, ६१७ दवाईखाना--सक्षा . [हिं० दवाईफा खाना] दे० 'दवाखाना। दवन -वि०, सफा पुं० [सं० दमन, प्रा. दवण] दमन करनेवाला। दवाखाना--सपा पुं० [फा०] १ वह जगह जहाँ दवा विकती हो। नाश करनेवाला । उ०-प्राणनाथ सु दर सुजानमनि दीनवधु २. पौषघालय । चिकित्सालय । जन मारति दबन 1-तुलसी (शब्द०)। दवागनिए- सक्षा सी० [सं० दवाग्नि दे० 'दावाग्नि'। उ.-कहा वन-मक्षा ऐ० सं० दमनक ] दौना नामक पौधा । उ-हव दवागनि के पिएँ, कहा धरें गिरि धीर 1--मति० ग्र०, गुलाब, मजु मोगरे, दवन फुले, बेले मलवेले खिले चार चमन पू०३४७) में। -भुवनेश (शब्द०)। दवागि-या स्त्री० [सं० स्वाति वनाग्नि । दावानल । दवनपापड़ा-सधा पुं० [सं० दमनपपंट] पितपापडा। देवागिन-सज्ञा स्त्री० [सं० दवाति] दे० 'दावाग्नि' । दवना@-सक्षा पुं० [सं० दमनक] दे० 'दौना' । दुवाग्नि----सा बी० [सं०] वन मे लगनेवाली भाग। दावानल ।