पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५८६

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दशद्वार २२३५ देशमुख दशद्वार-समापुं० [सं०] मरीर के दस छिद्र-२कान, २ पाख, २ विभाग जिसके पतर्गत दस नगर थे। इसका नाम मेषदूत में नाक, १ मुख, १ गुद, १ लिंग मोर १ ब्रह्माह। माया है। दशधर्म-सपा पु० [सं०] मनुस्मृति में निर्दिष्ट धर्म में दस लक्षण दशपेय-समा ० [सं०] पाश्वलायन श्रोतसूत्र के अनुसार एक प्रकार जो मानन मात्र के लिये करणीय हैं। का यश । दशधा-वि० [सं०] १. दस प्रकार का। २. दस के स्थान का। दशवल-सक्षा पुं० [सं०] बुद्धदेव । - दशम । दसवा। 30-विश्वमगल प्राधार सर्वानद दशा में विशेष-बुद्ध को बस वल प्राप्त थे, जिनके नाम ये है-दान, प्रागार-भक्तमाल (श्री.), पृ. ४११ । शोल, क्षमा, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा, बल, उपाय, प्रणिषि दशा -कि० वि० दस प्रकार । पोर ज्ञान। दशन-सया पु० [सं०] १ दान। २ दांत से काटना । दोदो से दशबाहु-सचा पुं० [सं०] शिव । महादेव । पचमुख (को० । काटने की क्रिया। ३ कवच । धर्म। ४ शिखर। चोटो। दशभुजा-राधा स्त्री [सं०] दुर्गा का एक नाम । यो०-दशनच्यद । दशनवासस् - होछ। दशनपद =दत क्षत का दशभूमिग-सका पु० [सं०] (दान मादि दस भूमियों या बलो को __ स्थान प्रयवा चिह्न। दशनचीज । प्राप्त करनेवाले) बुद्धदेव । दशनच्छद-सशा पुं॰ [सं०] होठ । मोष्ठ । दशभूमोश-समा पुं० [मं०] बुद्धदेव । एशननीज- पुं० [सं०] मनार । दशम-वि० [सं०] दसवा। दशनांशु---सज्ञा पुं० [सं०] दांतों की चमः। दांतो की दमक [को०)। यौ०-दरामदया 1 दशमवार । दधाममाव । दशमलव । दशनाच्य-सया स्त्री॰ [सं०] लोनिया शाक। दशमदशा-समा स्त्री० [सं०] साहित्य के रसनिरूपण मे वियोगी की वह दशा जिसमें वह प्राण त्याग देता है। दशनाम-सका पुं० [सं०] सन्यासियो के दस भेद जो ये हैं-१ तीर्थ, २ पाश्रम, ३ पन, ४ अरण्य, ५. गिरि, ६ पर्वत, ७. दशमद्वार-सचा पु० [स] ब्रह्मरन । उ०-दामद्वार स प्राण का सागर, ८ सरस्वती, ९ मारती पौर १०.पूरी । त्याग श्री रामघाम को प्राप्त हुए।-भक्तमाल (श्री०), दशनामी-समा पुं० [हिं० दश+नाम ] सन्यासियों का एक वर्ग बो प्रतवादी पाकराचार्य के शिष्यों से चखा है। दशमभाव-सहा . [सं०] फलित ज्योतिष में एक जन्मलानांश। कुसली में लग्न से दसवा घर। पिशेप-शकराचार्य के चार प्रधान शिष्य थे-पद्मपाद, हस्ता विशेष-इस घर से पिता, कर्म, ऐश्वर्य प्रादि का विचार किया मसक, मंटन और टोटक। इनमे से पद्मपाद के दो शिष्य जाता है। येतीपं और पाश्रम, हस्तामलक के दो शिष्य-वन और मरएय, मडन के तीन शिष्य-गिरि, पर्वत और सागर । दशमलव-संशपुं० [सं०] वह भिक्ष जिसके हर में दस या उसका इसी प्रकार वोटक के तीन शिष्य----सरस्वती, भारती पौर कोई घात हो (गणित)। पुरी। इन्ही दस शिष्यो के नाम से संन्यासियो के दस भेद दशमहाविद्या-मया सी० [सं०] १. 'महाविद्या' को। चले। शकराचार्य ने चार मठ स्थापित किए थे, जिनमें इन दशमांश--सचा पुं० [सं०] इसका हिस्सा । दसवां भाग । दस प्रविष्यो की शिष्यपरपरा चली जाती है। पुरी, भारती दशमाल-सया पुं० [सं०] एक प्राचीन जनपद । एक प्रदेश का पौर सरस्वती की शिष्य परपरा शृगेरी मठ के अंतर्गत है; प्राचीन नाम । चौथं मोर माघम शारदा मठ के अंतर्गत, वन और परएय दशमालिक-सचा . [सं०] दशमाल देश । गोवर्धन मठ के प्रतर्गत तया गिरि, पर्वत पौर सागर जोशी मठ के मतगत है। प्रत्येक दशनामी संन्यासी इन्ही चार मठो दशमास्य-वि० [सं०] माता के गर्भ में दस महीने तक रहनेमें से किसी न किसी से अतर्गत होता है। यद्यपि दशनामी वाला [को०] । ब्रह्म या निर्गुण उपासक प्रसिद्ध हैं, तथापि इनमे से बहतेरे । दशमिकभग्नांश-सया पुं० [सं०] प्रकगणित की एक क्रिया जिसके पौवमय की दीक्षा लेते हैं। द्वारा प्रत्येक भिन्न या भग्नापा इस रूप में लाया जाता है कि उसका हर दस का कोई गुणिन् यक हो जाता है। दशमलव । दशनोच्छिष्ट-सपा पुं० [सं०] १. अपर। प्रोष्ठ। २ मघरचुंबन । ३ निश्वास । प्रवास । ४ दांतो द्वारा स्पष्ट कोई पदार्थ [को०। दशमी'-सधा सी० [१०] १ चाद्रमास के किसी पक्ष की दसवीं तिथि । २ विमुक्तावस्था। उ०-दशमी रानी है दिल दायक। दशपंचतपा- पु. [पु० दशपञ्चतपस ] इद्रियों का निग्रह करते सब रानी को सो है नायक ।-कबीर सा०, पृ. ५५० । हप पधाग्नि तपस्या करनेवाला तपस्वी [को॰] । ३. मरणावस्था । दशप-सका पुं० [सं०] दे० 'दशग्रामपति'। दशमी-वि० [सं० दशमिन्] [वि० बी० दमिनी] बहुत पुर। महुत देशपारमिताधर-सा पुं० [सं०] बुद्धदेव । पुराना । शतायु को अवस्थावाचा। दशपुर-सका पु० [सं०] १ पेवटी मीषा । २. मालवे का एक प्राचीन दशमुख'--पक पुं० [सं०] रावण ।