पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/५९०

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दसन' २२३६ - वस्संदाजी दसता रिन काष मावडिया सोमै नहीं, सूरा हंपो साव।- दसरान-संशा [हि दस रान?] कुश्ती का एक पेच। बाँकी०प्र०, मा० २, पृ० २.। दसराहा-सा पुं० [सं० दशहरा] विजया दशमी १०-दोसा दसनल-सबा पुं० [सं० दशन ] दे॰ 'दशन'। उ.--जो चित पढे रहिसि निवारियर मिलिसि दई कह लेखि। पूगल हासन नाममहिमा जिन गुनगन पावन पन के तौ तुलसिहि तारिहो पाहुणउ, दसराहा लग देखि।-ढोला०पू०२७३ । वित्र ज्यों दसन तोरि जमगन के-तुलसी ०, पृ० ५०७। दसा-वि० [सं० दशम 1 जिसका स्थान नौ भोर वस्तुमों के यौ०-दसनरसन = दातों का वस्त्र पर्थात् प्रोठ और मपर। उपरात पता हो। जो क्रम में नौ पौर वस्तुमा पीछे हो। उ.--नैननि के तारनि में राखो प्यारे पूतरी के, मुरली ज्यों गिनती के क्रम में जिसका स्थान दस पर हो। से, रसवा लाइ राशी दसनवसन में -केशव , भा० १,०२८ । लड़का। दसन-सश . [ देश० ] एक प्रकार की छोटी झाड़ी पंजाब, दसा -सा पुं० [हिं०] दे० 'दशगा। सिंघ, राजपूताने पौर मैसूर में पाई जाती है। इसकी छाल चमडा सिझाने के काम में प्राती है। दसरनी। दसस्यंदन@--समापुर सं० दश+स्पन्दन] वरष । उ०-- दसन-सा पुं० [सं०] विनशन । क्षय। नाथ। २. हटा देना। जनमे राम जगत के जीवन, धनि कोसिल्या पनि बसस्यक्त । -घनानंद,पु० ५५६। पहिष्करण । निष्कासन । ३. क्षेपण 1 फेंकना [फो०] । दसना-किप. [हिं० डासना ] विछना। विधाया जाना। दसांग-मक्ष पुं० [सं० वशान ] दे० 'दाग' । फैनाया पाना। दसा'-सका सी• [सं० दशा ] दे० 'दण। दसना-क्रि० स० विछाना। विस्तर फैलाना। उ०-विवेक सौ दसा-सहा पुं० [हिस] मगरवाल वैश्यों के दो प्रधान भेदों मनेकधा बसे भन्नुप भासने । पनर्घ अर्घ प्रादि दै विनय किए में से एक । घने धने ।--केशव ( शन्द.)। दसारन-सा . [ सदशाणं] एक देश । दे० 'दशाएं। दसना-सश ० [हिं० ] बिछौना । बिस्तर । दसारी-मक्षा स्त्री० देरा०] एक चिड़िया को पानी के किनारे दसना-क्रि० स० [सं० दशन या दशन ] दे० 'इसना'। रहती है। दसनामी-सचा पुं० [हिं० दशनाम ] दे० 'दशनामी'110-लेकिन दसी-सज्ञा स्त्री० [सं० दया] १. कपडे के छोर पर का सूत। दडी पाखही नहीं नित स्वच्छंद अवधूत सर्व वणंगम गिरि, छोर। २.कपड़े का पल्ला। यान का माचल । 10--जाता पुरी, भारती पोर दसनामी पोर उदासीन भी !-किन्नर, है जिस जान , तेरी दसी न जाय।-कोर (शब्द॰) । पु०१०।। ३ वैलगाड़ी की पटरी ! ४.चमड़ा बोलने का मौजार । रापी। दसनावलि-सक्ष स्त्री. [म० दशनावलि ] दांतों की पक्ति । ५ पता । निशान । चिह्न। 30-खिल उठी चल दसनावलि भाष, कुद कलियों में दसेंद-सबा पुं० [देश॰] केंदू तेंदू का पेड़। कोमल पाभ ।-गुजन, पृ. ४८ । इसमरिया-सवा स्त्री० [हिं० दस+मडना । एक प्रकार की वर. दसरक, दसेरुक-परा पुं० [सं०1०'दशेरक'। साती बड़ी नाव जिसमें दस तस्ते लवाई के बल लगे होते है। दसौ-संशा स्त्री० [सं० समी, दि० दसई ] दशमी तिथि। समाध -सहा पुं० [हि.स+माथ] रावण। उ०-सुनु सोतरा'-वि० [सं० दशोत्तर] दस ऊपर। दस प्रषिक। जैसे, दसमाय ! नाप साप के हमारे कपि हाय लका लाई तो दसोतरा सौ प्रर्थात् एक सौ दस । रहेगी एवेरी सी।—तुलसी (शब्द०)। दसोतरासबा पु० सो मे दस । सैकड़ा पीछे दस का भाग। - दसमी-सपा स्त्री० [सं० दशमी ] दे॰ 'दशमी' । दसौंधी-संज्ञा पुं० [सं० दास (-दानपत्र)+वम्वुक ( स्तुतिगायक, दसरग-पया पुं० [हिं० दस + रग ] मनखम की एक कसरत ।। भाट)] दियो या चारणों की एक जाति जो अपने का विशेष-इस कसरत में कमरपेटा करके जिधर का पैर मलखभ ब्राह्मण कहती है। ब्रह्मभट्ट । भाट। राजाभों को बंशावला को लपेटे रहता है उपर के हाप को सोषी पकड़ से मलखम मौर प्रशंसा करनेवाला पुरुष। उ.-(1) राजा रहा ष्टि में लपेटकर और दूसरे हाथ को भी पीछे से फंसाकर सवारी फरि मौषी । रहि न सका तब माट दसौंपी जायस नापते है तपा मोर अनेक प्रकार की मुद्राएँ करते हुए नीचे (शब्द०)। (स) देस देस ते ढाती पाए मनवांछित फर पायो। कपर ससकते है। को कहि सके दोषी उनको भयो सबन मन भायो। दसरत्य -सहा पु. [ सं० दशरथ ] ३० दशरथ'। २०-क्यों न संभारहि मोहिं, दयासिंधु वसरस्थ के।-सुलसीपु०६०। दस्तदाब-वि० [ फा दस्तदाज 1 हस्तक्षेप करनेवाला । वापर देनेदसरय -सबा पुं० [सं० दशरथ ] दे० 'दशरप'। वाला । छगवार करनेवाला मो०] । यो०-दसरथसुत - रामचंद्र । उ.-सोह दसरथसुत भगत हित दस्तंदाजी-सच बी० दस्तंदाजी] किसी काम में हाय डामने कोसल पति भगवान |-मानस, १।११। की क्रिया। किसो होते हुए काम में मारा हस्तक्षेप । दसरनी-बाबी. [देश॰] एक प्रकार को झाड़ो। वि.३० दलस। 'बसन'। क्रि०प्र०करना । होना।