पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/६

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प्रकाशिका

हिदी गाग्दसागर' अपने प्रकाशन काल से ही कोश के क्षेत्र में और वैज्ञानिक युग के विद्याथियो के लिये भी साधारणत पर्याप्त हो। भारतीय भापायो के दिशानिर्देशक के रूप में प्रतिष्ठित है। तीन मैं आपके निश्चयो का स्वागत करता है। भारत सरकार की ओर से दशक तक हिंदी की मूर्धन्य प्रतिभायो ने अपनी सतत तपस्या से ___ शब्दसागर का नया सस्करण तैयार करने के सहायतार्थ एक लाख इसे सन १९२५ ई० में मुर्त रूप दिया था। तब से निरतर यह अथ रुपए, जो पाँच वर्षों में वीस वीस हजार करके दिए जाएंगे, देने का इस क्षेत्र में गभीर कार्य करनेवाले विद्वतममाज में प्रकाशस्तभ के रूप निश्चय हुआ है । मैं प्राशा करता हूँ कि इस निश्चर से प्रापका काम में मर्यादित हो हिंदी की गौरवगरिमा का पाख्यान करता रहा है। कुछ सुगम हो जाएगा और आप इस काम मे अग्रसर होगे।' अपने प्रकाशन के कुछ समय बाद ही इसके खड एक एक कर राष्ट्रपति डा. राजेंद्रप्रसाद जी की इस घोषमा ने शब्दसागर अनुपलब्ध होते गए और अप्राप्य अथ के रूप में इसका मूल्य लोगो को के पुन सपादन के लिये नवीन उत्साह तथा प्रेरणा भी। सभा द्वारा ही सहन मुद्रायो से भी अधिक देना पड़ा । ऐसी परिस्थिति में अभाव प्रषित योजना पर केंद्रीय सरकार के शिक्षामत्रालय ने अपने पत्र स. की स्थिति का लाभ उठाने की दृष्टि से अनेक कोशों का प्रकाशन हिदा एफ४--३२५४ एच० दिनाक १११५।५४ द्वारा एक लाख रुपया जगत मेंइया. पर वे सारे प्रयत्न इसकी छाया के ही बल जावित पांच वर्षों मे, प्रति वर्ष बीस हजार रुपए करके, देने की स्वीकृति दी। थे। इसलिये निरतरं इसकी पुन अवतारणा का गभीर अनुभव हिंदी इस कार्य की गरिमा को देखते हुए एक परामर्शमडल का गठन जगत् और इसकी जननी नागरीप्रचारिणी सभा करती रही, किंतु किया गया, इस सबध में देश के विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारी विद्वानो साधन के अभाव में अपने इस कर्तव्य के प्रति सजग रहती हुई भी की भी राय ली गई, किंतु परामर्शमडल के अनेक सदस्यों का वह अपने इस उत्तरदायित्व का निर्वाह न कर सकने के कारण योगदान सभा को प्राप्त न हो सका और जिस विस्तृत पैमाने पर मर्मातक पीड़ा का अनुभव कर रही थी। दिनोत्तर उसपर उत्तर- सभा विद्वानो की राय के अनुसार इस कार्य का सयोजन करमा दायित्व का ऋण चक्रवृद्धि सूद की दर से इसलिये और भी बढता चाहती थी, वह भी नहीं उपलब्ध हुा । फिर भी, देश के अनेक गया कि इस कोश के निर्माण के बाद हिंदी की थी का विकास बडे निष्णात अनुभवसिद्ध विद्वानो तथा परामर्शमडल के सदस्यो ने व्यापक पैमाने पर हुआ। साथ ही, हिंदी के राष्ट्रभापा पद पर प्रतिष्ठिन गभीरतापूर्वक सभा के अनुरोध पर अपने बहुमूल्य सुझाव प्रस्तुत किए। होने पर उसकी शब्दसपदा का कोश भी दिनोत्तर गतिपूर्वक बढते समा ने उन सबको मनोयोगपूर्वक मथकर शन्दसागर के सपादन हेतु जाने के कारण सभा का यह दायित्व निरवर गहन होता गया। सिद्धात स्थिर किए जिनसे भारत सरकार का शिक्षामत्रालय भी सभा की हीरक जयती के अवसर पर, २२ फाल्गुन, २०१० सहमत हुआ। वि० को, उसके स्वागताध्यक्ष के रूप में डा. सपूर्णानद जी ने राष्ट्रपति राजेंद्रप्रसाद जी एव हिंदीजगत् का ध्यान निम्नाकित उपर्युक्त एक लाख रुपए का अनुदान बीस बीस हजार रुपए प्रति वर्ष की दर से निरतर पाँच वर्षों तक केंद्रीय शिक्षा मत्रालय शब्दो मे इस ओर आकृष्ट किया—'हिंदी के राष्ट्रभाषा घोपित हो देता रहा और कोश के सशोधन, सवर्धन और पुन सपादन का कार्य जाने से सभा का दायित्व बहुत बढ़ गया है। हिंदी में एक अच्छे कोश और व्याकरण की कमी खटाती है। सभा ने आज से कई लगातार होता रहा, परतु इस अवधि मे सारा कार्य निपटाया नही जा सका। मत्रालय के प्रतिनिधि श्री डा० रामधन जी शर्मा ने वर्ष पहले जो हिंदी शब्दसागर प्रकाशित किया था उसका वृहत बढे मनोयोगपूर्वक यहाँ हुए कार्यों का निरीक्षण परीक्षण करके सस्करण निकालने की आवश्यकता है। आवश्यकता केवल इस वात की है कि इस काम के लिये पर्याप्त धन व्यय किया जाय और इसे पूरा करने के लिये भागे और ६५०००) अनुदान प्रदान करने की संस्तुति की जिसे सरकार ने कृपापूर्वक स्वीकार करके पुन उक्त केंद्रीय तथा प्रादेशिक सरकारी का सहारा मिलता रहे। ६५०००) का अनुदान दिया। इस प्रकार सपूर्ण कोश का सशोधन उसी अवसर पर सभा के विभिन्न काया का प्रशसा करत हुए सपादन दिसबर, १९६५ मे पूरा हो गया। राष्ट्रपति ने कहा--'वैज्ञानिक तथा पारिभाषिक शब्दकोश सभा का महत्वपूर्ण प्रकाशन है। दूसरा प्रकाशन हिंदी शब्दसागर है जिसके इस ग्रथ के संपादन का सपूर्ण व्यय ही नहीं, इसके प्रकाशन के निर्माण में सभा ने लगभग एक लाख रुपया व्यय किया है। अापने व्यभार का ६० प्रतिशत बोझ भी भारत सरकार ने वहन किया शब्दसागर का नया सस्करण निकालने का निश्चय किया है। जब से है इसी लिये यह अथ इतना सस्ता निकालना सभव हो सका है। पहला सस्करण छपा, हिंदी में बहत वातो में और हिंदी के अलावा उसके लिये शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियो का प्रशसनीय सहयोग हमें समार में बहुत बातो में बड़ी प्रगति हुई है। हिंदी भाषा भी इस प्राप्त है और तदर्थ हम उनके अतिशय प्राभारी हैं। प्रगति से अपने को वचित नहीं रख सकती। इसलिये शब्दसागर जिस रूप मे यह प्रय हिंदीजगत् के समुख उपस्थित किया जा रहा का रूप भी ऐसा होना चाहिए जो यह प्रगति प्रतिबिवित कर सके है उसमे अद्यतन विकसित कोशशिल्प का यथासामर्थ्य उपयोग और - -