पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रयोग किया गया है, किंतु हिंदी की और हमारी सीमा है । यद्यपि द्वारा मेंट की गई। उन्होने अपने सक्षिप्त सारगभित भाषण में इस हम अथं और व्युत्पत्ति का ऐतिहासिक क्रमविकास भी प्रस्तुत करना सभा की विभिन्न प्रवृत्तियो की चर्चा की और कहा 'मार्वजनिक चाहते थे, तथापि साधन की कमी तथा हिंदी मथो के कालक्रम के क्षेत्र में कार्य करनेवाली यह सभा अपने ढग वी अकेली सस्था है। प्रामाणिक निर्धारण के अभाव में वैसा कर सकना सभव नही हुमा। हिंदी भाषा पीर माहित्य को जैमी सेवा नागरीप्रचारिणी सभा ने फिर भी यह कहने में हमे सकोच नही "कि अद्यतन प्रकाशित कोशो की है वैसी सेवा अन्य किमी सस्था ने नहीं की। भिन्न भिन्न विषयों मे शब्दसागर की गरिमा आधुनिक भारतीय भाषाओं के कोशो मे पर जो पुस्तके इस मस्था ने प्रकाशित की हैं वे अपने ढग के अनूठे प्रतुलनीय है, और इस क्षेत्र में काम करनेवाले प्राय सभी क्षेत्रीय ग्रथ है और उनमे हमारी भाषा और साहित्य का मान अत्यधिक भाषामो के विद्वान् इससे प्राचार ग्रहण करते रहेगे। इस अवसर पर वठा है। सभा ने समय की गति को देखकर तात्कालिक उपादेयता हम हिंदीजगत् को यह भी नम्रतापूर्वक सूचित करना चाहते हैं कि के वै मव कार्य हाथ में लिए हैं जिनकी इस समय नितात आवश्यकता सभा ने शब्दसागर के लिये एक स्थायी विभाग का सकल्प किया है है। इस प्रकार यह निस्मकीच पहा जा सकता है कि भाषा और जो वरावर इसके प्रवर्धन और सशोधन के लिये कोशशिल्प सबधी माहित्य के क्षेत्र में यह सभा अप्रतिम है'। अद्यतन विधि से यत्नशील रहेगा। प्रस्तत चतुथ सड मे 'ज' से लेकर 'दमदामी' तक के शब्दो का शब्दसागर के इम सशोधित प्रवधित रूप में शब्दो की सध्या सचयन है। नए नए शब्द, उदाहरण, योगिक शब्द, मुहावरे, मूल शब्दसागर की अपेक्षा दुगुनी से भी अधिक हो गई है। नए शब्द पर्यायवाची शब्द और महत्वपूर्ण ज्ञातव्य मामग्री 'विशेष' से सवलित हिंदी साहित्य के प्रादिकाल सत एव सूफी साहित्य ( पूर्व मध्यकाल), इम भाग की शब्दसम्या लगभग १६०००है। अपने मूल रूप में यह आधुनिक काल, काव्य, नाटक, पालोचना, उपन्यास प्रादि के ग्रय, अश कुल ५२६ पृष्ठो में या जो अपने विस्तार के माथ दम परिवपित इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, वारिणज्य आदि और सशोधित मस्करण मे ५७६ पृष्ठो मे या पाया है। अभिनदन एव पुरस्कृत प्रय, विज्ञान के मामान्य प्रचलित शब्द और राजस्थानी तथा डिंगल, दक्खिनी हिरी और प्रचलित उर्दू शैली आदि सपादकमान के प्रत्येक सदस्य ने यथामामयं निष्ठापूर्वक इसके से सकलित किए गए है। परिशिष्ट बड में प्राविधिक एवं वैज्ञानिक निर्माण में योग दिया है। श्री कृष्णदेवप्रसाद गौड नियमित रूप मे तथा तकनीकी शब्दो की व्यवस्था की गई है। नित्य सभा में पधार इसकी प्रगति को विशेष गभीरतापूर्वक गति देते रहे और प० करुणापति निगाठी ने इसके सपादन और सयोजन हिंदी शब्दमागर का यह सशोधित परिवधित सस्करण कुल में प्रगाढ निष्ठा के साथ घर पर, यहाँ तक कि यात्रा पर रहने पर भी, दस खडो में पूरा होगा। इसका पहला खुद पीष, सवत् २०२२ वि० पुग कार्य किया है। यदि ऐमा न होता तो यह कार्य संपन्न होना मे छपकर तैयार हो गया था। इसके उद्घाटन का नमारोह भारत .सभव न था । हम अपनी सीमा जानते है । नभव है, हम सबके प्रयत्न में गणतय के प्रधान मंत्री स्वर्गीय माननीय श्री लालबहादुर जी शास्त्री दृष्टियां हो, पर मदा हमाल परिनिष्ठिन यत्न यह रहेगा कि हम द्वारा प्रयाग में ३ पोप, सं० २०२२ वि० (१८ दिसवर, १६६५) को इमो और अधिक पूर्ण करते रहे क्योकि ऐसे यय का कार्य अस्थायी भव्य रूप से सजे हुए पहाल में काशी, प्रयाग एव अन्यान्य स्थानो के नही सनातन है। वरिष्ठ और सुप्रसिद्ध साहित्यसेवियो, पत्रकागे तथा गण्यमान्य नागरिको । की उपस्थिति मे सपन्न हुया। समारोह में उपस्थित महान भावो मे प्रत में शब्दसागर के मूल संपादक तथा सभा के संस्थापक स्व० विशेष उल्लेख्य माननीय धी प० कमलापति जी त्रिपाठी, हिंदी डा० श्शमसु दन्दान जी को अपना प्रणाम निवेदित करते हए, यह विश्वकोश के प्रधान सपादक घी डा० रामप्रमाद जी त्रिपाठी, पशूपण सकल्प हम पुन दुहराते हैं कि जब तक हिंदी रहेगी तब तक सभा कविवर श्री प. सुमियानदन जी पत, श्रीमती महादेवी जी वर्मा रहेगी और उसका यह शब्दमागर अपने गौरव मे कभी न गिरेगा। इस आदि हैं। इस सशोधित सवधित संस्करण की सफल पूर्ति के क्षेत्र में यह नित नूतन प्रेरणादायक रहकर हिंदी वा मानवर्धन करना पा उपलक्ष्य मे इसके समस्त सपादको को एक एक फाउटेन पेन, ताम्रात्र रहेगा और उसका प्रत्येक नया सस्करण और भी अधिक प्रभोज्वल पौर अथ की एक एक प्रति माननीय श्री शास्त्री जी के करकमलो हाता रहेगा। ना०प्र० सभा, काशी । सुधाकर पाडेय विजया दशमी, २०२४ वि०। प्रधान मत्री