पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/८९

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जागसिफ
जागृति
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जागतिक-० [सं०] जगदसंबंधी। सांसारिक [को०)। इद्रियों द्वारा सब प्रकार के व्यवहारों और कार्यों का अनुमय जागती कला-Bा स्त्री० [हिं० जागना+कपा) दे० 'जागती जीत'। होता रहे। जगठी जोत-सशास्त्री० [हि. जागना+सं० ज्योति 1१किसो जागरित-वि. जागा हमा। चैतन्य । सचेत । देवता विशेषत देवी की प्रत्यक्ष महिमा या चमकार । २. जागरित स्थान-सक्षा ० [सं०] वह मात्मा जो जागरित चिराग । दीपक। स्थिति में हो। जागना-क्रि० स० [सं० जागरण] १ सोकर उठना । मीय जागरितांत -समा पु० [सं० जागरितान्त ] वह प्रात्मा जो जागरित श्यागना । उ.-पाह जगावहिं भेला जागष्ट । माया गुरू पाय स्थिति में हो। पागरित स्थान। उठि सागहु ।-जायसी (शब्द०)। जागरिका-वि० [सं० जागरित ] [ वि०मी० जागरित्री] जाया संयो० nिo-उठना ।- पड़ना । प्रा । चैतन्य । २ निद्रारहित रहना । जाग्रत पवस्था में होना। ३. सजग होना। जागरी-100 [सं० जागरिन् ] ३० जागरिता"। चैतन्य होना। सायपान होना । उ० अरठाई पसा रवि काल सागरू-सका पु० [देश जाँगर + हि० ० (प्रत्य॰)] १ भूसा उयो अजहूँ पड़ जीष न जागहिरे-तुलसी (शब्द॰) । भादि मिना पा वह सराय अन्न जो दवाई के बाद पच्छा ४ उदित होना । चमक उठना । 3०-(क) भागत समाग पन्न निकाय लेने पर बच रहता है । २ भूसा। अनुरागष्ठ विराम भाम पागत मालस तुलसी से निकाम के जागरूफ-सका [.] वह जो जापत भवस्था में हो । चैतन्य । तुलसी (शब)। (ख) निश्चय प्रेम पीर पविषागा। जागरूक-वि० वागता हुपा । निद्रारहित । सावधान । पसे फसौटी कचन लागा।-जायसी (शम्द०)। ५ समृद्ध जागरूप-० [हि जागना रूप] जो बहुत ही प्रत्यक्ष मोर होना । बढ़ चढ़कर होना । ३०--पपाकर स्वादु सुधा हे सरें स्पष्ट हो। मषु ते महा माधुरी पागती है।-पद्माकर (प.)। ६. जागर्ति-सहा स्त्री. [सं०] १. जागरण । जाग्रति । २ चेतनता । पोर पोर से उठना । समुत्थित होना । जैसे, लोकमत फा पागमा । . प्रज्वलित होना । जलना । ८ प्रादुर्भूत होना। जागर्या-सको [सं०] दे० 'जागति' [को०]: अस्तित्व प्राम फरना। १. प्रसिद्ध होना। मशहर होना। जागा-संशा सी० [हिं० जगह ] दे० 'जगह'। १०-खायो खोधि मौगि में सेरो नाम खिया रे। तेरे पल जागाह -संशा सी० [फा० जायगाह, हि. अगह] स्थान । षगह । पलि प्राजु लौ जग जागि निया रे।-तुलसी (शब्द०)। उ.---कोई झगटे पपनी गगाह पर, यह मेरी है पह तेरी है। जागना ---क्रि० स० [स. यजन ] यश फरना । उ.--पयसि -राम धर्म० (सं०), 10 ६२ । पयागे पाग सत बागा सोह पावए बहु भागी।--विद्यापति, जागीण-समा पु० [सं० यश, भयवा देशज, जांगड़ा, जोगरा] भाट । पृ०४१७ । जागीर-सहा बी• [फा०] ऐसी भूमि जो रामा, बारशाह, नवाब जागनौल-सबा बी० [रा०] एक प्रकार का हथियार। मादि किसी को प्रदान करते हैं । वह गाय या जमीन मादि जागबलिक-समा पु. [ याज्ञवल्क्य] एक ऋषि । ६० या पक्ष्य। जो किसी राज्य या शासक प्रादि की पोर से किसी को उसकी स-बागबमिक जो कपा सुहाई। भरवाज मुनिवरहि सेवा के उपलक्ष में मिसे। सेवा के पुरस्कार में मिली हुई सुनाई।-तुलमी (सम्ब०), भूमि। जमीन । मुसाफी । समल्लुका । परगना । जागर-सा पुं० [सं०] 1 जागरण । बाग । जागने की क्रिपा । कि०प्र०-देना। -पाना। -मिसना । १०-सुनि हरिदास पर जिम जानो सुपने को सो जागर। यो०-जागीर खिदमती सेवा के बदसे में मिली जागीर । -हरिदास (सम्ब०).२ का भगत्राणजिरह पस्तर । जापौर मनसबी- वह पागौर जो किसी मनसर, किसी पद के ३ प्रतकरण की यह अवस्था जिसमें उसकी सब पुत्तियां धारण प्राप्त हो। (मन, बुद्धि, प्रहकार मादि ) प्रकाशित या जाग्रत हों। जागीरदार-सका [फा०] वह जिसे जागीर मिली हो। जागीर का मालिक। जागरक-वि० [सं०] जापत । घेतम्य [ को जागीरदारी-सशास्त्री० [फा० दे० 'जागीरी'। जागरण संवा पुं० [सं०] १.निद्रा का प्रमाषा आगना । २ किसी माशी - खी० [फा. जागीर+ई (प्रत्प०) बत, पर्ष या धार्मिक उत्सव के उपसक्ष में प्रपया इसी जागीरदार होने का भाव । २. प्रमोरी। सी। उ+--- प्रकार के किसी भोर भयसर पर भगवान करते हुए सारी भागता सो जूझिया पीठ जो लापा धाय । जागीरी सब तरी राप्त जागना। उ०-वासर ध्यान करत सब पीरयो । निशि धनी न कहसो माघ । पावीर (शब्द॰) । ३. जागीर के रूप जागरन करन मन भीत्यो।-सूर (सन्द०)। मे मिली मिलकियत । जागरा-सक्षा प्रो० [सं०] दे० 'जागरण' [को०] । जागुड़-सक्षा पुं० [सं० जागुर] १. वैसर । २. एक प्राचीन देव जागरित'-सहा पुं० [सं०] १ नींद का न होना। जागरण । २. का नाम । ३ इस देश का निवासी। । सांख्य पौर वेदात के मत से यह अवस्था जिसमें मनुष्य को जाग्रनि--संहा क्षी० [सं० जागति ] दे० 'जागरण' ।