पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/९०

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जागृषि जागृवि--सा पुं० [सं०] १ राजा ।२ भाग 1 ३. जागरण (को०)। जाजरी-संक [ देश०] बहेलिया। पिडीमार। जापत-वि० स० जाग्रत् 1१ जो जागता हो । सजग । सावधान। जाजला-संवा पुं० [फा० जाजरूर दे० 'जाजरूर। २ व्यक्त । प्रकाशमान । स्पष्ट (को०)। जाजरूर-सका पुं० [फा० जा+म. जरूर ] शौच क्रिया करने का जामत-सहा पु० वह अवस्था जिसमें शब्द, स्पर्य मादि सब बातों का स्थान ! पाखाना । ट्टी। परिज्ञान और ग्रहण हो। जाजल-सक्षा १० [सं०] अथर्ववेद की पक शाखा का नाम । जाग्रति-सहा श्री० [सं० जाग्रत ] जागरण । जागने की किया। जाजलि-सबा [सं०] एक प्रवरप्रवर्तक ऋषि का नाम । जापनी-समा बी० [सं०] १ करु । जाँघ । जंघा । २. पुच्छ। जाजा -वि०० घियादह, हिं० ज्यादा] बहुत । भधिक । पूंछ (को०)। उ.--जाय जोगण बंद बाजा, प्रजुण वन्ही फरे प्राजा । जाचक -सज्ञा पुं० [सं० याचक ] १. मांगनेवाला। वह जो वहण भावष होम बाजा, रूपि दराजा रोस। --रघु० रू., माँगता हो । भिक्षक । मंगन । भिखारी। उ०—(क) नर पु० २०७। नाग सुरासुर जाचक जो तुम्ह सौ मन मावत पायो न के। जाजात-सका बी० [फा० जायदाद ] दे० 'जायदाद'। -सुलसी (शब्द०)। (ख) नद पौरि जे जांचन पाए । बहुरी जाजामलार--सम पुं० [ देश०] सपूर्ण जाति का एक राग जिसमें सब फिरि जाचक न कहाए। -१०३२। २. भीख मांगने शुद्ध स्वर लगते हैं। इसे जाजमलार भी कहते है। वाला। भिखमगा। 7०-दोक चाह भरे फछू चाहत कह्यो जाजिम-सहा सौ . जाजम] १. एक प्रकार की छपी हुई चादर कहैन । नहि जापक सुनि सूम लौं बाहर निकसत बैन । जो विधाने के काम में पाती है। २. गलीचा । कालीन । --विहारी (शब्द०)। जाजी-सहा ० [सं० जाजिन 1] योद्धा । पीर को। जाचकताg+-सज्ञा स्त्री० [सं० याचकता] १ मांगने का भाव । जाजुल -वि० [सं० जाज्वल्य] दीप्तिमान । प्रकाशमान | प्रदीप्त । भीख मांगने की क्रिया । भिखमगी। उ०-जेहि जाचे उ०-दसकठ सेन सिंघार दारुण, मार भषयकुमार । तो जो- सो जाचकता घस फिरि वह नाच न नाच्यो। —तुलसी घार जो जोधार जाजुल रामरो बोधार। -रघु० रू०, (शब्द०)। पु० १६४। जाचना -क्रि० स० [सं० याचन] मांगना । उ०—जेहि भाचे सो जाजुलित -वि० [हिं० जाजुल+इत (प्रत्य॰)] दे० 'जाजुल'। जाचकता बस फिरि बहु नाच न नाच्यो।-तुलसी (शब्द०)। जाज्वल्य-वि० [सं०] १. प्रज्वलित । प्रकाशयुक्त । २. तेजवान् । जाजन-फ्रि० स० [सं० याजन ] यज्ञ कराना। उ०-जजन जाजन जाप ग्टन तीरथ दान मोषधी रसिक गदमूल देता। जाज्वल्यमान-वि० [सं०] १. प्रज्वलित। दीप्तिमान् । २ तेजस्वी -२० बानी, पु०२। सेनवान् । जाट-सचा पुं० [सं० यष्टि प्रयवा से० यादव,>जादव जाव> जाजना" -क्रिस० [हिं० जाना ] जाना । जाने की क्रिया या भाव । उ०---भालेवन और जगदीसे कही जाने कहाँ, पागि जाराम जाटन>जाट ] १. भारतवर्ष की एक प्रसिद्ध जाति के तो दाधे अंति प्रागि ही सिराहिंगे। -सुंदर० ०, जो समस्त पंजाब, सिंघ, राजपूताने मोर उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में फैली हुई है। (जी०), भा० १ पू०६६ । जाजना -क्रि० स० [हिं० जाजन ] पूजा करना । उपासना विशेष-इस जाति के लोग संख्या में बहुत अधिक है और भिन्न करना । उ०-स्पभ देव की सेवा जाजे, तो देव दृष्टि है सकल मित्त प्रदेश में मिन्न भिन्न नामों से प्रसिद्ध है। इस जाति के पछाने। -दक्खिनी०, पृ० ३४।। पधिकांश भाधार व्यवहार भादि राजपूतों से मिलते जुलते होते हैं। कहीं कहीं ये लोग अपने को राजपूतों के प्रवर्गत भी जाजम-सशा स्त्री० [तु० जाजम ] एक प्रकार की चादर जिसपर बतलाते हैं। राजपूतों के ३६ वंशों में जाटों का भी नाम वेल बूटे मादि छपे होते हैं और जो फर्श पर विधाने के काम पाया है। कुछ देशों में जाटों और राजपूतों का विवाह सबंध में माती है। भी होता है । पर कहीं कहीं के जाटों में विधवा विवाह मोर जाजमलार-सुधा पुं॰ [देश॰] दे० 'आजामलार'। सगाई की प्रथा भी प्रचलित है। जाटों की उत्पत्ति के सबंध जाजर@+-वि० [सं० जर्जर] [ वि०सी० जाजर, जापरी ] दुर्वल । में अनेक कथाएँ प्रसिद्ध है। कोई कहता है कि इनकी उत्पत्ति कृश । जीर्ण । उ०-घरन गिरहि कर कपमान जाजर घेह शिव की जटा से हुई, और कोई जाटों को यदुवशी पौर गिरन । प्रारण, पृ० २५२ ।। पाट पान्द को यदु या यादव से संबद्ध बसलाता है। जाजरा@t-वि० [म० जर्जर, ] जर। जीणं । १०-(क) अधिकांश पाट खेतीमारी से ही अपना निर्वाह करते ज्यों घुन लागई काठ को लोहा लागई कोट। काम किया है। पंजाब, अफगानिस्तान मोर बलूचिस्तान में पहत से घट जाजरा दादू बारह बाट । -दाद (शब्द०)। (ख) मुसलमान जाट भी है। पौधरो मघम जह जाजरो जरा जवन सूकर के सावक ढका २. एक प्रकार का रगीन या चलता गाना। ढकेल्यौ मग में। -तुलसी (शब्द०)। जाट-समा श्री [सं० यष्टि, हि० जाठ] दे० 'पाठ'। '