पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/९९

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मा . जामवंत १७४४ जामुन जामवंत-संक्षा पुं० [सं० जाम्बवान् ] दे० 'जाववान् । उ०-जामयंत जामिक -सक्षा पुं० [सं०यामिक ] पहरुमा । पहरा देनेवाला। के बचन सुहाए। सुनि हनुमत हृदय प्रति भाए।—मानस, रक्षक । उ०-चरन पीठ करुनानिधान के। जनु जुग जामिक प्रजा प्रान के।—तुलसी (शब्द०)। जामान--सचा पुं० [सं० जाम्बवान् ] दे॰ 'जांबवान्' । उ०--- जामित्र-सझा पुं० [सं०] विवाहादि शुम कर्म के काल के लग्न से जामवान मगद सुग्रीष तथा कोउ रावन । -प्रेमधम०, सातवां स्थान ।। भा०१, पृ० ४३ । जामिन वेध-सझा पुं० [सं०] ज्योतिष का एक योग जिसमें विवाह जामा-सद्या पुं० [फा. जामह] १. पहनावा । कपडा । वस्ल । उ०- मादि शुभ कर्म दूषित होते हैं। सत के सेल्ही जुगत के जामा छिमा ढाल ठनकाई। -कबीर विशेष-शुभ कर्म का जो काल हो, उसके नक्षत्र की राशि से श., भा॰ २, पृ० १३२ । २ एक प्रकार का घुटने के नीचे बड़े सातवी राशि पर यदि सूर्य, शनि या मगल. हो, तब जामित्र- धेरे का पुराना पहनावा । उ०-हिंदू घुटने तक जामा पहनते वेष होता है। किसी किसी के मत से सप्तम स्थान में पापग्रह हैं भौर सिर मौर कपों पर कपडा रखते हैं। -भारतेंदु प्र०, होने से ही जामित्रवेष होता है। किंतु यदि चद्रमा अपने मूल भा. ११० २४६। त्रिकोण या क्षेत्र में हो, अथवा पूर्ण चद्र हो या पूर्ण चंद्र अपने विशेप-इस पहनावे का नीचे का घेरा बहुत बड़ा और लहंगे की या शुभ ग्रह के क्षेत्र में हो तो जामित्रवेष का दोष नहीं रह तरह चुननदार होता है। पेट के ऊपर इसकी काट बगलबदी जाता। के देंग की होती है। पुराने समय में लोग दरबार आदि में इसे पहनकर जाते थे। यह पहनावा प्राचीन कचुक का रूपातर ' जामिन-सज्ञा पुं० [अ० जामिन ] १ जिम्मेदार । जमानत करने- जान पडता है जो मुसलमानों के आने पर हुआ होगा, क्योंकि वाला। इस बात का भार लेनेवाला कि यदि कोई विशेष यद्यपि यह शब्द फारसी है, तथापि प्राचीन पारसियों में इस मनुष्य कोई विशेष कार्य करेगा या न करेगा, तो मैं उस कार्य प्रकार का पहनावा प्रचलित नहीं था। हिंदुमों में अबतक विवाह की पूर्ति करूगा या दड सहूँगा। प्रतिभू । उ०—तो मैं प्रापको के अवसर पर यह पहनावा दुलहे को पहनाया जाता है। उनका जामिन समझूगी।-भारतेंदु प्र०, भा० १, पृ० ६५१ । मुहा०-जामे से बाहर होना-मापे से बाहर होना। पत्यत कि० प्र०-होना। क्रोध करना। जामे में फूला न समाना = प्रत्यत मानदित २ दो भगुल लवी एक लकड़ी जो नैचे की दोनो नलियो को होना। अलग रखने के लिये चिलमगर्दे और चूल के बीच में बांधी यौ०-जामाजेब = वह जिसके शरीर पर वस्ल शोभा पाता हो। जाती है। ३ दूध जमाने की वस्तु । दे० 'जामन' । जामादार - कपड़ों की देखभाल करने वाला नोकर। जामा- जामिन -मुटा स्त्री० [सं० यामिनी] दे० 'यामिनी'। उ०- पोश=वलयुक्त परिधानयुक्त। काम लुबध बोली सब कामिन । च्यार जाम गई जागत मात-सज्ञा पुं० [सं० जामातृ ] दे॰ 'जामाता'। जामिन ।-पृ० रा०,११ ४१० । माता-सा [सं० जामातृ ] १ दामाद । कन्या का पति । जामिनदार-सज्ञा पुं० [फा० जामिनदार ] जमानत करनेवाला । उ०-सादर पुनि भेटे जामाता । रूपसील गुननिधि सव जामिनि-सना सी० [सं० यामिनी ] दे० 'जामिनी'। उ०- भ्राता । -तुलसी (शब्द०)।२ हुरहुर का पौधा । हुलहुल । सुखद सुहाई सरद की कैसी जामिनि जात ।-अनेकार्थ, जामातु-सज्ञा पुं० [सं० जामात ] दे॰ 'जामाता'। पृ०५३। जामातृक-सज्ञा पुं० [सं०] जामाता । दामाद [को०) । जामिनो–सचा सौ. [सं० यामिनी] दे॰ 'यामिनी'। जामानी -वि० [हिं० ० 'जामुनी'। उ.--कहीं वेंगनी जामानी, जामिनो --सज्ञा स्त्री॰ [ फा ] जमानत । जिम्मेदारी। तो कही कत्थई कही सुरमई। इन रगो मे डबो गई मन, जामी-सज्ञा स्त्री० [सं० यामी १ दे० 'यामी'। २ दे० 'जामि" । सध्या पायस की। -मिट्टी०, पृ०७६ 1 जामी'f-सहा पुं० [हिं० जनमना या जमना ] थाप । जामि-सज्ञा स्त्री० [सं०]१ बहिन । भगिनी। २ लडकी । कन्या। पिता (हि०) । ३ पुत्रवधू । बहू । पतोहू । ४ अपने सबध या गोत्र की स्त्री। जामुन-सज्ञा पुं० [सं० जम्ब] गरम देशो मे होनेवाला एक सदाबहार ५ कुल ली। घर की बहू बेटी। पेड । जाम । जबू। विशेप-मनुस्मृति में यह शब्द पाया है जिसका अर्थ कुल्लक ने विशेष—यह वृक्ष मारतवर्ष से लेकर वरमा तक होता है और भगिनी, सपिंड की स्त्री, पत्नी, कन्या, पुत्रवधू आदि किया है। दक्षिण अमेरिका प्रादि में भी पाया जाता है। यह नदियों के मनु ने लिखा है कि जिन घर में जामि प्रतिपूजित होती है, किनारे कही कही प्रापसे माप उगता है, पर प्राय फलो के उसमे सुख की वृद्धि होती है, मौर जिसमें अपमानित होती है, लिये बस्ती के पास लगाया जाता है। इसकी लकडी का उस कुल का नाश हो जाता है। छिलका सफेद होता है और पत्तियाँ पाठ दस भगुस लबी पोर जामि'- सखा पुं० [सं० याम ] दे० 'याम' और 'जाम' उ०-प्रथम तीन चार अगुल चौडी तथा बहुत चिकनी, मोटे दल फी पौर जामि निसि रज्ज कज्ज हैगे दिष्पत लगि। दुतिय जाम चमकीली होती हैं। पैसाख जेठ में इसमें मजरी लगती है संगीत उछव रस कित्ति काव्य जगि । --पृ० रा०,६।११। ' जिसके झड जाने पर गुच्छों में सरसों के बराबर फल दिखाई शरीर पर वस्ल शामामा - जामिन बोली सब कामिन