पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१२०

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बहुरंगा २४१३ बहुसू बहुरंगा-वि० [हि. बलु+रंगा ] (1) कई रंग का । चित्रविचित्र। बहुला-संज्ञा पुं० [सं०] (१) गाय । (२) एक गाय जिसके (२) बहुरूपधारी । (३) मनमौजी । अस्थिर चित्त का। सत्य व्रत की कथा पुराणों में है और जिसके नाम पर लोग बहुरंगी-वि० [हिं० बहुरंगा+] (१) बहुरूपिया । अनेक प्रकार भादों वदी चौथ और माध यदी चौथ को प्रत करते हैं। के रूप धारण करनेवाला । (२) अनेक रंग दिखानेवाला । (३) नीलिका । नील का पौधा । (५) एक देवी का नाम अनेक प्रकार के करतब या चाल दिखलानेवाला । (३) मन (कालिका पु.)। (५) इलायधी। (६) एक नदी का मौजी। नाम (मार्कंडेय पु.) (७) कृत्तिका नक्षत्र । बहुगंधिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] मेदा । । बहुलाचौथ-संज्ञा स्त्री० [सं०] भादों यदी चौथ । इस दिन बहुरना-क्रि० अ० [सं० प्रघूर्णन, प्रा. पहोलन ] (१) लौटना । बहुला गाय के सत्य व्रत के स्मरणार्थ व्रत किया जाता है। फिर कर आना। वापस आना । (२) फिर हाथ में आना । बहुलाधन-संज्ञा पुं॰ [सं०] दाबन के ८४ बनों में से एक फिर मिलना। थन । कहते हैं इसी बन में बहुला गाय ने व्याघ्र के साथ बहुरि*1-कि० वि० [हिं० यहुरना । बहुरि फिर कर] (1) पुनः। अपना सत्य व्रत निबाहा था। फिर । (२) इसके उपरांत । पाछे। अनंतर । उ०--आगे बहुलाश्व-संज्ञा पुं० [सं०] मिथिला के एक परम भागवत राजा चले बहुरि रघुराई । —तुलसी। (भागवत)। बहुरिया-संज्ञा स्त्री० [सं० वधूटी, बधृटिका, प्रा. बहूडिआ ] नई बाहू। बहुलिका-संज्ञा स्त्री० सं०] सप्तर्षि मंडल । बहुरी-संशा श्री० [हिं० भौरनाभूनना ] भुना हुआ खदा अन्न। बहुली-संज्ञा स्त्री० [सं० बहुला ] इलायची । उ-झा, मरुभा, चर्वण | चबेना। कुंद सों कई गोद पसारी । बकुल, बहुलि, बट, कदम पै बहुरूप-वि० [सं० ] अनेक रूप धारण करनेवाला। डादी अजनारी । सूर । संज्ञा पुं० (१) विष्णु। (२) शिव । (३) कामदेव । (४) बहुवचन-संज्ञा पुं॰ [सं०] व्याकरण की एक परिभाषा जिससे सरट । गिरगिट । (५) ब्रह्मा । (६) बाल । प्रियव्रत के पौत्र ! एक से अधिक वस्तुओं के होने का बोध होता है। जमा । और मेधातिथि के पुत्र का नाम (भाग०)। (७) एक वर्ष का ! बहुवर्म-मंशा पुं० [सं०] आँखों का एक संग जिसमें पलकों के नाम । (८) एक युद्ध का नाम । (१) तांडव नृत्य का एक, चारों ओर छोटी छोटी फुसियाँ सी फैल जाती है। भेद जिसमें अनेक प्रकार के रूप धारण करके नाचते हैं। बहुवार-संज्ञा पुं० [सं०] लिसोड़े का पेड़ । बहुरूपक-संशा पुं० [सं०] एक जंतु । बहुविद्य-वि० [सं०] बहुत सी बातें जाननेवाला । बहुश। यहुरूपा-संशा स्त्री० [सं०] (1) दुर्गा । (२) अग्नि की सात : बहुवीर्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) विभीतक । बहेड़ा। (२) जिह्वाओं में से एक। सेमर का पेड़ । शाल्मली । (३) मरुवा । बहुरूपिया-वि० [हिं० बहू+रूप] (१) अनेक प्रकार के रूप बहुव्रीहि-संशा पुं० [सं० ] व्याकरण में छ प्रकार के समासों में धारण करनेवाला । (२) नकल बननेवाला । से एक जिसमें दो या अधिक पदों के मिलने से जो समस्त संज्ञा पुं. वह जो तरह तरह के रूप बना कर अपनी जीविका पद बनता है वह एक अन्य पद का विशेषण होता है। करता है। जैसे, आरूढ़वानर वृक्ष-वह वृक्ष जिष्प पर बंदर बहुरूपी-वि० [सं० बहुरूपिन् ] अनेक रूप धारण करनेवाला आरूढ हो। संशा पु० बहुरूपिया। | बहुशत्रु-संज्ञा पुं० [सं० ] चटक । गौरा पक्षी। बहुरेतस्-संज्ञा पुं० [सं०] ब्रह्मा। बहुशल्य-संज्ञा पु० [सं० ] एक खदिर । लाल खैर । बहुरोमा-संशा पु० [सं० बहुरोमन् ] (1) मेष । मेढ़ा । (२) बहुशाख-संशा पुं० [सं० ] स्नुहो। थूहर । लोमश । (३) बंदर। बहुशिखा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] गजविष्णली। बहुल-वि० [सं० ] प्रचुर । अधिक । ज़्यादा। । बहुशिर-संशा पुं० [सं०] विष्णु । संज्ञा पुं० (१) आकाश । (२) साद मिर्च। (३) कृष्णवर्ण। | बहुग-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु । (४) कृष्ण पक्ष । (५) अग्नि । (६) महादेव । बहुश्रत-वि० [सं०] जिसने बहुत सी बातें सुनी हों। जिसने बहुलगंधा-संशा स्त्री० [सं०] छोटी इलायची। अनेक प्रकार के विद्वानों से भिन्न भिन्न शास्त्रों की बातें बहुलच्छद-संज्ञा पुं० [सं० ] लाल सैंजना। लाल सहिजन । सुनी हों। अनेक विषयों का जानकार । चतुर । रक्त शिग्रु। बहुसंख्यक-संज्ञा पुं० [सं०] गिनती में घहुत । बहुलता-संज्ञा स्त्री० [सं०] बहुतायत । अधिकता । बाहुल्य । बहुसार-संज्ञा पुं० [सं० ] खदिर । खैर । प्राय॑ । बहुसू-संज्ञा स्त्री० [सं० ] शूकरी । मावा सूअर । ६०४