पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१२२

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बाँकड़ा २४१५ बांगा का एक आभूषण । (२) एक प्रकार का चांदी का गहना बाँका-वि० [सं० बंक ] (1) टेड़ा । तिरछा । (२) अत्यंत साहसी। जो पैरों में पहना जाता है। (३) हाथ में पहनने की एक बहादुर । वीर । (३) सुन्दर और बना ठना । जो अपने प्रकार की पटरी या चौड़ी चूड़ी। (४) लोहारों का लोहे शरीर को ख़ब सजाए हो । रेला । का बना हुआ सिकंजा जिसमें जकद कर किसी लोहे की संज्ञा पुं० [सं० बंक ] (१) लोहे का बना हुआ एक प्रकार चीज़ को रेतते हैं। (५) नदी का मोद। (६) सरौते के का हथियार जो टेदा होता है और जिसमें बासफोब लोग आकार का वह औज़ार जिपसे गन्ना छीलते है । (७) बाँस काटते छाँटते हैं। उ.-ग्विन विन जीव समापन कमान । धनुष । (८) टेढ़ापन । (९) एक प्रकार की छोटी आँका । औ नित डोम छुवावहि बाँका। जायसी । (२) छुरी जो आकार में कुछ टेदी होती है। (१०) बाँक नामक एक प्रकार का कीड़ा जो धान को फम्पल को हानि पहुँ- हथियार चलाने की विद्या । (११) एक प्रकार की कसरत चाता है। (३) बारात आदि में अथवा किमी जलूस में वह जिसमें बाँक चलाने का अभ्यास किया जाता है। यह बालक या युवक जो खूब सुन्दर वस्त्र और अलंकार आदि कपरत बैठ या लेटकर होती है। से सजा कर तथा पालकी आदि पर बैठा कर शोभा के वि० [सं० चेक ] (१) टेदा। बुमावदार । (२) बांका। लिए निकाला जाता है। तिरछा । उ०—बाँक नयन अरु अंजन रेखा । खंजन जान बांकिया-संज्ञा पुं० [सं० बंक-टेदा] नरसिंहा नाम का बैंक सरदरितु देखा।-जायसी। कर बजानेवाला बाजा जो आकार में कुछ टेवा होता है। संज्ञा पुं० [?] जहाज़ के ढाँचे में वह शहतीर जो खड़े यह पीतल या ताँबे का बनता है। बल में लगाया जाता है। वाँकी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बोंका ] लोहे का बना हुआ एक औज़ार संज्ञा स्त्री० देश० ] एक प्रकार की घास । जिससे बसफोद लोग बाँस की फष्टियाँ काटते, छीलते बाँकड़ा-वि० [हिं० बोका+ड़ा (प्रत्य॰)] वीर । साहसी । या दुरूस्त करते हैं। बहादुर । दे० "बाँकुरा"। संज्ञा स्त्री० [अ० वाकी ] (1) भूमिकर । लगान। (२) संज्ञा पुं० [सं० अंक ] छकड़े के भांक की वह लकड़ी जो दे. "बाकी"। धुरे के नीचे आड़े बल में लगी होती है। बाँकुड़ी-संज्ञा स्त्री० दे० "बाँकड़ी"। बाँकड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० बंक+डी (प्रत्य०) ] बादले और बाँकुर, बाँकुरा* -वि० [हिं० बाका ] (१) यौका । टेदा । कलावस का बना हुआ एक प्रकार का सुनहला या रुप. (२) पैना । पतली धार का । (३) कुशल। चतुर । उ०- हला फीता जिसका एक सिरा कैंगरेदार होता है और (क) जौं जगविदित पतितपावन अति बाँकुरे विरुद न जो स्त्रियों की धोती आदि में शोभा के लिए टॉका जाता है। बहते ।--नुलपी। (ख) प्रभु प्रतार उर सहज असंका। बांकडोग-संज्ञा स्त्री० [हिं० बाँक ] एक प्रकार का शस्त्र । उ० रन बाँकुरा बालिसुत बंका ।-तुलम्पी । बाँकडोरी फरस्पानि लै दाव की। खजरी पंजरौं मैं करें बाँग-संज्ञा स्त्री० [फा०] (1) आवाज़ । शब्द । (२) पुकार । घाव कौं।-सूदन। चिल्लाहट । (३) वह ऊँचा शब्द वा मंत्रोच्चारण जो नमाज़ बाँकनल-संज्ञा पुं० [सं० बंकनाल ] सोनारों का एक औज़ार का समय बताने के लिए कोई मुल्ला मसजिद में करता जिसमे फूंक मार कर टाँका लगाते हैं । यह पीतल की बनी हुई एक छोटी सी नली होती है । इसके एक ओर क्रि०प्र०-देना। से फूंक मारी जाती है और दूसरे सिरे से, जो टेदा होता (४) प्रात:काल के समय मुरगे के बोलने का शब्द । है, दीए की लौ से टाँका गलाकर लगाते हैं। क्रि० प्र०—देना । बाँकना-क्रि० स० [सं० बंफ ] टेदा करना । उ.-जेहि जिय बांगड़ा-वि० [हिं० बांगर ] मूर्ख । बेवकूफ । दुर्बुद्धि । मनहि होय सत्त भारू । परे पहार नहि बाँकै बारू। बाँगर-संज्ञा पुं० [ देश० ] (1) छकड़ा गाड़ी का वह बाँस जो —जायसी। फर के ऊपर लगा कर फर के साथ बांध दिया जाता है। महाल-बाल बाँकना-दे. "बाल" के अंतर्गत "बाल बाँका (२) खादर के विरुद्ध वह भूमि जो कुछ ऊँचे पर अवस्थित करना"। हो । वह भूमि जो नदी झील आदि के बढ़ने पर भी कि. अ. टेढ़ा होना। कभी पानी में न डूबे । (३) अवध में पाए जानेवाले एक बौकपन-संचा पुं० [हिं० बॉका+पन (प्रत्य॰)] (१) टेदापन। प्रकार के बैल। तिरछापन । (२) छैलापन । अलबेलापन । (३) बनावट। बाँगा-संसा पुं० [ देश० ] वह रूई जो ओटी न गई हो। बिनौले सजावट । वज़नदारी। (४) छवि । शोभा । समेत रूई । कपास।