पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१३१

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बाजीगर २४२४ बाढ़ संज्ञा पुं० [सं० वाजिन् ) घोड़ा। याट परइ, मोरि नाव उड़ाई। तुलसी । बाट पारना- + संज्ञा पुं० [हिं० वा ] वह जिपका काम बाजा बजाना डाका मारना । मार्ग में लूट लेना । उ०—राम लो न जान हो। बजनिया। दीनी बाट ही में खरी कीनी बाट पारिये को बली अंगद बाज़ीगर-संज्ञा पुं० [फा०] जादू के खेल करने वाला। जादूगर । प्रवीन है।हनुमान। बाट लगाना=(१) रास्ता दिखलाना । ऐंद्रजालिक । उ०—कै कहुँ रंक, कहूँ ईश्वरता नट बाजीगर मार्ग बतलाना । (२) किसी काम करने का ढंग बताना । (३) जैसे ।—सूर । मूर्ख बनाना। बाजु-अव्य० [सं० वर्जन। भि. फा० वाज] (1) बिना। बगैर । उ.-1 संज्ञा पुं० [सं० वटक ] (१) पत्थर आदि का वह टुकड़ा जो (क) नख शिव सुभग श्यामघन तन को दरसन हरत । चीजें तौलने के काम आता है। बटखरा । (२) परधर का विथाजु । सूरदास मन रहत कौन विधि बदन बिलोकनि । वह टुकड़ा जिसमे सिल पर कोई चीज़ पीसी जाय । याजु । -सूर । (ख) का भा जोग कहानी कथे । निकम न । * संज्ञा स्त्री० [हिं० बटना ] बटने का भाव । रस्सी आदि घीउ बाजु दधि मथे।—जायसी। (ग) परी कया भुई में पड़ी हुई ऐंठन । बटन । बल । रोअई कहरे जीउ बलि भीउ । को उठाइ बैसारह बाजु बाटना-क्रि० स० [हिं० बट्टा या बाट ] पिल पर बट्टे आदि से पिरीतम जीउ !--जायसी । (२) अतिरिक्त । सिवा । पीसना । चूर्ण करना । उ०—कुच विष वाटि लगाय बाजू-संज्ञा पुं० [फा० दा] (१) भुजा । बाहु। बाँह । विशेष कपट करि बालघातिनी परम सुहाई।-सूर । दे. "बाह"। क्रि० स० दे० "बटना" । उ०—कह गिरधर कविराय यौ०-याजूबंद। सुनो हो धूर को बाटी?-गिरधर । (२) बाँह पर पहनने का बाजूवंद नाम का गहना। बाटली-संशा स्त्री० [ अंक यंटलाइन जहाज़ के पाल में ऊपर की विशेष—दे. "बाजूबंद"। (३) सेना का किसी और का ओर लगा हुआ बह रस्पा जो मस्तूल के ऊपर से होकर एक पक्ष । (४) वह जो हर काम में बराबर साथ रहे और फिर नीचे की ओर आता है। इसी को खींच कर पाल सहायता दे। जैसे, भाई, मित्र आदि (बोलचाल)।। तानते हैं। (लश.) (५) एक प्रकार का गोदना जो बाँह पर गोदा जाता है। मुहा०-बाटली चापना-रस्से को खीचकर पाल तानना । और बाजूबंद के आकार का होता है। (६) पक्षी का डैना। संज्ञा स्त्री० [अ० बाटल ] बोतल। बड़ी शीशी। बाजबंद-संक्षा पुं० [ 10 ] बाँह पर पहनने का एक प्रकार का | वाटिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) बाग । फुलवारी। (२) गद्य गहना जो कई आकार का होता है। इसमें बहुधा बीच काव्य का एक भेद । वह गद्य जिसमें कुसुम और गुच्छ गध में एक बड़ा चौकोर नग या पटरी होती है और उसके आगे मिला हो। पीछे छोटे छोटे और नग या पटरियाँ होती है जो सब की | बाटी-संज्ञा स्त्री० [सं० बटी (1) गोली । पिड । (२) अंगारों सब तागे या रेशम में पिरोई रहती हैं। बाजु । बिजायठ। या उपलों आदि पर सेंकी हुई एक प्रकार की गोली या भुजबंद। पेड़े के आकार की रोटी । अंगाकड़ी । लिट्टी । उ०-दूध बाजूबीर-संज्ञा पुं० दे. "बाजूयंद"। बरा उत्तम दधि बाटी दाल मसूरी की रुचिकारी।-सूर । याझन*-संशा स्रा० [हिं० बझना-फसना ] (१) बझने या संज्ञा स्त्री० [सं० बर्नल | मि० हिं० बटुआ ) (1) चौड़ा और फँसने का भाव । फँसावट । (२) उलझन । पंच । (३) कम गहरा कटोरा । (२) तसला नाम का वरतन । झंझट । बरड़ा । (४) लदाई । झगड़ा । बाइकिन-संज्ञा पुं० [अ०] (१) छापेवाने में काम आनेवाला एक यासना-कि० अ० दे० "बझना" । उनकसरि बंसी के प्रकार का सूआ जिसमें पीछे की ओर लकड़ी का दस्ता संभ्रम भौंह मीन अकुलात । मनु ताटक कमठ चूँघट उर लगा रहता है। इससे कंपोजिटर लोग कंपोज़ किये हुए मैटर जाल बाझि अकुलात ।-सूर।। में से गलती से लगा हुआ अक्षर निकालते और उसकी बाट-संशा पुं० [सं० बार-मार्ग] मार्ग । सरता। जगह दूसरा अक्षर बैठाते हैं। (२) दातरीखाने में काम मुहा०-वाटकरना=रास्ता खोलना। मार्ग बनाना । उ.--जी त्यो आनेवाला एक प्रकार का सूआ जिसका पिछला सिरा बहुत जरासंध दि छोरी । जुगल कपाट बिदारि बाट करि लत्तनि । मोटा होता है। यह किताबों या दगितयों आदि में, ठोंक गुही सँधि चोरी।-सूर । बाट जोहना या देखना--प्रतीक्षा कर छेद करने के काम में आता है। करना । आमरा देखना । बाट पड़ना=रास्ते मे आ आ ! बाढ़-संशा स्त्री० [हिं० बाढ] (1) बाढ़ । वृन्छि । (२) सेज़ी। कर बाधा देना । तंग करना । पीछे पड़ना । बाट पमना-डाका ज़ोर । उ०-बाढ़ चढ़ती घेलरी उरझी आसान। टूटे पर पड़ना । हरण होना। उ०-~तरनिउँ मुनि-धरनी होइ जाई। जूटे नहीं भई जो बाचाबंध। -कवीर ।