पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१५९

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विकरम २४५२ विखेरना संयो० कि-जाना। विकृति । विकिया। उ०-वारिद बचन सुनि धुनि सीस मुहा०--किसी के हाथ बिकना-किमी के अनुचर, सेवक या सचिवनि कहे दससीस ईस बामता विकार है।-तुलसी। दास होना । किमी के सलाम बनना । जैसे,-हम उनके हाथ (२) रोग। पीड़ा । दु:ख । (३) दोष । ऐष। खराबी । कुछ बिके तो है ही नहीं, जो उनका हुकुम मानें। बुराई । अवगुण । उ०-जद चेतन गुन दोषमय विस्व विशेष-कभी कभी इस अर्थ में, और विशेषत: मोहित होने कीन्ह करतार । संत हंस गुन गहहि पय परिहरि बारि के अर्थ में केवल "विकना" शब्द का भी प्रयोग होता है। .िकार। -तुलसी । (४) बुरा कृत्य । पापकर्म । उ०-भने उ.-ठानहै ऐसा नहीं करिके कर तोप चित जेहि कान्ह रघुराज कार्पण्य पण्य चौधरी है जग के विकार जेते सबै बिकान है। तोप।। सरदार हैं।-रघुराज । (५) कुवासना । उ.-रंजन संत विकरमा-संशा पं. दे. "विक्रमादित्य"13.-भोज भोग उस अखिल अघगंजन भजन विषय विकारहि ।-तुलसी । माना विकरम साका कीन्ह । परिख सो रतन पारखी विशेष-दे. "विकार"। पाइ लम्बन लिम्वि दीन्ह । --जायसी । विकाग-वि० [सं० विकार 1 (8) विकृत रूपवाला । जिसका विकरार-वि० [फा० बेकरार ] व्याकुल । विकल। बेचैन । उ.. रूप बिगर कर और का और हो गया हो। (२) अहित- -कैवल डार गहि भइ विकरारा । कासु पुकारउँ आपन कर । बुरा । हानिकारक । उ०-अशुभ होय जिनके सुमि- हारा।—जायसी। रन ते बानर रीछ बिकारी । तुलसी । वि०म० विकराल । कटिन । भयानक । डरावना। भयंकर संशा स्त्री० [सं० विकृत या वंक] एक प्रकार की टेढ़ी पाई उ०-पुष्कर पुष्कर नयन चल्योवृकमुत विकरारो।गोपाल। जो अंकों आदि के आगे संख्या या मान आदि सूचित विकगल-वि० दे० "विकराल"। उ०-साली मेघ माल बनवाल करने के लिये लगाई जाती है। लिखने में रुपए पैसे या विकराल भट नीके सब काल सींचें सुधापार नीर के। मन-पेर आदि का चिह्न जिसका रूप ) तथा होता है। तुलसी। उ.-बंक बिकारी देत ज्यों दाम रुपैया होत ।-बिहारी। बिफल -वि.सं. विल ] (1) प्याकुल । घबराया हुआ।। बिकुंटा-संशा पुं० दे० "वैकुंछ"। (२) बेचैन । विक्रमाजीत-संज्ञा पुं० दे० "विक्रमादित्य"। बिकलाई-संज्ञा स्त्री० [सं० विकल+आ (प्रत्य०) । ब्याकुलता। विक्रमी-संशः पुं० दे. “वक्रमीय"। बेचैनी। उ०—ोगी कलाई लग्वे बिकलाई भई कल आई बिक्री-संज्ञा स्त्री० [सं० विक्रय ] (9) किसी पदार्थ के बेचे जाने नहीं दिन राती।-अयोध्यासिंह। की क्रिया या भाव । विक्रय । जैसे,--आज सवेरे से बिक्री बिकलाना --fho 10 | सं० विकल ] व्याकुल होना । घबराना। ही नहीं हुई। (२) यह धन जो बेचने से प्राप्त हो । बेचने बेचैन होना । उ०-हरिमुग्व राधा राधा बानी । धरनी से मिलनेवाला धन । जैसे,—यही..आज की बिक्री है। परे अचेत नहीं सुधि सखी देखि विकलानी।-सूर। विक्र-वि० [हिं० विक्रा ] येचने लायक । जो बेचा जाता हो। कि० स० व्याकुल करना । बेचैन करना । विक्री का । विकाऊ । (लश०) बिकवाना-क्रि० स० [हिं० बिकना का प्रे० ] बेचने का काम | विशेष-जहाजों आदि पर लश्कर के लोग इस विशेषण का दृसरे से कराना । दूसरे को बेचने में प्रवृत्त करना। किसी प्रयोग ऐसे बने हुए वस्त्रों के लिये करते हैं जो नव-सेना- से विक्री कराना। विभाग से उन्हें लागत के दाम पर मिलते हैं। विकसना-कि० [सं० विकसन ](1) खिलना । फूलना। प्रस्फुटित बिखा-संज्ञा पुं० [सं० विप ] ज़हर । विष । होना । (२) प्रफुलित होना । बहुत प्रसन्न होना। बिखम-वि० [सं० विष] विष । ज़हर । गरल । (डि.) विकसाना-क्रि० अ० दे. "विकसना"। उ०-पाहन बीच कमल वि० दे. "विपम ।" बिकसाही जल में अगिनि जरे।-सूर । बिखरना-कि० अ० [सं० विकीर्ण ] खंडों या कणों आदि का कि० स० (१) विकसित करना । खिलाना । (२) प्रफुलित इधर उधर गिरना या फैल जाना । छितराना । तितर करना । प्रसन्न करना। वितर हो जाना। बिकाऊ-वि० [हिं० विकना+आऊ (प्रत्य॰)] जो बिकने के लिए संयोकि-जाना। हो। जो बेचा जानेवाला हो। बिकनेवाला । जैसे,—कोई | बिखराना-क्रि० स० [हिं० विखरना का स० रूप ] खंडों या कणों अलमारी बिकाऊ हो तो हम से कहना। को इधर उधर फैलाना । छितराना । छींटना । विकाना-क्रि० अ० दे० "विकना"। विखाद-संज्ञा पुं० दे० "विषाद"। विकार*1-संशा पुं० [सं० विकार ] (१) विगवा हुआ रूप । बिखेरना-क्रि० स० [हिं० बिखरना का स० रूप] खरों या कण